कल्पना निर्माण II (द्वितीयक कल्पनाएं एवं पथ्य) - रसशास्त्र नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विषय के अंतर्गत 'कल्पना निर्माण II (Kalpana Nirmana II)' अध्याय पर केंद्रित है। पिछले अध्याय में हमने प्राथमिक कल्पनाओं (पंचविध कषाय कल्पना) और कुछ सरल उपकल्पनाओं का अध्ययन किया था। इस अध्याय में हम प्रमुख द्वितीयक कल्पनाओं - अवलेह (Avaleha), स्नेह कल्पना (Sneha Kalpana - घृत एवं तैल), संधान कल्पना (Sandhana Kalpana - आसव एवं अरिष्ट) - और पथ्य कल्पना (Pathya Kalpana - Dietary preparations) का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
प्रत्येक कल्पना की परिभाषा, संदर्भ, आवश्यक सामग्री, सामान्य एवं विशिष्ट निर्माण विधि, सिद्धांत, प्रयुक्त उपकरण, पाक परीक्षा (सिद्धि लक्षण), मात्रा, संग्रहण, सेवन काल (shelf life), आधुनिक दृष्टिकोण, उदाहरण, अनुसंधान अद्यतन और बाजार सर्वेक्षण पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- अवलेह/लेह/पाक: क्वाथ आदि द्रव को गाढ़ा कर (शर्करा/गुड़ मिलाकर) बनाई जाने वाली अर्ध-ठोस (चाटने योग्य) कल्पना। पाक परीक्षा महत्वपूर्ण। उदाहरण: वासावलेह, कूष्माण्ड अवलेह।
- स्नेह कल्पना: औषध द्रव्यों के सार को घृत या तैल में समाविष्ट करने की प्रक्रिया (मूर्छन, स्नेह पाक)। त्रिविध पाक (मृदु, मध्यम, खर) महत्वपूर्ण। उदाहरण: फल घृत, क्षीरबला तैल। आवर्तन द्वारा गुण वृद्धि।
- संधान कल्पना: द्रव्यों को द्रव माध्यम में किण्वन (Fermentation) द्वारा तैयार की जाने वाली कल्पना (आसव - बिना उबाले, अरिष्ट - उबालकर)। संधान पात्र, काल, तापमान महत्वपूर्ण। उदाहरण: द्राक्षारिष्ट, उशीरासव।
- पथ्य कल्पना: रोगी के लिए सुपाच्य और रोगानुसार हितकर आहार बनाने की विधियाँ। मुख्य कल्पनाएं - पेय कल्पना (मण्ड, पेया, विलेपी, यवागू, ओदन), यूष कल्पना (शाक/दाल का सूप), तक्र कल्पना, खड, काम्बलिक, रागषाडव आदि।
- प्रत्येक कल्पना का विस्तृत अध्ययन: परिभाषा, विधि, पाक परीक्षा, मात्रा, संग्रहण, सेवन काल, आधुनिक सहसंबंध, अनुसंधान एवं बाजार सर्वेक्षण।
कल्पना निर्माण II: द्वितीयक कल्पनाएं एवं पथ्य कल्पना
1. अवलेह कल्पना (Avaleha Kalpana - Linctus/Herbal Jam)
परिभाषा एवं संदर्भ:
लेहः स्यात् क्वाथकल्कादेः शर्करगुडपाचितः।
                 द्रवं घनं वा तन्मात्रं निर्दिष्टमथ गृह्यते॥
व्याख्या: क्वाथ, कल्क, स्वरस आदि द्रव द्रव्यों को शर्करा (चीनी), गुड़ या मधु के साथ मंद अग्नि पर पकाकर जब वह गाढ़ा (घन) या अर्ध-ठोस (चाटने योग्य - लेह) हो जाए, तो उसे अवलेह, लेह या पाक कहते हैं।
संदर्भ: चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट, शारंगधर, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में अनेक अवलेहों का वर्णन है।
आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):
- द्रव द्रव्य (Liquid Base): क्वाथ, स्वरस, फाण्ट, दुग्ध, जल आदि।
- मधुर द्रव्य (Sweetening Agent): शर्करा, गुड़, मिश्री, मधु (पाक ठंडा होने पर)।
- मुख्य औषध द्रव्य (Main Drugs): प्रायः कल्क या चूर्ण रूप में।
- प्रक्षेप द्रव्य (Additive Drugs): सुगंधित चूर्ण (जैसे त्रिकटु, त्रिजात), स्नेह (घृत/तैल) - पाक के अंत में मिलाए जाते हैं।
सामान्य निर्माण विधि (General Method):
- द्रव द्रव्य (क्वाथ आदि) को छानकर पात्र में डालें।
- उसमें निर्धारित मात्रा में शर्करा या गुड़ मिलाएं और घोलें।
- मंद अग्नि पर पकाएं, बीच-बीच में चलाते रहें।
- जब पाक गाढ़ा होने लगे (चाशनी बनने लगे), तो मुख्य औषध द्रव्यों का कल्क या चूर्ण धीरे-धीरे मिलाएं और लगातार चलाते रहें।
- निर्धारित पाक सिद्धि लक्षण आने पर अग्नि से उतार लें।
- यदि स्नेह (घी/तेल) डालना है, तो इसी समय मिलाएं।
- पाक के स्वतः ठंडा होने पर मधु (यदि निर्देश हो) और प्रक्षेप चूर्ण मिलाएं।
- अच्छी तरह मिलाकर चौड़े मुंह वाले कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में सुरक्षित रखें।
सिद्धांत एवं तापमान का महत्व (Principle & Importance of Temp.):
- सिद्धांत: औषध द्रव्यों के गुणों को मधुर माध्यम में संरक्षित करना, सेवन सुगम बनाना, और स्थायित्व बढ़ाना। शर्करा/गुड़ परिरक्षक (Preservative) का कार्य करते हैं।
- तापमान: पाक क्रिया मंद अग्नि पर होनी चाहिए। तीव्र अग्नि से पाक जल सकता है या औषध के गुण नष्ट हो सकते हैं। पाक के अंत में तापमान विशेष महत्वपूर्ण है (पाक परीक्षा हेतु)।
उपकरण (Instruments):
लौह/स्टील/ताम्र का पात्र (कड़ाही), कलछी, अग्नि स्रोत, छानने का कपड़ा, कांच/चीनी मिट्टी का पात्र (संग्रहण हेतु)। बड़े पैमाने पर - स्टीम जैकेटेड केतली, मैकेनिकल स्टिरर।
पाक सिद्धि लक्षण (Tests for Proper Preparation):
तन्तुमत्त्वं जले मज्जनमङ्गुलीषु न लेपनम्।
                 गन्धवर्णरसोत्पत्तिः सिद्धलेहस्य लक्षणम्॥
                 पीडितोऽङ्गुलिभिर्यस्तु मुद्रां गृह्णाति लेहवत्।
- तन्तुमत्ता: कलछी से उठाने पर तार (तन्तु) बनना।
- अप्सु मज्जनम्: पानी में डालने पर तुरंत घुलने के बजाय बैठ जाना।
- अङ्गुलीषु न लेपनम् / मुद्रा ग्रहण: अंगूठे और तर्जनी के बीच दबाने पर चिपके नहीं और उंगलियों के निशान (मुद्रा) बन जाएं।
- गन्ध-वर्ण-रस उत्पत्ति: विशिष्ट गंध, वर्ण और रस का प्रकट होना।
- स्थिरता: ठंडा होने पर जम जाना (पत्थर जैसा कठोर नहीं)।
पाक की अवस्थाएं:
आम पाक (Under-cooked): पतला, पानी में घुल जाए, शीघ्र खराब। खर पाक (Over-cooked): कठोर, जलने की गंध, गुणहीन। मध्यम पाक (Correct consistency): उपरोक्त सिद्धि लक्षणों से युक्त, श्रेष्ठ।
मात्रा (Dose):
सामान्यतः 1 पल (≈ 50 g) तक, या 1-2 कर्ष (12-24 g)। व्यवहार में 5-15 g दिन में 1-2 बार।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
चौड़े मुंह वाले, वायुरोधी कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रखें। सवीर्यता अवधि सामान्यतः 1 वर्ष।
उदाहरण (Examples):
- वासावलेह (Vasavaleha): मुख्य घटक - वासा स्वरस, पिप्पली चूर्ण, शर्करा, मधु, घृत। उपयोग - कास, श्वास, रक्तपित्त।
- कूष्माण्ड अवलेह/पाक (Kushmanda Avaleha): मुख्य घटक - कूष्माण्ड (पेठा) स्वरस/कल्क, शर्करा, घृत, पिप्पली, शुण्ठी आदि प्रक्षेप। उपयोग - क्षय, दौर्बल्य, रक्तपित्त, उरःक्षत, रसायन।
- अन्य: च्यवनप्राश, कंटकार्यवलेह, द्राक्षावलेह, चित्रक हरीतकी।
अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):
अवलेहों के मानकीकरण (Standardization), विभिन्न द्रव्यों के प्रभाव (जैसे एंटीऑक्सीडेंट, इम्युनोमॉड्यूलेटरी), और निर्माण प्रक्रिया में सुधार पर शोध हो रहे हैं। बाजार में च्यवनप्राश, वासावलेह आदि अनेक कंपनियों द्वारा उपलब्ध हैं।
2. स्नेह कल्पना (Sneha Kalpana - Medicated Ghee & Oil)
उद्देश्य एवं परिभाषा (Aims & Definition):
उद्देश्य (Aims):
- औषध द्रव्यों के स्नेह-घुलनशील (Lipid-soluble) और जल-घुलनशील (Water-soluble - क्वाथ/स्वरस के माध्यम से) सक्रिय घटकों को स्नेह (घृत या तैल) में समाविष्ट करना।
- स्नेह के अपने गुणों (वात-पित्त शामक, बृंहण, स्नेहन) के साथ औषध के गुणों को जोड़ना।
- औषध को अधिक समय तक संरक्षित रखना।
- अभ्यंग, नस्य, बस्ति, पान आदि विभिन्न मार्गों से प्रयोग योग्य बनाना।
परिभाषा: वह कल्पना जिसमें कल्क, क्वाथ/स्वरस आदि द्रव द्रव्यों को स्नेह (घृत या तैल) के साथ मिलाकर मंद अग्नि पर शास्त्रोक्त विधि से तब तक पकाया जाता है, जब तक केवल स्नेह शेष रह जाए और उसमें औषध द्रव्यों के गुण आ जाएं।
द्रवात् कल्कात् स्नेहपाको...
                  कल्कात् स्नेहाच्चतुर्गुणं। स्नेह चतुर्गुणं दद्यात् ... पयः स्वरस क्वाथं ...
आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):
- स्नेह द्रव्य (Base Fat/Oil): प्रायः गो घृत (Cow's Ghee) या तिल तैल (Sesame Oil)। अन्य तैल (जैसे एरंड, सरसों, नारियल) भी प्रयोग होते हैं।
- कल्क द्रव्य (Paste): मुख्य औषध द्रव्यों का महीन कल्क (Paste)।
- द्रव द्रव्य (Liquid Media): जल, क्वाथ, स्वरस, दुग्ध, तक्र, कांजी आदि।
- (गंध द्रव्य - सुगंध के लिए अंत में मिलाए जाते हैं, यदि निर्देश हो)।
सामान्य निर्माण विधि (General Method):
अनुपात (मान): कल्क : स्नेह : द्रव = 1 : 4 : 16 (यह सामान्य नियम है, निर्देशानुसार बदल सकता है)।
- सर्वप्रथम स्नेह का **मूर्छन** करें (अगला बिंदु देखें)।
- एक पात्र में कल्क और द्रव द्रव्य मिलाएं।
- फिर मूर्छित स्नेह मिलाएं।
- मंद अग्नि पर पाक प्रारम्भ करें। बीच-बीच में चलाते रहें।
- जब अधिकांश जल उड़ जाए और केवल स्नेह शेष रहने लगे (फेन शांति, शब्द शांति), तब स्नेह पाक परीक्षा करें।
- निर्धारित पाक (मृदु, मध्यम, खर) सिद्ध होने पर अग्नि से उतार लें।
- गुनगुना रहने पर छान लें। यदि गंध द्रव्य मिलाना है तो इसी समय मिलाएं।
- ठंडा होने पर कांच या स्टील के पात्र में सुरक्षित रखें।
घृत/तैल मूर्छन (Murchhana of Ghee/Oil):
स्नेह पाक से पहले घृत या तैल का मूर्छन करना आवश्यक है।
- उद्देश्य: स्नेह में स्थित आम दोष, दुर्गंध, उग्रता को दूर करना, उसकी ग्राही क्षमता (Absorption capacity for drug properties) बढ़ाना, और वर्ण सुधारना।
- विधि: स्नेह में कुछ विशिष्ट द्रव्य (जैसे घृत के लिए - त्रिफला, नागरमोथा, हरिद्रा; तैल के लिए - मंजिष्ठा, लोध्र, हरिद्रा, नागरमोथा आदि) का कल्क और जल मिलाकर मंद अग्नि पर पकाया जाता है, जब तक जल न उड़ जाए और स्नेह के सिद्धि लक्षण प्रकट न हों। फिर छान लिया जाता है।
स्नेह सिद्धि लक्षण एवं पाक के प्रकार (Tests & Types of Paka):
स्नेह पाक की सिद्धि (पूर्णता) की जांच महत्वपूर्ण है।
फेनोद्गमे ... गन्धवर्णरसोद्भवः।
                  ... स्नेहोत्कर्षश्च मध्यमे॥
                  ... वर्तिवत् कल्कः ... मृदुमध्यमखराः क्रमात्॥
- सामान्य लक्षण: फेन शांति (झाग का बैठ जाना), शब्द शांति (चटचटाहट बंद होना), विशिष्ट गंध-वर्ण-रस की उत्पत्ति।
- कल्क परीक्षा: कल्क को अंगूठे और तर्जनी के बीच मसलने पर बत्ती (वर्ति) बने।
                      - मृदु पाक (Mild): कल्क नरम हो, बत्ती बने पर थोड़ी चिपचिपाहट हो, अग्नि पर डालने पर हल्की चटचटाहट हो। (मुख्यतः नस्य हेतु)
- मध्यम पाक (Moderate): कल्क न नरम न कठोर, बत्ती आसानी से बने, चिपचिपाहट न हो, अग्नि पर डालने पर शब्द न हो। (मुख्यतः पान, बस्ति, अभ्यंग हेतु - सर्वश्रेष्ठ पाक)
- खर पाक (Hard): कल्क कठोर, सूखा, भंगुर हो, बत्ती मुश्किल से बने, अग्नि पर डालने पर जले। (मुख्यतः अभ्यंग हेतु)
- दग्ध पाक (Burnt): कल्क काला, जला हुआ। (प्रयोग योग्य नहीं)
 
- जल परीक्षा: स्नेह की बूंद पानी पर डालने पर फैल जाए।
पत्र पाक / गंध पाक (Patra Paka / Gandha Paka): जब स्नेह पाक में केवल सुगंधित द्रव्यों (जैसे चन्दन, अगरु) का प्रयोग कल्क के बिना किया जाता है, तो उसे गंध पाक कहते हैं।
पाक काल एवं तापमान (Time & Temperature):
- पाक हमेशा मंद अग्नि पर करना चाहिए।
- समय द्रव्य की मात्रा और अग्नि पर निर्भर करता है, कुछ घंटों से लेकर कई दिन लग सकते हैं।
- तापमान 100°C के आसपास रहता है जब तक जल अंश रहता है, उसके बाद धीरे-धीरे बढ़ता है। सिद्धि लक्षण पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
आवर्तन (Avartana):
स्नेह के गुणों को उत्तरोत्तर बढ़ाने के लिए स्नेह पाक की प्रक्रिया को उसी स्नेह में बार-बार दोहराना आवर्तन कहलाता है (जैसे क्षीरबला तैल 101 आवर्ती)। प्रत्येक आवर्तन में स्नेह में औषध के गुण बढ़ते जाते हैं।
मात्रा (Dose):
पान हेतु - अग्निबलानुसार ½ कर्ष से 1 पल तक। अभ्यंग, नस्य, बस्ति हेतु आवश्यकतानुसार।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
कांच या स्टील के वायुरोधी पात्र में रखें। घृत की सवीर्यता अवधि 16 मास, तैल की 16 मास (या अधिक, तैल जल्दी खराब नहीं होता)।
उदाहरण (Examples):
- फल घृत (Phala Ghrita): मुख्य द्रव्य - मंजिष्ठा, मुलेठी, कुष्ठ, त्रिफला, शतावरी आदि का कल्क, दुग्ध। उपयोग - बंध्यत्व (Infertility), गर्भपोषण।
- क्षीरबला तैल (Ksheerabala Taila): मुख्य द्रव्य - बला मूल कल्क/क्वाथ, क्षीर, तिल तैल। उपयोग - वात रोग, अर्दित, पक्षाघात, दौर्बल्य (विशेषकर आवर्तित तैल)।
- अन्य: ब्राह्मी घृत, पंचतिक्त घृत, महानारायण तैल, सहचरादि तैल।
अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):
स्नेह कल्पना के मानकीकरण, विभिन्न पाक अवस्थाओं के रासायनिक विश्लेषण, और विशिष्ट रोगों (जैसे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) में उनकी प्रभावशीलता पर शोध हो रहे हैं। बाजार में अनेक प्रकार के सिद्ध घृत और तैल उपलब्ध हैं।
3. संधान कल्पना (Sandhana Kalpana - Fermented Formulations)
परिचय एवं महत्व (Introduction & Significance):
संधान कल्पना आयुर्वेद की एक विशिष्ट फर्मेंटेशन (किण्वन) आधारित प्रक्रिया है, जिससे आसव और अरिष्ट नामक अल्कोहलिक औषधियां बनाई जाती हैं।
- महत्व:
                     - किण्वन से औषध के गुण बदलते हैं, सूक्ष्म होते हैं, और शीघ्र प्रभावी होते हैं।
- उत्पन्न अल्कोहल (स्वयं जनित) परिरक्षक (Preservative) का कार्य करता है, जिससे ये कल्पनाएं लंबे समय तक सुरक्षित रहती हैं।
- यह कल्पना दीपन, पाचन, हृद्य, स्रोतोविशोधन गुणों से युक्त होती है।
- अल्कोहल औषध के सक्रिय घटकों के निष्कर्षण (Extraction) और अवशोषण (Absorption) में मदद करता है।
 
वर्गीकरण (Classification):
संधान कल्पना को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:
- मध्य कल्पना (Madya Kalpana): जिनमें अल्कोहल उत्पन्न होता है (जैसे आसव, अरिष्ट, सुरा, सीधु)।
- शुक्त कल्पना (Shukta Kalpana): जिनमें एसिटिक एसिड (सिरका) उत्पन्न होता है (जैसे कांजी, शुक्त, तक्रारिष्ट)।
हम यहाँ मुख्य रूप से आसव और अरिष्ट पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
आसव एवं अरिष्ट में भेद (Difference between Asava & Arishta):
| लक्षण | आसव (Asava) | अरिष्ट (Arishta) | 
|---|---|---|
| निर्माण विधि | औषध द्रव्यों के स्वरस या शीतल जल में गुड़/शर्करा आदि मिलाकर संधान। (बिना उबाले) | औषध द्रव्यों का क्वाथ बनाकर, ठंडा करके, उसमें गुड़/शर्करा आदि मिलाकर संधान। (उबालकर) | 
| बल (Strength) | अरिष्ट की अपेक्षा अधिक बलवान (सामान्यतः) | आसव की अपेक्षा कम बलवान (सामान्यतः) | 
| उदाहरण | कुमार्यासव, उशीरासव, चन्दनासव | दशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, द्राक्षारिष्ट | 
आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):
- द्रव द्रव्य (Liquid Base): आसव के लिए - जल/स्वरस; अरिष्ट के लिए - क्वाथ।
- मधुर द्रव्य (Fermenting Agent): गुड़ (पुराना), शर्करा, मधु, धान्य (जैसे चावल)।
- संधान द्रव्य / किण्व (Yeast Source): धातकी पुष्प (Woodfordia fruticosa flowers) - यह प्राकृतिक यीस्ट का स्रोत है और संधान प्रक्रिया शुरू करता है।
- प्रक्षेप द्रव्य (Aromatic/Additive Drugs): सुगंधित द्रव्यों (जैसे त्रिजात, त्रिकटु, नागरमोथा) का चूर्ण, जो संधान पूर्ण होने के बाद मिलाया जाता है।
अनुक्त मान (Unspecified Quantities): यदि शास्त्र में मात्रा न बताई हो तो सामान्य नियम - द्रव (क्वाथ/जल) - 1 द्रोण (≈ 12 L), गुड़ - 1 तुला (≈ 4.8 kg), मधु - गुड़ का आधा, प्रक्षेप - गुड़ का 1/10 भाग, धातकी पुष्प - गुड़ का 1/10 भाग।
सामान्य निर्माण विधि (General Method - Sandhana Vidhi):
- पात्र चयन (Sandhana Patra): मिट्टी का लेप किया हुआ घड़ा (स्निग्ध घट) या आजकल लकड़ी के पीपे (Wooden vats) या स्टील के टैंक। पात्र को धूपन (Fumigation - जैसे गुग्गुलु, वचा से) कर निर्जन्तुक (Sterilize) करें।
- द्रव्य मिश्रण: पात्र में द्रव (क्वाथ/जल), गुड़/शर्करा/मधु, संधान द्रव्य (धातकी पुष्प) आदि मिलाएं।
- संधान स्थापन: पात्र का मुख अच्छी तरह बंद (सन्धि लेपन) कर दें ताकि हवा अंदर न जाए, पर गैस बाहर निकल सके (या आधुनिक एयर-लॉक लगाएं)।
- स्थान चयन: पात्र को स्थिर, समान तापमान वाले स्थान पर (जैसे भूमिगत कक्ष, धान की राशि में) रखें। तापमान लगभग 25-30°C अनुकूल होता है।
- संधान काल (Fermentation Period): यह ऋतु, तापमान और द्रव्यों पर निर्भर करता है (7 दिन से 1 माह या अधिक)।
- संधान परीक्षा (Observations/Tests):
                     - शब्द श्रवण: कान लगाने पर बुदबुदाहट (Bubbling sound) सुनाई देना (सक्रिय किण्वन)।
- जलती शलाका परीक्षा (Burning Candle Test):** पात्र के मुख के पास जलती तीली ले जाने पर यदि बुझ जाए तो CO2 बन रही है (सक्रिय किण्वन), यदि तेजी से जले तो अल्कोहल वाष्प है, यदि सामान्य जले तो संधान पूर्ण हो सकता है।
- चूना जल परीक्षा (Lime Water Test): पात्र से निकलने वाली गैस को चूने के पानी में प्रवाहित करने पर यदि वह दूधिया हो जाए तो CO2 बन रही है।
- अन्य लक्षण: विशिष्ट गंध आना, द्रव का स्थिर हो जाना, मुख्य द्रव्यों का नीचे बैठ जाना।
 
- निस्रावण एवं प्रक्षेप: संधान पूर्ण होने पर द्रव को सावधानी से छान लें।
- इसमें निर्धारित प्रक्षेप द्रव्यों का चूर्ण मिलाएं।
- धारण काल: प्रक्षेप मिलाने के बाद पुनः कुछ दिनों (7-15 दिन) के लिए बंद पात्र में रखें ताकि प्रक्षेप के गुण समाविष्ट हो जाएं।
- अंत में छानकर बोतलों में भर लें।
संधान प्रक्रिया में महत्वपूर्ण कारक:
- पात्र (Vessel): स्वच्छ, निर्जन्तुक, उचित आकार का।
- स्थान (Place): समान तापमान, हवादार, स्वच्छ।
- तापमान (Temperature): 25-30°C इष्टतम। कम या अधिक तापमान संधान को बाधित करता है।
- संधान काल (Duration): ऋतु अनुसार भिन्न (ग्रीष्म में कम, शीत में अधिक)।
- मधुर द्रव्य: गुड़/शर्करा/मधु की गुणवत्ता और मात्रा।
- धातकी पुष्प: किण्व का मुख्य स्रोत, इसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण।
- भस्म/प्रक्षेप: कुछ योगों में भस्म (जैसे लौहासव) या अन्य प्रक्षेप संधान के बाद मिलाए जाते हैं।
मात्रा (Dose):
2 से 4 तोला (24-48 ml), सामान्यतः 15-30 ml दिन में 2 बार भोजन के बाद समान मात्रा में जल मिलाकर।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
रंगीन कांच की बोतलों में, ठंडे स्थान पर रखें। आसव-अरिष्ट चिरकाल तक स्थायी रहते हैं ('आसवा अरिष्टाश्च सर्वे स्युः चिरस्थायिनो गुणाधिकाः')। इनकी कोई निश्चित सवीर्यता अवधि नहीं है, जितने पुराने हों उतने गुणकारी माने जाते हैं (यदि विकृत न हुए हों)।
अल्कोहल प्रतिशत (%): स्वयं जनित अल्कोहल की मात्रा सामान्यतः 5-12% v/v होती है।
उदाहरण (Examples):
- द्राक्षारिष्ट (Draksharishta): मुख्य घटक - द्राक्षा (मुनक्का) क्वाथ, गुड़, धातकी पुष्प, प्रक्षेप (त्रिजात, त्रिकटु आदि)। उपयोग - कास, श्वास, क्षय, दौर्बल्य, अर्श, अग्निमांद्य।
- उशीरासव (Usheerasava): मुख्य घटक - उशीर, कमल, लोध्र आदि का शीतल जल, शर्करा, मधु, धातकी पुष्प, प्रक्षेप (पाठ, मंजिष्ठा आदि)। उपयोग - रक्तपित्त, दाह, तृष्णा, पाण्डु, प्रमेह, त्वचा रोग।
- अन्य: दशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, कुमार्यासव, लोहासव, पुनर्नवासव।
अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):
संधान प्रक्रिया के मानकीकरण, अल्कोहल प्रतिशत नियंत्रण, यीस्ट की भूमिका, विभिन्न योगों की प्रभावशीलता और सुरक्षा पर निरंतर शोध हो रहे हैं। आसव-अरिष्ट बाजार में सर्वाधिक बिकने वाली आयुर्वेदिक कल्पनाओं में से हैं।
4. पथ्य कल्पना (Pathya Kalpana - Dietary Preparations)
परिभाषा एवं महत्व (Definition & Significance):
पथ्य (Pathya): 'पथः अनपेतम् इति पथ्यम्।' अर्थात् जो पथ (मार्ग - यहाँ स्रोतस् या स्वास्थ्य) के लिए हितकर हो, उसे पथ्य कहते हैं। यह रोगी के लिए सुपाच्य (Easily digestible), अग्नि वर्धक (Appetizer), दोष शामक और बल प्रदान करने वाला आहार है।
पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः।
                  पथ्येऽसति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः॥
व्याख्या: रोगी के लिए यदि पथ्य (हितकर आहार) का सेवन किया जा रहा हो, तो औषध सेवन की क्या आवश्यकता है? और यदि पथ्य का सेवन नहीं किया जा रहा हो, तो औषध सेवन का क्या लाभ है? (अर्थात् चिकित्सा में पथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है)।
पथ्य कल्पना: रोगी की अग्नि, बल, दोष और रोग की अवस्था के अनुसार आहार द्रव्यों (जैसे चावल, दाल, सब्जियां) को विभिन्न विधियों से पकाकर सुपाच्य और हितकर स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया पथ्य कल्पना कहलाती है।
प्रकार एवं सामान्य निर्माण विधि (Types & General Method):
प्रमुख पथ्य कल्पनाएं, विशेषकर **पेय कल्पना (Peya Kalpana - Rice/Cereal based preparations)**, निम्नलिखित हैं, जो उत्तरोत्तर गुरु होती हैं:
- मण्ड (Manda): चावल (1 भाग) को 14 गुना जल में पकाकर, बिना चावल के कणों वाला, केवल मांड (Supernatant liquid) लेना। (अत्यंत लघु, दीपन, अनुलोमन)।
- पेया (Peya): चावल (1 भाग) को 14 गुना जल में पकाकर, जिसमें चावल के कण (सिक्त) बहुत कम हों, अधिक द्रव भाग हो। (मण्ड से गुरु, दीपन, पाचन, ग्राही)।
- विलेपी (Vilepi): चावल (1 भाग) को 4 गुना जल में पकाकर, जिसमें द्रव कम और चावल के कण (सिक्त) अधिक हों, गाढ़ी हो। (पेया से गुरु, ग्राही, तर्पण, बल्य)।
- यवागू (Yavagu): चावल (1 भाग) को 6 गुना जल में पकाकर, जिसमें द्रव और चावल के कण समान हों (न गाढ़ी न पतली)। इसमें औषध द्रव्य मिलाकर भी बनाया जाता है (औषध सिद्ध यवागू)। (विलेपी से गुरु, दोषानुसार प्रयोग)।
- ओदन/अन्न (Odana/Anna): चावल (1 भाग) को 5 गुना जल में पकाकर, जब चावल पक जाए और पानी सूख जाए (भात)। (सबसे गुरु, सामान्य आहार)।
अन्य पथ्य कल्पनाएं:
- कृशरा (Krishara): चावल, दाल (प्रायः मूंग), घी/तैल और मसालों (जैसे त्रिकटु) को मिलाकर पकाई गई खिचड़ी। (बृंहण, बल्य, वात शामक)।
- यूष (Yusha): दालों (प्रायः मूंग) या अन्य शमी धान्यों को 14 या 18 गुना जल में पकाकर बनाया गया सूप (Soup)। इसे कृत (घी/मसालों से छौंका हुआ) या अकृत (बिना छौंका) रूप में प्रयोग करते हैं। (लघु, दीपन, पाचन, स्रोतोग्लानिकर)। मुद्ग यूष श्रेष्ठ माना गया है।
- तक्र कल्पना (Takra Kalpana): छाछ (Buttermilk) में औषध द्रव्य मिलाकर या सिद्ध करके प्रयोग करना (जैसे तक्रारिष्ट, तक्र धारा)। (लघु, ग्राही, दीपन, अर्श-ग्रहणी में उत्तम)।
- खड (Khada): तक्र में बेसन या सत्तू और औषध द्रव्य मिलाकर पकाया गया गाढ़ा पेय। (रुचिकर, दीपन)।
- काम्बलिक (Kambalika): तक्र, अम्ल द्रव्य (जैसे अनारदाना), तिल कल्क, स्नेह और मसालों से बना गाढ़ा योग।
- राग (Raga) / षाडव (Shadava): फलों के रस या गूदे में शर्करा, लवण, मसाले मिलाकर बनाया गया चटनी जैसा योग (Sweet & sour appetizer)।
महत्व (Significance):
- रोग की अवस्था में जब जठराग्नि मंद होती है, तब ये कल्पनाएं सुपाच्य पोषण प्रदान करती हैं।
- शोधन कर्म (पंचकर्म) के पश्चात् अग्नि को धीरे-धीरे बढ़ाने (संसर्जन क्रम) में इनका प्रयोग होता है।
- विभिन्न रोगों में दोषानुसार विशिष्ट पथ्य कल्पना का निर्देश होता है।
अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):
विभिन्न पथ्य कल्पनाओं के पोषण मूल्य (Nutritional value), पाचन पर प्रभाव और विशिष्ट रोगों में उनकी उपयोगिता पर शोध हो रहे हैं। आजकल बाजार में इंस्टेंट खिचड़ी, सूप मिक्स, हर्बल ड्रिंक्स आदि के रूप में पथ्य कल्पनाओं से मिलते-जुलते अनेक डाइटरी सप्लीमेंट्स (Dietary Supplements) उपलब्ध हैं, जिनकी गुणवत्ता और शास्त्रीयता का मूल्यांकन आवश्यक है।
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- अवलेह कल्पना का सोदाहरण वर्णन करें (परिभाषा, विधि, पाक परीक्षा, मात्रा, सेवन काल)।
- स्नेह कल्पना का उद्देश्य बताते हुए सामान्य निर्माण विधि, मूर्छन, स्नेह पाक परीक्षा (त्रिविध पाक) और आवर्तन का वर्णन करें।
- संधान कल्पना क्या है? आसव एवं अरिष्ट में भेद स्पष्ट करते हुए सामान्य निर्माण विधि, संधान परीक्षा एवं महत्वपूर्ण कारकों का वर्णन करें।
- पथ्य कल्पना का महत्व बताते हुए पेय कल्पना (मण्ड, पेया, विलेपी, यवागू, ओदन) का सविस्तार वर्णन करें।
- Define and describe Avaleha Kalpana in detail covering method of preparation, Paka Pariksha, dose, shelf life with examples like Vasavaleha.
- Explain the aims of Sneha Kalpana. Describe the general method of preparation including Murchhana, Sneha Paka Pariksha (Trividha Paka) and concept of Avartana with examples like Phala Ghrita.
- What is Sandhana Kalpana? Differentiate between Asava and Arishta. Describe the general method of preparation, Sandhana Pariksha, and important factors affecting fermentation with examples like Draksharista.
- Discuss the importance of Pathya Kalpana. Describe Peya Kalpana (Manda, Peya, Vilepi, Yavagu, Odana) in detail.
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- अवलेह की परिभाषा एवं पाक सिद्धि लक्षण।
- स्नेह कल्पना का उद्देश्य एवं प्रकार।
- घृत मूर्छन एवं तैल मूर्छन।
- स्नेह पाक के त्रिविध पाक (मृदु, मध्यम, खर)।
- स्नेह कल्पना में आवर्तन।
- आसव एवं अरिष्ट में अंतर।
- संधान कल्पना में धातकी पुष्प का महत्व।
- संधान परीक्षा (जलती शलाका, चूना जल)।
- पथ्य की परिभाषा एवं महत्व।
- पेय कल्पना का वर्गीकरण (मण्ड से ओदन तक)।
- यूष कल्पना पर टिप्पणी लिखें।
- क्षीर पाक कल्पना।
- चूर्ण कल्पना।
- अर्क कल्पना।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- अवलेह का पर्याय? (लेह/पाक)
- अवलेह पाक परीक्षा का एक लक्षण? (तन्तुमत्ता/अप्सु मज्जनम्)
- स्नेह पाक से पूर्व क्या करना आवश्यक है? (मूर्छन)
- पानार्थ श्रेष्ठ स्नेह पाक? (मध्यम)
- नस्यार्थ श्रेष्ठ स्नेह पाक? (मृदु)
- क्षीरबला तैल 101 आवर्ती - यहाँ आवर्तन का क्या अर्थ है? (पाक प्रक्रिया को 101 बार दोहराना)
- आसव बिना उबाले बनता है या उबालकर? (बिना उबाले)
- अरिष्ट किससे बनता है? (क्वाथ से)
- संधान में प्रयुक्त मुख्य किण्व द्रव्य? (धातकी पुष्प)
- आसव-अरिष्ट की सवीर्यता अवधि? (चिर स्थायी)
- पथ्य का अर्थ? (स्रोतसों/स्वास्थ्य के लिए हितकर)
- सबसे लघु पेय कल्पना? (मण्ड)
- सबसे गुरु पेय कल्पना? (ओदन)
- मूंग दाल के सूप को क्या कहते हैं? (मुद्ग यूष)
- चावल, दाल, घी, मसालों से बनी कल्पना? (कृशरा)
 
 
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