Amidha Ayurveda

08/11/25

वजन कैसे घटाएं: मोटापा कम करने के लिए संपूर्ण आयुर्वेदिक गाइड

वजन कैसे घटाएं: मोटापा कम करने के लिए संपूर्ण आयुर्वेदिक गाइड

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और एक मापने वाले टेप के साथ वजन घटाने की अवधारणा को दर्शाती एक छवि।

क्या आप वजन घटाने (weight loss) के लिए "क्रैश डाइट" और थका देने वाले वर्कआउट से थक चुके हैं? क्या आप उन जिद्दी किलो, खासकर पेट की चर्बी (belly fat) से निराश हैं, जो कम होने का नाम ही नहीं ले रहे? यदि हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। आधुनिक वजन घटाने के तरीके अक्सर हमें भूखा और कमजोर महसूस कराते हैं, और जो वजन कम होता है, वह जल्दी ही वापस आ जाता है।

आयुर्वेद, भारत की 5000 साल पुरानी चिकित्सा पद्धति, इस समस्या का एक अलग और स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। आयुर्वेद के अनुसार, वजन बढ़ना केवल 'कैलोरी ज्यादा खाने' की समस्या नहीं है; यह एक गहरा चयापचय (metabolic) असंतुलन है।

आयुर्वेद का मानना है कि मोटापे (Sthaulya) का मूल कारण आपकी **'मंद अग्नि' (Manda Agni)** यानी आपकी कमजोर पाचन अग्नि है। जब आपकी अग्नि धीमी होती है, तो आप भोजन को ठीक से पचा नहीं पाते, जिससे 'आम' (विषाक्त पदार्थ) बनता है और 'मेद धातु' (वसा ऊतक) का अत्यधिक निर्माण होता है।

इसलिए, **आयुर्वेदिक इलाज** का ध्यान आपको भूखा रखने पर नहीं, बल्कि आपकी पाचन अग्नि को फिर से प्रज्वलित करने और आपके शरीर के **कफ दोष (Kapha Dosha)** को शांत करने पर है।

इस संपूर्ण गाइड में, हम "वजन कैसे घटाएं" की पहेली को सुलझाने के लिए आयुर्वेदिक ज्ञान की गहराई में उतरेंगे। एक BAMS छात्र के रूप में, मैं आपको शास्त्रीय सिद्धांतों और आधुनिक विज्ञान दोनों के आधार पर व्यावहारिक, करने योग्य उपाय (actionable steps) प्रदान करूँगा। हम जानेंगे कि मोटापा कम करने के लिए क्या खाना चाहिए, कौन सी जड़ी-बूटियाँ आपकी 'पेट की चर्बी' को कम कर सकती हैं, और कैसे कुछ सरल घरेलू उपाय आपके चयापचय को 'रीसेट' (reset) कर सकते हैं।

लेख संक्षेप में (In Brief)

  • जड़ कारण पहचानें: आयुर्वेद के अनुसार, मोटापा 'मंद अग्नि' (धीमा चयापचय) और बढ़े हुए 'कफ दोष' (भारीपन) के कारण होता है।
  • कफ-शांत आहार: हल्के, गर्म, सूखे, मसालेदार, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थ (जैसे जौ, बाजरा, हरी सब्जियां, अदरक) खाएं। डेयरी, मीठा, ठंडा और तला हुआ भोजन कम करें।
  • अग्नि प्रज्वलित करें: गर्म नींबू-शहद पानी, त्रिकटु, त्रिफला जैसे घरेलू उपाय चयापचय को बढ़ाते हैं और 'आम' (विष) को जलाते हैं।
  • गतिमान रहें: कफ को संतुलित करने के लिए नियमित, जोरदार व्यायाम (जैसे तेज चलना, सूर्य नमस्कार, कपालभाति) आवश्यक है। दिन में सोने से बचें।
  • समग्र दृष्टिकोण: आयुर्वेदिक वजन घटाना केवल कैलोरी गिनना नहीं है, बल्कि पाचन, चयापचय और जीवनशैली को संतुलित करना है।
एक असंतुलित कफ दोष और मंद अग्नि को दर्शाती एक आयुर्वेदिक छवि, जो मोटापे का मुख्य कारण है।

अध्याय 1: मोटापा क्यों होता है? आयुर्वेद का दृष्टिकोण (Sthaulya Roga)

आधुनिक चिकित्सा मोटापे को "कैलोरी इन बनाम कैलोरी आउट" (calories in vs. calories out) के असंतुलन के रूप में देखती है। आयुर्वेद इससे एक कदम आगे बढ़कर पूछता है: "यह असंतुलन *क्यों* होता है?"

आयुर्वेद में, मोटापे को 'स्थौल्य रोग' (Sthaulya Roga) या 'मेदोरोग' (Medoroga) कहा जाता है। यह मुख्य रूप से दो कारणों से होता है:

  1. मंद अग्नि (Manda Agni): आपकी पाचन अग्नि का धीमा या सुस्त होना।
  2. कफ दोष का बढ़ना (Kapha Dosha Aggravation): शरीर में 'पृथ्वी' और 'जल' तत्वों की अधिकता।

1. मंद अग्नि (धीमा चयापचय)

आपकी 'अग्नि' आपके चयापचय (metabolism) की सीट है। जब यह अग्नि मंद (धीमी) होती है, तो यह आपके द्वारा खाए गए भोजन को पूरी तरह से पचा नहीं पाती है। यह अधपका भोजन 'आम' (Ama) नामक एक चिपचिपा, विषाक्त अवशेष बनाता है।

यह 'आम' शरीर के सूक्ष्म चैनलों (srotas) को अवरुद्ध (clog) कर देता है। यह 'मेद धातु' (वसा ऊतक) के चयापचय के लिए जिम्मेदार 'मेदो-धात्वाग्नि' को भी बुझा देता है। परिणाम? शरीर ऊर्जा जलाने के बजाय वसा का भंडारण (storage) करना शुरू कर देता है। क्या आप जानना चाहते हैं कि आपकी अग्नि का प्रकार क्या है? हमारा अग्नि मूल्यांकन क्विज़ लें।

2. कफ दोष का बढ़ना (Kapha Aggravation)

कफ दोष, जो पृथ्वी और जल से बना है, स्वाभाविक रूप से 'भारी', 'धीमा', 'ठंडा' और 'तैलीय' (oily) होता है। यह हमारे शरीर में संरचना और चिकनाई (lubrication) प्रदान करता है।

जब हम बहुत अधिक 'कफ-वर्धक' आहार लेते हैं (जैसे मीठा, ठंडा, तैलीय भोजन) और एक गतिहीन (sedentary) जीवन जीते हैं, तो कफ दोष नियंत्रण से बाहर हो जाता है। यह बढ़ा हुआ कफ 'मेद धातु' (वसा ऊतक) के अत्यधिक संचय (accumulation) को बढ़ावा देता है, विशेष रूप से पेट, कूल्हों और जांघों के आसपास। यह वही है जिसे हम 'पेट की चर्बी' (belly fat) कहते हैं।

इसलिए, **मोटापे का आयुर्वेदिक इलाज** इन दो सिद्धांतों पर केंद्रित है: 1) अग्नि को प्रज्वलित करना, और 2) बढ़े हुए कफ दोष को शांत करना।

अपनी अनूठी दोष प्रकृति को समझने के लिए, हमारा प्रकृति क्विज़ (Prakriti Quiz) अवश्य लें।

एक कफ-शांत करने वाला आयुर्वेदिक आहार, जिसमें हल्की सब्जियां, बाजरा और दालें शामिल हैं।

अध्याय 2: वजन घटाने के लिए आहार (Ahar) - कफ को शांत करना

वजन कम करने के लिए आपको भूखा रहने की जरूरत नहीं है; आपको बस होशियारी से खाने की जरूरत है। आयुर्वेद का सिद्धांत सरल है: 'जैसे को तैसा बढ़ाता है' (like increases like)। चूंकि कफ 'भारी', 'ठंडा' और 'तैलीय' होता है, इसलिए आपको इसके विपरीत गुणों वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए: **हल्का (Light), गर्म (Warm), और रूखा (Dry)**।

स्वाद (रस) के संदर्भ में, आपको **कटु (Pungent - मसालेदार), तिक्त (Bitter - कड़वा), और कषाय (Astringent - कसैला)** स्वादों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि ये कफ को कम करते हैं।

क्या खाना चाहिए (Foods to Favor) - पेट की चर्बी घटाने के लिए

  • अनाज (Grains): भारी गेहूं और चावल के बजाय हल्के अनाज चुनें। **जौ (Barley)** को आयुर्वेद में 'लेखन' (sc-raping) गुणों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। बाजरा (Millets) जैसे रागी, ज्वार और क्विनोआ भी उत्कृष्ट हैं।
  • दालें (Lentils): मूंग दाल (विशेषकर छिलके वाली) पचने में सबसे हल्की होती है। चना, राजमा और अन्य फलियाँ (कसैले स्वाद वाली) भी अच्छी हैं।
  • सब्जियां (Vegetables): सभी कड़वी और तीखी सब्जियां। हरी पत्तेदार सब्जियां (पालक, मेथी, केल), ब्रोकोली, फूलगोभी, और पत्तागोभी।
  • फल (Fruits): मीठे फलों के बजाय कसैले और हल्के फल चुनें। सेब, अनार, जामुन (berries), और पपीता सबसे अच्छे हैं।
  • मसाले (Spices): ये आपके सबसे अच्छे दोस्त हैं! अदरक, हल्दी, काली मिर्च, पिप्पली, दालचीनी, और जीरा। ये सभी 'अग्नि' को प्रज्वलित करते हैं।
  • पेय (Drinks): दिन भर गर्म पानी पिएं। यह 'आम' को घोलता है और चयापचय को बढ़ाता है।

क्या नहीं खाना चाहिए (Foods to Avoid) - मोटापा बढ़ाने वाले

आपको **मधुर (Sweet), अम्ल (Sour), और लवण (Salty)** स्वादों को सीमित करना चाहिए।

  • डेयरी (Dairy): दूध, पनीर, और विशेष रूप से **दही (Yogurt/Curd)** को आयुर्वेद में कफ बढ़ाने वाला और 'अभिष्यंदी' (चैनलों को अवरुद्ध करने वाला) माना जाता है। (छाछ, या छाछ, एक अपवाद है और फायदेमंद है)।
  • मीठा (Sweet): सभी प्रकार की परिष्कृत चीनी (refined sugar), मिठाइयाँ, केक, और कोल्ड ड्रिंक्स।
  • तला हुआ और भारी भोजन: पकोड़े, समोसे, और कोई भी डीप-फ्राइड भोजन।
  • ठंडे खाद्य पदार्थ और पेय: आइसक्रीम, बर्फ का पानी, और रेफ्रिजरेटर से सीधे निकाले गए खाद्य पदार्थ। ये आपकी 'अग्नि' को तुरंत बुझा देते हैं।
  • अत्यधिक खट्टे और नमकीन खाद्य पदार्थ: अचार, चिप्स और अत्यधिक नमक।

"आयुर्वेद में, शहद (Honey) को वजन घटाने के लिए एक 'योगवाही' (catalyst) माना जाता है। इसमें 'लेखन' (खुरचने वाला) गुण होता है जो वसा (fat) और कफ को खुरचता है। लेकिन, आयुर्वेद का एक अटूट नियम है: शहद को कभी भी गर्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि गर्म करने पर यह विष (toxin) बन जाता है।"

वजन घटाने के लिए आयुर्वेदिक घरेलू उपाय, जैसे शहद, नींबू, अदरक और त्रिकटु।

अध्याय 3: मोटापा कम करने के 7 अचूक घरेलू उपाय

अपने आहार को समायोजित करने के साथ, आप अपने चयापचय को तेज करने और 'आम' को जलाने के लिए इन शक्तिशाली आयुर्वेदिक घरेलू उपायों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं।

1. गर्म नींबू-शहद पानी (Warm Lemon-Honey Water)

क्यों: यह क्लासिक उपाय काम करता है। गर्म पानी अग्नि को प्रज्वलित करता है, नींबू आंतों को साफ करता है, और शहद (जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है) में वसा को 'खुरचने' (scraping) का गुण होता है।
कैसे करें: सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने (गर्म नहीं) पानी में आधा नींबू निचोड़ें और एक चम्मच कच्चा शहद मिलाएं।

2. त्रिकटु (Trikatu) - मेटाबोलिक पावरहाउस

क्यों: त्रिकटु तीन तीखी जड़ी-बूटियों - सोंठ (सूखा अदरक), काली मिर्च (मरिच), और पिप्पली (लंबी काली मिर्च) का एक संयोजन है। यह 'मंद अग्नि' के लिए सबसे अच्छा आयुर्वेदिक सूत्र है। यह चयापचय को तेज करता है, 'आम' को जलाता है और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है।
कैसे करें: दोपहर और रात के खाने से 15 मिनट पहले आधा चम्मच त्रिकटु चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ लें।

3. त्रिफला (Triphala) - कोमल सफाई

क्यों: मोटापा अक्सर पुरानी कब्ज (constipation) और आंतों में विषाक्त पदार्थों के जमा होने से जुड़ा होता है। त्रिफला (आंवला, हरड़, बहेड़ा) एक हल्का रेचक (laxative) और 'रसायन' (rejuvenator) है जो धीरे-धीरे कोलन (colon) की सफाई करता है और विषहरण (detoxification) का समर्थन करता है।
कैसे करें: रात को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गर्म पानी के साथ लें।

4. दालचीनी (Cinnamon)

क्यों: दालचीनी (त्वक) पचने में मीठी और गर्म होती है। यह कफ को कम करती है, अग्नि को बढ़ाती है, और रक्त शर्करा (blood sugar) को नियंत्रित करने में मदद करती है, जो cravings को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
कैसे करें: अपनी सुबह की चाय में एक चुटकी दालचीनी पाउडर मिलाएं या इसे अपने दलिया पर छिड़कें।

5. गुग्गुलु (Guggulu)

क्यों: गुग्गुलु एक राल (resin) है जो अपने 'लेखन' (खुरचने) गुणों के लिए प्रसिद्ध है। यह शरीर में अतिरिक्त 'मेद' (वसा) और 'कफ' को खुरचता है। यह कोलेस्ट्रॉल को प्रबंधित करने में भी मदद करता है।
कैसे करें: गुग्गुलु को आमतौर पर 'त्रिफला गुग्गुलु' या 'मेदोहर गुग्गुलु' जैसी शास्त्रीय गोलियों के रूप में लिया जाता है, जिसे किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही लेना चाहिए।

6. अदरक और लहसुन (Ginger and Garlic)

क्यों: ये दोनों तीखी जड़ी-बूटियाँ अग्नि को शक्तिशाली रूप से प्रज्वलित करती हैं, परिसंचरण (circulation) में सुधार करती हैं और 'आम' को नष्ट करती हैं।
कैसे करें: अपने दैनिक खाना पकाने में ताजे अदरक और लहसुन का उदारतापूर्वक (generously) उपयोग करें।

7. विजयसार (Vrikshamla or Garcinia Cambogia)

क्यों: आधुनिक समय में यह बहुत लोकप्रिय है, लेकिन आयुर्वेद में इसका उपयोग सदियों से किया जाता रहा है। वृक्षाम्ल में कसैला और खट्टा स्वाद होता है। ऐसा माना जाता है कि यह भूख को कम करता है और शरीर की वसा बनाने की क्षमता को अवरुद्ध करता है।
कैसे करें: यह आमतौर पर कैप्सूल या पाउडर के रूप में भोजन से पहले लिया जाता है।

एक व्यक्ति सूर्य नमस्कार (Sun Salutation) कर रहा है, जो वजन घटाने के लिए एक प्रभावी आयुर्वेदिक व्यायाम है।

अध्याय 4: जीवनशैली (Vihar) - कफ को गतिमान करना

आप दुनिया का सबसे अच्छा 'कफ-शांत' आहार खा सकते हैं, लेकिन यदि आप अपना पूरा दिन सोफे पर बिताते हैं, तो आप कभी भी अपना वजन कम नहीं कर पाएंगे। कफ की 'स्थिर' (stable) और 'भारी' (heavy) प्रकृति का मुकाबला करने के लिए **गति (Movement)** और **उत्तेजना (Stimulation)** आवश्यक है।

आपकी दिनचर्या (Dinacharya) आपकी वजन घटाने की यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

1. व्यायाम (Vyayama) - यह गैर-परक्राम्य (Non-Negotiable) है

कफ प्रकृति वाले लोगों को अन्य दोषों की तुलना में अधिक जोरदार (vigorous) और लंबे समय तक व्यायाम की आवश्यकता होती है।

  • सुबह व्यायाम करें: कफ को कम करने के लिए सबसे अच्छा समय सुबह 6 से 10 बजे के बीच है, जो दिन का कफ समय है।
  • पसीना बहाएं: आपका लक्ष्य पसीना बहाना है। हल्की सैर पर्याप्त नहीं है। तेज चलना (Brisk walking), दौड़ना (running), साइकिल चलाना, तैरना, या गतिशील 'सूर्य नमस्कार' (Sun Salutations) करें।
  • प्राणायाम (Pranayama): 'कपालभाति' (Skull-Shining Breath) और 'भस्त्रिका' (Bellows Breath) जैसे गर्म करने वाले प्राणायाम आपके चयापचय को तेज करने और अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए उत्कृष्ट हैं।

2. उद्वर्तन (Udvartana) - आयुर्वेदिक पाउडर मालिश

तेल मालिश ('अभ्यंग') के विपरीत, जो कफ को बढ़ा सकती है, 'उद्वर्तन' वजन घटाने के लिए अनुशंसित मालिश है। इसमें हर्बल पाउडर (जैसे त्रिफला या चने के आटे) से शरीर पर ऊपर की ओर (हृदय की ओर) सूखी मालिश की जाती है। यह परिसंचरण को बढ़ाता है, लसीका प्रणाली (lymphatic system) को उत्तेजित करता है, और त्वचा के नीचे जमा वसा को तोड़ने में मदद करता है।

3. नींद (Nidra) - जल्दी सोना, और जल्दी उठना

यह कफ के लिए महत्वपूर्ण है।

  • देर तक सोने से बचें: सुबह 6 बजे के बाद सोना (कफ समय में) आपके शरीर में भारीपन और सुस्ती को बढ़ाता है, जिससे वजन बढ़ता है। सूर्योदय से पहले उठने का लक्ष्य रखें।
  • दिन में सोने से बचें: आयुर्वेद के अनुसार, दिन में सोना (दिवास्वप्न) कफ और मेद धातु को बढ़ाता है। यह वजन घटाने के लिए सख्त वर्जित है (केवल गर्मियों में थोड़ी देर झपकी लेने को छोड़कर)।
वजन घटाने के लिए उन्नत आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ जैसे गुग्गुलु और विजयसार।

अध्याय 5: वजन घटाने के लिए उन्नत आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ

घरेलू उपचारों के अलावा, आयुर्वेद में कुछ विशेष जड़ी-बूटियाँ हैं जो 'मेद धातु' (वसा ऊतक) और 'कफ' को लक्षित करती हैं। इन्हें अक्सर आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के बाद ही लिया जाता है।

  • मेदोहर गुग्गुलु (Medohar Guggulu): यह गुग्गुलु, त्रिकटु, त्रिफला और अन्य जड़ी-बूटियों का एक शास्त्रीय मिश्रण है जो विशेष रूप से वसा चयापचय को बेहतर बनाने और वजन कम करने के लिए बनाया गया है।
  • आरोग्यवर्धिनी वटी (Arogyavardhini Vati): यह यकृत (liver) को डिटॉक्स करने और पाचन अग्नि को मजबूत करने में मदद करती है, जो वसा चयापचय के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पुनर्नवादि मंडूर (Punarnavadi Mandoor): यह शरीर से अतिरिक्त पानी (water retention) को निकालने में मदद करता है और एनीमिया (जो अक्सर मोटापे से जुड़ा होता है) को भी ठीक करता है।
  • शिलाजित (Shilajit): यह एक शक्तिशाली 'रसायन' है जो चयापचय को बढ़ाता है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे व्यायाम करने की क्षमता बढ़ती है।

चिकित्सकीय सलाह आवश्यक

ये उन्नत आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन हैं और इन्हें केवल एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही लिया जाना चाहिए, जो आपकी प्रकृति (Prakriti) और विकृति (Vikriti) के अनुसार सही खुराक निर्धारित कर सके।

पंचकर्म उपचार जैसे विरेचन और बस्ति को दर्शाती एक छवि।

अध्याय 6: पंचकर्म (Panchakarma) - गहन विषहरण और वजन घटाना

गहरे बैठे 'आम' और अत्यधिक कफ के लिए, आयुर्वेद पंचकर्म नामक एक गहन विषहरण (detoxification) प्रक्रिया की सिफारिश करता है। यह वजन घटाने की प्रक्रिया को 'किक-स्टार्ट' (kick-start) करने का एक शक्तिशाली तरीका हो सकता है।

  • वमन (Vamana): यह एक चिकित्सीय उल्टी प्रक्रिया है जो पेट और छाती से अतिरिक्त कफ को प्रभावी ढंग से हटाती है। यह कफ-प्रधान मोटापे के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। (केवल विशेषज्ञ मार्गदर्शन में किया जाता है)।
  • विरेचन (Virechana): एक औषधीय शुद्धिकरण (purgation) जो पित्त और कफ को आंतों से निकालता है और यकृत को डिटॉक्स करता है।
  • बस्ति (Basti): औषधीय तेल या काढ़े का एनिमा, जो वात को शांत करता है और कोलन को साफ करता है, जिससे चयापचय में सुधार होता है।
  • उद्वर्तन (Udvartana): जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यह सूखा पाउडर मालिश पंचकर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पंचकर्म उपचार एक प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।

एक व्यक्ति धीरे-धीरे और ध्यान से भोजन कर रहा है, जो दिमागी खाने को दर्शाता है।

अध्याय 7: दिमागी खाने की कला (The Art of Mindful Eating)

आयुर्वेद हमें सिखाता है कि *कैसे* खाना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि *क्या* खाना। वजन बढ़ने का एक बड़ा कारण बिना सोचे-समझे, जल्दबाजी में या तनाव में खाना है।

  • अपनी इंद्रियों को शामिल करें: अपने भोजन को देखें, सूंघें, और उसके स्वाद और बनावट पर ध्यान दें। यह आपके मस्तिष्क को संकेत देता है कि आप खा रहे हैं और संतुष्टि (satiety) के संकेतों को बेहतर बनाता है।
  • धीरे-धीरे खाएं और अच्छी तरह चबाएं: आपके मस्तिष्क को यह महसूस करने में लगभग 20 मिनट लगते हैं कि आपका पेट भर गया है। धीरे-धीरे खाने से आप अधिक खाने से बचते हैं।
  • भूख और परिपूर्णता के संकेतों को सुनें: केवल तब खाएं जब आपको सच्ची भूख लगी हो (पेट में गुड़गुड़ाहट, ऊर्जा में कमी) और तब रुकें जब आप संतुष्ट महसूस करें, न कि पूरी तरह से भरे हुए।
  • भोजन करते समय विकर्षणों से बचें: टीवी, फोन या कंप्यूटर के सामने खाने से बचें। यह आपको अधिक खाने और खराब पाचन की ओर ले जाता है।

दिमागी खाना आपकी अग्नि को मजबूत करता है और आपके शरीर को भोजन को बेहतर ढंग से आत्मसात करने में मदद करता है।

पेट की चर्बी कम करने के लिए कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करती एक महिला।

अध्याय 8: पेट की चर्बी (Belly Fat) पर विशेष ध्यान

पेट के आसपास वसा का जमा होना अक्सर 'मंद अग्नि' और तनाव का संकेत होता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण इसे कम करने के लिए बहुआयामी है:

  • अग्नि दीपन: जैसा कि अध्याय 3 में बताया गया है, त्रिकटु और गर्म पानी का नियमित सेवन करें।
  • कपालभाति प्राणायाम: यह श्वास तकनीक पेट की मांसपेशियों को सक्रिय करती है, अग्नि को बढ़ाती है और चयापचय को तेज करती है। रोज सुबह 5-10 मिनट अभ्यास करें।
  • सूर्य नमस्कार: यह गतिशील योग प्रवाह पेट के अंगों की मालिश करता है और कोर मांसपेशियों को मजबूत करता है।
  • तनाव प्रबंधन: पेट की चर्बी अक्सर कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के उच्च स्तर से जुड़ी होती है। ध्यान (Meditation), योग निद्रा और भ्रामरी प्राणायाम तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
  • उद्वर्तन: पेट क्षेत्र पर हर्बल पाउडर से मालिश परिसंचरण को बढ़ा सकती है और वसा को तोड़ने में मदद कर सकती है।
स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम के साथ संतुलित जीवन शैली को दर्शाती एक छवि।

अध्याय 9: वजन कम करने के बाद उसे बनाए रखना (Maintaining Weight Loss)

वजन कम करना आधी लड़ाई है; इसे दूर रखना असली चुनौती है। आयुर्वेद एक स्थायी जीवन शैली पर जोर देता है:

  • अपनी प्रकृति के अनुसार खाएं: अपनी दोष-संतुलनकारी आहार योजना का पालन करते रहें, भले ही आपने अपना लक्ष्य वजन प्राप्त कर लिया हो।
  • नियमित व्यायाम जारी रखें: अपनी गतिविधि के स्तर को बनाए रखें। व्यायाम केवल वजन घटाने के लिए नहीं, बल्कि समग्र स्वास्थ्य के लिए है।
  • अपनी दिनचर्या बनाए रखें: नियमित भोजन और सोने का समय आपके चयापचय को स्थिर रखता है।
  • मौसमी सफाई (ऋतु शुद्धि): वर्ष में एक या दो बार (विशेषकर वसंत ऋतु में) एक कोमल आयुर्वेदिक सफाई (जैसे खिचड़ी मोनो-डाइट) करना आपके सिस्टम को रीसेट करने और 'आम' को जमा होने से रोकने में मदद कर सकता है।
  • खुद के प्रति दयालु रहें: कभी-कभी उतार-चढ़ाव होंगे। पूर्णता का लक्ष्य न रखें, संतुलन का लक्ष्य रखें।
एक व्यक्ति मिठाई खाने की इच्छा को आयुर्वेदिक तरीकों से नियंत्रित कर रहा है।

अध्याय 10: क्रेविंग्स (Cravings) को कैसे संभालें? आयुर्वेदिक समाधान

वजन घटाने की यात्रा में क्रेविंग्स यानी किसी खास चीज़ को खाने की तीव्र इच्छा एक बड़ी बाधा हो सकती है, खासकर मीठे और तले हुए भोजन के लिए। आयुर्वेद क्रेविंग्स को केवल इच्छाशक्ति की कमी के रूप में नहीं देखता, बल्कि शरीर में गहरे असंतुलन के संकेत के रूप में देखता है।

  • मीठे की क्रेविंग: अक्सर शरीर में 'पृथ्वी' और 'जल' (कफ) तत्वों की कमी या असंतुलन का संकेत देती है। इसे शांत करने के लिए, प्राकृतिक रूप से मीठे, गर्म खाद्य पदार्थ जैसे खजूर, अंजीर, या दालचीनी और इलायची के साथ पकाया गया सेब खाएं।
  • नमकीन की क्रेविंग: शरीर में खनिजों की कमी या 'जल' तत्व के असंतुलन का संकेत हो सकती है। परिष्कृत नमक के बजाय, सेंधा नमक या काले नमक का कम मात्रा में उपयोग करें। नारियल पानी पीना भी मदद कर सकता है।
  • तले हुए या भारी भोजन की क्रेविंग: अक्सर 'वायु' (वात) के बढ़ने या शरीर में पोषण की कमी का संकेत देती है। गर्म, पौष्टिक और स्वस्थ वसा (जैसे घी या एवोकैडो) वाला भोजन खाएं।
  • 6 रसों का संतुलन: आयुर्वेद के अनुसार, प्रत्येक भोजन में सभी 6 स्वादों (मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, तीखा, कसैला) का संतुलन होना चाहिए। जब आप सभी स्वादों से संतुष्ट होते हैं, तो क्रेविंग्स स्वाभाविक रूप से कम हो जाती हैं।
  • त्रिफला का उपयोग: रात में त्रिफला लेने से आंतें साफ होती हैं और यह क्रेविंग्स को कम करने में भी मदद कर सकता है।
एक व्यक्ति वजन घटाने की आम गलतियों जैसे अत्यधिक परहेज़ के बारे में सोच रहा है।

अध्याय 11: आयुर्वेदिक वजन घटाने में आम गलतियाँ

आयुर्वेदिक सिद्धांतों का पालन करते हुए भी, कुछ सामान्य गलतियाँ आपकी प्रगति को धीमा कर सकती हैं:

  • अत्यधिक रूखापन: कफ को कम करने के प्रयास में, लोग अक्सर बहुत अधिक रूखे (dry) खाद्य पदार्थ (जैसे सलाद, क्रैकर) खाते हैं और पर्याप्त स्वस्थ वसा (घी) नहीं लेते। इससे 'वात' बढ़ सकता है, जिससे कब्ज और चिंता हो सकती है। संतुलन महत्वपूर्ण है।
  • गलत समय पर भोजन करना: आयुर्वेद भोजन के समय पर बहुत जोर देता है। देर रात खाना या मुख्य भोजन छोड़ना आपकी अग्नि को बाधित करता है, भले ही आप 'सही' भोजन खा रहे हों।
  • पर्याप्त व्यायाम न करना: कफ प्रकृति वाले लोगों के लिए, केवल आहार पर्याप्त नहीं है। जोरदार व्यायाम कफ की जड़ता को तोड़ने के लिए आवश्यक है।
  • केवल वजन पर ध्यान देना: आयुर्वेदिक वजन घटाना केवल तराजू पर संख्या कम करना नहीं है। यह आपकी ऊर्जा के स्तर, पाचन, नींद और समग्र कल्याण में सुधार के बारे में है। इन संकेतों पर ध्यान दें, न कि केवल किलो पर।
  • धैर्य की कमी: आयुर्वेद त्वरित समाधान नहीं है। शरीर को संतुलन में वापस आने में समय लगता है। सुसंगत रहें और प्रक्रिया पर भरोसा करें।
एक व्यक्ति शांति से सो रहा है, जो वजन घटाने के लिए महत्वपूर्ण है।

अध्याय 12: नींद की भूमिका - वजन घटाने का अनदेखा पहलू

हम अक्सर आहार और व्यायाम पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन नींद वजन प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आयुर्वेद के अनुसार, नींद वह समय है जब शरीर खुद की मरम्मत करता है, विषाक्त पदार्थों को साफ करता है और हार्मोन को संतुलित करता है।

  • नींद की कमी और कफ: जब आप पर्याप्त नींद नहीं लेते हैं, तो शरीर में 'वात' और 'कफ' दोनों बढ़ जाते हैं। बढ़ा हुआ कफ भारीपन और सुस्ती लाता है, जिससे व्यायाम करने की इच्छा कम हो जाती है।
  • हार्मोनल असंतुलन: नींद की कमी भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन - घ्रेलिन (ghrelin - भूख बढ़ाता है) और लेप्टिन (leptin - भूख कम करता है) - को बाधित करती है। इससे क्रेविंग्स बढ़ती हैं और अधिक खाने की संभावना होती है।
  • अग्नि पर प्रभाव: अपर्याप्त नींद आपकी पाचन अग्नि को भी कमजोर करती है, जिससे 'आम' का निर्माण होता है और चयापचय धीमा हो जाता है।
  • आयुर्वेदिक सिफारिश: रात 10 बजे तक सोने का लक्ष्य रखें और सुबह 6 बजे तक उठें। यह आपके शरीर को प्राकृतिक लय के साथ संरेखित करता है और हार्मोनल संतुलन का समर्थन करता है।
एक व्यक्ति तनाव महसूस कर रहा है, जो वजन बढ़ने से जुड़ा है।

अध्याय 13: मानसिक स्वास्थ्य और वजन - तनाव का प्रभाव

आयुर्वेद मन और शरीर के गहरे संबंध को समझता है। आपका मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य सीधे आपके वजन को प्रभावित कर सकता है।

  • तनाव और कोर्टिसोल: जब आप तनाव में होते हैं, तो आपका शरीर कोर्टिसोल नामक हार्मोन छोड़ता है। कोर्टिसोल का उच्च स्तर, विशेष रूप से पेट के आसपास, वसा भंडारण को बढ़ावा देता है।
  • भावनात्मक भोजन (Emotional Eating): तनाव, चिंता या उदासी अक्सर हमें आराम के लिए उच्च-कैलोरी, कफ-वर्धक खाद्य पदार्थों (जैसे मीठा, तला हुआ) की ओर ले जाती है। यह एक दुष्चक्र बन सकता है।
  • वात और पित्त का प्रभाव: चिंता (वात का बढ़ना) अनियमित खाने की आदतों और पाचन समस्याओं को जन्म दे सकती है। गुस्सा और हताशा (पित्त का बढ़ना) चयापचय को बाधित कर सकते हैं।
  • आयुर्वेदिक समाधान:
    • ध्यान और प्राणायाम: रोज 10-15 मिनट ध्यान या शांत करने वाले प्राणायाम (जैसे अनुलोम-विलोम, भ्रामरी) का अभ्यास कोर्टिसोल के स्तर को कम करने में मदद करता है।
    • नियमित दिनचर्या: एक स्थिर दिनचर्या 'वात' को शांत करती है और सुरक्षा की भावना प्रदान करती है।
    • जड़ी-बूटियाँ: अश्वगंधा और ब्राह्मी जैसी 'मेध्य रसायन' जड़ी-बूटियाँ तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। (चिकित्सक से सलाह लें)।

वजन घटाने की यात्रा केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक भी है। अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अपने आहार का।

निष्कर्ष: वजन घटाना एक यात्रा है, सजा नहीं

मोटापे का आयुर्वेदिक इलाज आपको खुद को भूखा रखने या दंडित करने के लिए नहीं कहता। यह आपको अपने शरीर के साथ फिर से जुड़ने, अपनी पाचन अग्नि का सम्मान करने और अपनी अनूठी प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के लिए कहता है।

आधुनिक आहार विफल हो जाते हैं क्योंकि वे 'एक-आकार-सभी-के-लिए-फिट' (one-size-fits-all) दृष्टिकोण अपनाते हैं। आयुर्वेद आपको आपकी व्यक्तिगत जरूरतों को समझने की शक्ति देता है। याद रखें, वजन बढ़ना आपकी 'मंद अग्नि' और बढ़े हुए 'कफ दोष' का एक लक्षण है।

गर्म पानी पीकर, अदरक और मसालों के साथ अपनी अग्नि को प्रज्वलित करके, भारी कफ वाले खाद्य पदार्थों को कम करके और अपने शरीर को प्रतिदिन हिलाकर, आप अपने चयापचय को स्वाभाविक रूप से रीसेट कर सकते हैं। यह एक धीमी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यह स्थायी है। यह केवल वजन घटाने के बारे में नहीं है; यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन शक्ति को पुनः प्राप्त करने के बारे में है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)

प्रश्न 1: पेट की चर्बी कम करने के लिए सबसे अच्छा आयुर्वेदिक उपाय क्या है?

पेट की चर्बी 'मंद अग्नि' का एक स्पष्ट संकेत है। सबसे अच्छा उपाय है 'त्रिकटु' (सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली) का सेवन शहद के साथ करना और सुबह 'कपालभाति' प्राणायाम का अभ्यास करना। यह संयोजन सीधे आपके चयापचय पर प्रहार करता है और पेट के क्षेत्र में 'आम' को जलाता है।

प्रश्न 2: आयुर्वेद के अनुसार वजन घटाने के लिए क्या मुझे घी खाना बंद कर देना चाहिए?

नहीं! यह एक आम मिथक है। आयुर्वेद के अनुसार, कम मात्रा में गाय का घी (Ghee) वास्तव में अग्नि को प्रज्वलित करने में मदद करता है और शरीर को चिकनाई देता है। यह वसा में घुलनशील विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। वजन घटाने के लिए आपको खराब वसा (जैसे तला हुआ भोजन) से बचना चाहिए, लेकिन एक चम्मच घी आपके लिए फायदेमंद है।

प्रश्न 3: क्या मैं अपना वजन कम करने के लिए दिन में सो सकता हूँ?

बिल्कुल नहीं। आयुर्वेद के अनुसार, दिन में सोना (दिवास्वप्न) कफ दोष को गंभीर रूप से बढ़ाता है, आपकी अग्नि को धीमा करता है, और शरीर के चैनलों को अवरुद्ध करता है। यह मोटापे के प्रमुख कारणों में से एक है और इससे हर कीमत पर बचना चाहिए।

प्रश्न 4: वजन घटाने के लिए सबसे अच्छा आयुर्वेदिक नाश्ता क्या है?

कई कफ-प्रधान लोगों के लिए, सबसे अच्छा नाश्ता 'कोई नाश्ता नहीं' (skipping breakfast) है, ताकि उनकी धीमी अग्नि को दोपहर के भोजन के लिए ठीक से जलने का समय मिल सके। यदि आपको खाना ही है, तो कुछ हल्का और गर्म चुनें, जैसे जौ का दलिया (barley porridge) या अदरक और काली मिर्च के साथ पकाया गया एक सेब।

लेखक के बारे में: स्पर्श वार्ष्णेय

स्पर्श वार्ष्णेय BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) के छात्र और AmidhaAyurveda.com के संस्थापक हैं। उनका मिशन आयुर्वेद के गहरे और कालातीत ज्ञान को एक सुलभ और व्यावहारिक तरीके से साझा करना है, ताकि लोग अपने स्वास्थ्य को स्वाभाविक रूप से पुनः प्राप्त कर सकें।

अस्वीकरण (Disclaimer): यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है। इस जानकारी का उद्देश्य पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प बनना नहीं है। यदि आप मोटापे या किसी अन्य स्वास्थ्य स्थिति से पीड़ित हैं, तो कोई भी नया आहार या हर्बल उपचार शुरू करने से पहले हमेशा एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक या स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से सलाह लें।

28/10/25

Single drug (Herbal & Mineral)

अध्याय २: एकल द्रव्य प्रयोग (भल्लातक, गंधक, गैरिक) - भैषज्यकल्पना नोट्स | BAMS Notes

अध्याय २: एकल द्रव्य प्रयोग (भल्लातक, गंधक, गैरिक)

३. भल्लातक (Bhallataka - Semecarpus anacardium)

भल्लातक, जिसे 'अग्निमुख' (अग्नि के समान तीक्ष्ण) और 'अरुष्कर' (फोड़े उत्पन्न करने वाला) भी कहते हैं, आयुर्वेद की एक अत्यंत शक्तिशाली परन्तु 'विषोपविष' (Semi-poisonous) वर्ग की औषधि है। इसका प्रयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक, **केवल शोधन (Purification) के बाद** और योग्य चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।

⚠️ **अत्यंत महत्वपूर्ण चेतावनी** ⚠️

अशुद्ध भल्लातक या इसका अनुचित प्रयोग अत्यंत हानिकारक हो सकता है। इससे तीव्र त्वचा दाह (Severe skin burns/blisters), रक्तपित्त (Bleeding disorders), वृक्क विकार (Kidney damage) और अन्य गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसका प्रयोग केवल शास्त्रोक्त विधि से शोधित करके और चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करें।

भल्लातक: सामान्य गुण-धर्म (General Properties)

  • रस (Rasa): कटु (Pungent), तिक्त (Bitter), कषाय (Astringent)
  • गुण (Guna): लघु (Light), स्निग्ध (Unctuous), तीक्ष्ण (Sharp/Penetrating)
  • वीर्य (Virya): उष्ण (Ushna - Extremely Hot)
  • विपाक (Vipaka): मधुर (Madhura)
  • दोषकर्म (Action on Dosha): कफ-वात शामक, पित्त वर्धक।
  • मुख्य कर्म (Therapeutic Properties): **अग्निवत् दीपन-पाचन** (Powerful digestive stimulant), **छेदन** (Expectorant/Scraping), **भेदन** (Purgative), **कृमिघ्न** (Anthelmintic), **कुष्ठघ्न** (Used in skin diseases), **अर्शोघ्न** (Used in piles), **शोथहर** (Anti-inflammatory), **मेध्य** (Brain tonic - in specific doses), **रसायन** (Rejuvenator - after proper processing)।
  • Chemical/Phytochemical Composition: Bhilawanol (a highly irritant phenolic compound), Anacardic acid, Cardol, Semecarpol. The irritant property is mainly due to Bhilawanol, which is reduced/neutralized during shodhana.

भल्लातक शोधन (Purification)

अशुद्ध भल्लातक का प्रयोग वर्जित है।

  • विधि: पके हुए, जल में डूबने वाले भल्लातक फलों को लेकर, उनकी वृन्त (टोपी) हटा दें। फलों को ईंट के चूर्ण (Brick powder) के साथ रगड़कर या गोमूत्र/गोदुग्ध में स्वेदन करके (दोला यन्त्र में) शोधित किया जाता है। इससे उसका तीक्ष्ण तैल (Irritant oil) कम हो जाता है।

भल्लातक का अवस्थाअनुसार प्रयोग (Awasthanusara Uses)

इसका प्रयोग कफ-वात प्रधान रोगों में, मंदाग्नि की अवस्था में, और शोथयुक्त व्याधियों में किया जाता है। **पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों, गर्भवती स्त्रियों, बालकों, वृद्धों, और ग्रीष्म/शरद ऋतु में इसका प्रयोग वर्जित है।**

  • अर्श (Piles - Non-bleeding): गुद (Guda), अवलेह (Avaleha), या घृत (Ghrita) कल्पना का प्रयोग किया जाता है। यह अर्श के मस्सों को सुखाता है।
  • कुष्ठ / त्वचा रोग (Skin Diseases - कफज): लेप (External paste), तैल (Oil), या क्वाथ का प्रयोग होता है।
  • गुल्म / उदर रोग (Abdominal tumors/disorders - कफ-वातज): घृत या मोदक का प्रयोग।
  • अग्निमांद्य / ग्रहणी (Indigestion / Malabsorption): अल्प मात्रा में मोदक या अवलेह।
  • रसायन (Rejuvenation): केवल शोधित भल्लातक का वर्धमान प्रयोग (Gradually increasing dose) अत्यंत सावधानी से चिकित्सक की देखरेख में।

भल्लातक की प्रमुख कल्पनाएँ (Major Formulations)

ध्यान दें: इन सभी कल्पनाओं में **केवल 'शोधित भल्लातक'** का ही प्रयोग किया जाता है।

१. भल्लातक मोदक (Bhallataka Modaka)

  • सन्दर्भ: भैषज्य रत्नावली (B.R.), प्लीह-यकृत् रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, त्रिकटु, त्रिफला, चित्रक, विडंग, गुड़ आदि।
  • Pharmacodynamics: अत्यंत उष्ण, तीक्ष्ण, दीपन-पाचन, कफ-वात शामक, भेदन, कृमिघ्न। यह अग्नि को प्रचंड करता है और संचित कफ-आम का भेदन करता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): प्लीह-यकृत् वृद्धि (Splenomegaly/Hepatomegaly - कफज), अग्निमांद्य, ग्रहणी, अर्श, कृमि रोग।
  • मात्रा (Matra): अत्यंत अल्प (Initially 1 रत्ती - 125mg, gradually increased under supervision)।
  • अनुपान (Anupana): दुग्ध (Milk - to counteract heat), घृत (Ghee)।
  • सेवन काल (Sevana Kala): भोजनोपरांत।
  • Kala Maryada: अल्प काल के लिए (Few weeks), चिकित्सक की सलाह से।

२. भल्लातक घृत (Bhallataka Ghrita)

  • सन्दर्भ: B.R., गुल्म रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक (कल्क/क्वाथ), गो घृत।
  • Pharmacokinetics: घृत कल्पना होने से यह भल्लातक के तीक्ष्ण गुणों को कुछ हद तक कम (Mitigate) करती है और उसके गुणों को स्रोतसों में गहराई तक ले जाती है।
  • Pharmacodynamics: उष्ण, दीपन, पाचन, अनुलोमक, गुल्मनाशक (Reduces abdominal lumps)।
  • मुख्य संकेत (Indications): कफ-वातज गुल्म, उदर रोग, अर्श।
  • मात्रा (Matra): ३-६ ग्राम, चिकित्सक की देखरेख में।
  • अनुपान (Anupana): उष्ण दुग्ध।

३. भल्लातक गुद (Bhallataka Guda)

  • सन्दर्भ: B.R., अर्श रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, चित्रक, त्रिकटु, त्रिफला, गुड़ आदि। (यह 'गुद कल्पना' - गुड़ आधारित पाक है)।
  • Pharmacodynamics: मोदक के समान, परन्तु गुड़ के कारण अधिक अनुलोमक। अर्शोघ्न (Effective in piles)।
  • मुख्य संकेत (Indications): शुष्क अर्श (Non-bleeding piles), भगंदर (Fistula-in-ano), अग्निमांद्य।
  • मात्रा (Matra): अल्प मात्रा (e.g., 1-2 ग्राम)।
  • अनुपान (Anupana): दुग्ध, तक्र।

४. भल्लातकादि तैल (Bhallatakadi Taila)

  • सन्दर्भ: B.R., नाडीव्रण रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, विभिन्न व्रणशोधक-रोपक द्रव्य, तिल तैल।
  • Pharmacodynamics (External): तीक्ष्ण, उष्ण, छेदन, लेखन, व्रणशोधन (Wound cleaning), कृमिघ्न। यह दुष्ट व्रण (Non-healing ulcer) या नाडीव्रण (Sinus tract) के भीतर जाकर दूषित मांस को हटाता है और रोपण (Healing) में मदद करता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग (External use only)** - नाडीव्रण, दुष्ट व्रण, कफज कुष्ठ।
  • प्रयोग विधि: व्रण में बत्ती (Gauze wick) भिगोकर लगाना।
  • Side Effects: त्वचा पर दाह (Burning), फफोले (Blisters) उत्पन्न कर सकता है। अत्यंत सावधानी से प्रयोग करें।

५. भल्लातक अवलेह (Bhallataka Avaleha)

  • सन्दर्भ: B.R., अर्श रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, अन्य दीपन-पाचन द्रव्य, शर्करा/गुड़, घृत, मधु।
  • Pharmacodynamics: गुद कल्पना के समान, परन्तु अवलेह रूप में। दीपन, पाचन, अर्शोघ्न, बल्य।
  • मुख्य संकेत (Indications): अर्श, अग्निमांद्य, ग्रहणी।
  • मात्रा (Matra): ३-६ ग्राम।
  • अनुपान (Anupana): दुग्ध।

६. भल्लातकादि लेप (Bhallatakadi Lepa)

  • सन्दर्भ: B.R., कुष्ठ रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, अन्य कुष्ठघ्न द्रव्य (जैसे - करंज, निम्ब), गोमूत्र या कोई द्रव माध्यम।
  • Pharmacodynamics (External): उष्ण, तीक्ष्ण, लेखन, कुष्ठघ्न। यह त्वचा के विकारों में दूषित कफ और क्लेद को सुखाता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - कफज कुष्ठ, श्वित्र (Leucoderma), दाद (Ringworm)।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर लेप लगाना।
  • Side Effects: त्वचा पर तीव्र जलन, फफोले हो सकते हैं। पहले अल्प क्षेत्र पर लगाकर परीक्षण (Patch test) करना आवश्यक है।

७. भल्लातकादि क्वाथ (Bhallatakadi Kwatha)

  • सन्दर्भ: B.R., उरुस्तम्भ रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित भल्लातक, अन्य कफ-मेद-वात शामक द्रव्य।
  • Pharmacodynamics: उष्ण, तीक्ष्ण, छेदन, कफ-मेद विलयन (Dissolves kapha and meda)।
  • मुख्य संकेत (Indications): उरुस्तम्भ (Stiffness/immobility of thighs due to kapha-ama), स्थौल्य (Obesity), कफज शोथ (Inflammation)।
  • मात्रा (Matra): ४०-८० ml।
  • अनुपान (Anupana): मधु या गोमूत्र।

भल्लातक प्रयोग जन्य व्यापद एवं शांति उपाय (Side effects / Toxicity & Management)

अशुद्ध भल्लातक या अनुचित मात्रा/विधि से सेवन करने पर या पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं:

  • त्वचा पर: तीव्र दाह (Burning), शोथ (Swelling), स्फोट (Blisters), कंडू (Itching)।
  • आंतरिक: मुखपाक (Stomatitis), गुदपाक (Anal inflammation), तीव्र अम्लपित्त, रक्तपित्त (Bleeding), मूत्रदाह/मूत्रकृच्छ (Burning micturition), वृक्क शोथ (Nephritis)।

शांति उपाय (Shantyupaya / Antidotes & Management):

  • तत्काल प्रयोग बंद करें।
  • बाह्य: नारियल तेल (Coconut oil), घृत, या मक्खन का लेप करें। तिल कल्क (Sesame paste) का लेप भी उपयोगी है।
  • आंतरिक:
    • **सर्वश्रेष्ठ:** **गो घृत (Cow's ghee)** और **गो दुग्ध (Cow's milk)** का प्रचुर मात्रा में सेवन।
    • नारियल जल (Coconut water) का पान।
    • पित्तशामक औषधियां: शतावरी, यष्टिमधु, आमलकी, चन्दन, उशीर।
    • यदि आवश्यक हो तो मृदु विरेचन (Mild purgation) दें।

भल्लातक प्रयोग: सामान्य पथ्य-अपथ्य (Pathyapathya)

  • पथ्य (Compatible): **गो घृत और गो दुग्ध का प्रचुर सेवन अनिवार्य है।** लघु, स्निग्ध, मधुर रस प्रधान भोजन। पुराने शालि चावल, मूंग दाल।
  • अपथ्य (Incompatible): **अम्ल, लवण, कटु रस का पूर्ण त्याग।** उष्ण, तीक्ष्ण, विदाही (Burning sensation causing) भोजन। दधि, मद्य, मांसाहार। आतप सेवन (Sun exposure), अग्नि सेवन, अति श्रम, क्रोध।

Research Updates:

Modern research has investigated Bhallataka (Semecarpus anacardium) extensively. Studies have validated its potent **anti-inflammatory, anti-arthritic, anti-cancer, antioxidant, and hypoglycemic activities**. The constituent Bhilawanol is identified as the major bioactive but also toxic component. Research focuses on methods to reduce its toxicity while retaining therapeutic effects, mirroring the Ayurvedic Shodhana process. Clinical evidence supports its use (with caution) in rheumatoid arthritis, certain skin conditions, and potentially as an adjuvant in cancer therapy, but high-quality human trials are limited due to toxicity concerns.


४. गंधक (Gandhaka - Sulphur)

गंधक, जिसे 'शुल्वारि' (ताम्र का शत्रु) भी कहते हैं, एक अधातु (Non-metal) खनिज द्रव्य है। यह रसशास्त्र में पारद के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण द्रव्य माना जाता है ('पारद का वीर्य')। इसका प्रयोग विभिन्न रोगों, विशेषकर त्वचा रोगों (कुष्ठ), में होता है। गंधक का प्रयोग भी **केवल शोधन (Purification) के बाद** ही किया जाता है।

⚠️ **चेतावनी** ⚠️

अशुद्ध गंधक का सेवन हानिकारक है। इससे त्वचा विकार, जलन, चक्कर आना आदि लक्षण हो सकते हैं। इसका प्रयोग केवल शास्त्रोक्त विधि से शोधित करके और चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करें।

गंधक: सामान्य गुण-धर्म (General Properties)

  • रस (Rasa): मधुर (Sweet - after shodhana, initially pungent/bitter)
  • गुण (Guna): स्निग्ध (Unctuous), गुरु (Heavy), सर (Mobile)
  • वीर्य (Virya): उष्ण (Ushna)
  • विपाक (Vipaka): कटु (Pungent) - *कुछ आचार्य मधुर भी मानते हैं।*
  • दोषकर्म (Action on Dosha): त्रिदोषहर (विशेषतः कफ-वात शामक), पित्त सारक।
  • मुख्य कर्म (Therapeutic Properties): **रसायन** (Rejuvenator - esp. Gandhaka Rasayana), **कुष्ठघ्न** (Excellent for skin diseases), **कण्डूघ्न** (Anti-pruritic), **कृमिघ्न** (Anthelmintic), **दीपन-पाचन**, **आमपाचक**, **विषघ्न** (Anti-toxic), **वृष्य** (Aphrodisiac)।
  • Chemical Composition: Sulphur (S).

गंधक शोधन (Purification)

गंधक में पाषाण (Stone) और विष (Arsenic compounds) की अशुद्धियाँ होती हैं।

  • सामान्य विधि (भृंगराज स्वरस द्वारा): गंधक के टुकड़ों को लोहे की कड़ाही में गो घृत डालकर पिघलाया जाता है। पिघले हुए गंधक को भृंगराज स्वरस (या गोदुग्ध) में डूबे हुए वस्त्र से छानकर गिराया जाता है। इस प्रक्रिया को ३ से ७ बार दोहराया जाता है।

गंधक का अवस्थाअनुसार प्रयोग (Awasthanusara Uses)

  • त्वचा रोग / कण्डू (Skin Diseases/Itching): चूर्ण, रसायन, तैल या मलहर का प्रयोग (आंतरिक और बाह्य)।
  • जीर्ण ज्वर / धातुगत ज्वर: गंधक रसायन।
  • अग्निमांद्य / आमवात: गंधक वटी।
  • कृमि रोग: गंधक चूर्ण।
  • रसायन / बल वृद्धि: गंधक रसायन।

गंधक की प्रमुख कल्पनाएँ (Major Formulations)

१. गंधक चूर्ण (Gandhaka Churna - Shuddha)

  • सन्दर्भ: सिद्ध योग संग्रह (SY)
  • निर्माण: केवल 'शोधित गंधक' का बारीक चूर्ण।
  • Pharmacodynamics: उष्ण वीर्य, कटु विपाक। यह दीपन, पाचन, कृमिघ्न, कण्डूघ्न और कुष्ठघ्न है।
  • मुख्य संकेत (Indications): कण्डू (Itching), पामा (Scabies), विचर्चिका (Eczema), कृमि रोग।
  • मात्रा (Matra): १-२ रत्ती (125-250 mg)।
  • अनुपान (Anupana): मधु, घृत, या रोगानुसार।
  • Side Effects: उष्ण होने से पित्त प्रकृति वालों में दाह या अम्लपित्त कर सकता है।

२. गंधक रसायन (Gandhaka Rasayana)

  • सन्दर्भ: AFI Part II
  • निर्माण: शोधित गंधक को चतुर्जात, त्रिकटु, त्रिफला, गुडूची, भृंगराज आदि अनेक द्रव्यों के स्वरस/क्वाथ की 'भावना' (Levigation) देकर तैयार किया जाता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है।
  • Pharmacodynamics: यह गंधक का 'रसायन' योग है। भावना देने वाले द्रव्यों के गुणों से गंधक के उष्ण-तीक्ष्ण गुण कम होते हैं और रसायन, विषघ्न, रक्तशोधक (Blood purifier) गुण बढ़ जाते हैं। यह त्रिदोषहर और व्याधिक्षमत्व वर्धक (Immunomodulator) है।
  • Pharmacokinetics: भावना देने से यह सूक्ष्म (Subtle) और अधिक Bioavailable हो जाता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **सर्व कुष्ठ** (All types of skin diseases), कण्डू, विसर्प, उपदंश (Syphilis), जीर्ण ज्वर, आमवात, श्वास, कास, दौर्बल्य। यह एक उत्कृष्ट रसायन है।
  • मात्रा (Matra): १-४ रत्ती (125-500 mg)।
  • अनुपान (Anupana): मधु, घृत, दुग्ध, या रोगानुसार।
  • Kala Maryada: दीर्घ काल तक सेवन योग्य।
  • Research: गंधक रसायन पर शोध इसके Anti-inflammatory, Antioxidant, Anti-allergic, and Immunomodulatory गुणों की पुष्टि करते हैं, जो त्वचा रोगों और एलर्जी में इसकी उपयोगिता सिद्ध करते हैं।

३. गंधक द्रुति (Gandhaka Druti)

  • सन्दर्भ: रस हृदय तंत्र (RRR) ३
  • निर्माण: यह गंधक को पिघलाकर (Liquefied state) प्राप्त करने की एक विशिष्ट और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें तीव्र अग्नि और विशिष्ट यंत्रों का प्रयोग होता है। यह सामान्यतः प्रयोग में नहीं है।
  • Pharmacodynamics: इसे अत्यंत शक्तिशाली रसायन और योगवाही माना जाता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): रसशास्त्र के उच्चतर प्रयोगों में।
  • मात्रा (Matra): अत्यंत अल्प (कुछ बूँद)।

४. गंधक तैल (Gandhaka Taila)

  • सन्दर्भ: रस तरंगिणी (R.T.) ८
  • निर्माण: शोधित गंधक को तिल तैल या अन्य तैल के साथ विशिष्ट विधि से पकाया जाता है (जैसे - पाताल यन्त्र द्वारा)।
  • Pharmacodynamics (External): उष्ण, तीक्ष्ण, स्निग्ध, कण्डूघ्न, कुष्ठघ्न, व्रणशोधन-रोपण।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - कण्डू, पामा, विचर्चिका, दद्रु (Ringworm), अन्य त्वचा विकार।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर लगाना।

५. गंधकाद्य मलहर (Gandhakadya Malahara)

  • सन्दर्भ: AFI Part II
  • प्रमुख घटक: शोधित गंधक, टंकण (Borax), कर्पूर, सिकथ (Beeswax), तिल तैल।
  • Pharmacodynamics (External): मलहर (Ointment) कल्पना होने से यह त्वचा पर अधिक समय तक टिका रहता है। गंधक (कुष्ठघ्न), टंकण (क्षार - Antiseptic), कर्पूर (कण्डूघ्न)।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - पामा, विचर्चिका, कण्डू, दद्रु।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर दिन में 2-3 बार लगाना।

६. गंधकादि लेप (Gandhakadi Lepa)

  • सन्दर्भ: रसराज सुन्दर (RRS), शिरोरोग चिकित्सा। (Note: कई 'गंधकादि लेप' योग हैं)।
  • प्रमुख घटक: शोधित गंधक, कुष्ठ, देवदारु, वचा, सैंधव आदि, द्रव माध्यम (जैसे - तैल, कांजी)।
  • Pharmacodynamics (External): उष्ण, कफ-वात शामक, शोथहर, वेदनास्थापन।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - शिरोरोग (Headache - कफज), त्वचा रोग, शोथ (Inflammation)।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर लेप।

७. गंधक वटी (Gandhaka Vati)

  • सन्दर्भ: B.R., अग्निमांद्य रोगाधिकार।
  • प्रमुख घटक: शोधित गंधक, त्रिकटु, चित्रक, शुण्ठी, सैंधव, निम्बू स्वरस की भावना।
  • Pharmacodynamics: उष्ण, तीक्ष्ण, दीपन, पाचन, आमपाचक, शूलघ्न (Anti-spasmodic)। यह जठराग्नि को तीव्र करती है।
  • मुख्य संकेत (Indications): अग्निमांद्य, अजीर्ण, आमवात, उदरशूल, ग्रहणी।
  • मात्रा (Matra): १-२ वटी (१२५-२५० mg)।
  • अनुपान (Anupana): उष्ण जल।
  • सेवन काल (Sevana Kala): भोजनोपरांत या रोगानुसार।

गंधक प्रयोग: सामान्य पथ्य-अपथ्य (Pathyapathya)

  • पथ्य (Compatible): लघु भोजन, घृत, दुग्ध, मूंग दाल।
  • अपथ्य (Incompatible): अत्यधिक क्षार, अम्ल, लवण। तिल तैल का अधिक प्रयोग। गुरु भोजन।

५. गैरिक (Gairika - Red Ochre)

गैरिक, जिसे 'स्वर्ण गैरिक' (यदि उसमें स्वर्ण के अंश हों) या 'रक्त धातु' भी कहते हैं, एक 'उपरस' वर्ग का खनिज है। यह मुख्य रूप से 'हेमेटाइट' (Hematite - Iron Oxide, Fe₂O₃) का एक प्राकृतिक रूप है। इसका प्रयोग आंतरिक और बाह्य दोनों रूप से किया जाता है। गैरिक का प्रयोग भी **शोधन (Purification)** के बाद ही उत्तम माना जाता है।

गैरिक: सामान्य गुण-धर्म (General Properties)

  • रस (Rasa): मधुर (Sweet), कषाय (Astringent)
  • गुण (Guna): स्निग्ध (Unctuous), शीत (Cold)
  • वीर्य (Virya): शीत (Shita)
  • विपाक (Vipaka): मधुर (Madhura)
  • दोषकर्म (Action on Dosha): पित्त-कफ शामक।
  • मुख्य कर्म (Therapeutic Properties): रक्तस्तम्भन (Hemostatic/Astringent), दाहप्रशमन (Reduces burning), रक्तपित्तहर (Controls bleeding disorders), हिक्का निग्रहण (Anti-hiccup), व्रणरोपण (Wound healing), चक्षुष्य (Good for eyes), वमन निग्रहण (Anti-emetic), विषघ्न (Anti-toxic)।
  • Chemical Composition: Primarily Ferric Oxide (Fe₂O₃), often with impurities like Silica and Alumina.

गैरिक शोधन (Purification)

  • विधि: गैरिक के टुकड़ों को गो घृत में भर्जित (Fried) किया जाता है, या गोदुग्ध/त्रिफला क्वाथ की भावना दी जाती है।

गैरिक का अवस्थाअनुसार प्रयोग (Awasthanusara Uses)

  • रक्तपित्त / रक्तस्राव (Bleeding disorders): आंतरिक प्रयोग (जैसे - लघुसूतशेखर रस) या बाह्य लेप (रक्तस्तम्भन हेतु)।
  • दाह / विसर्प (Burning sensation / Erysipelas): बाह्य प्रदेह (Paste application)।
  • हिक्का / वमन (Hiccup / Vomiting): चूर्ण या रस क्रिया का प्रयोग।
  • नेत्र रोग (Eye diseases): अंजन (Collyrium) रूप में।
  • त्वचा विकार / वर्ण्य (Skin issues / Complexion): बाह्य लेप।

गैरिक की प्रमुख कल्पनाएँ (Major Formulations)

१. गैरिक प्रदेह (Gairika Pradeha)

  • सन्दर्भ: चरक संहिता, चिकित्सास्थान २१ (विसर्प चिकित्सा)।
  • निर्माण: शोधित गैरिक चूर्ण को घृत या जल या अन्य शीतल द्रव्यों (जैसे - चन्दन, उशीर) के साथ मिलाकर लेप बनाना।
  • Pharmacodynamics (External): शीत, स्निग्ध, कषाय। यह त्वचा पर लगाने से दाह (Burning), शोथ (Inflammation) और रक्तस्राव को कम करता है। व्रण पर लगाने से रोपण (Healing) में मदद करता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - विसर्प (Erysipelas), पित्तज शोथ, दाह, रक्तस्रावी व्रण (Bleeding wounds), पित्तज त्वचा विकार।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर लेप लगाना।

२. लघुसूतशेखर रस (Laghusutshekhar Rasa)

  • सन्दर्भ: AFI Part II
  • प्रमुख घटक: स्वर्ण गैरिक, शुण्ठी, नागवल्ली पत्र स्वरस की भावना।
  • Pharmacodynamics: गैरिक (शीत, पित्तशामक) और शुण्ठी (उष्ण, दीपन-पाचन, आमपाचक) का यह योग **'उभय विपरीत वीर्य'** (Opposite potencies) होते हुए भी विशिष्ट कार्य करता है। यह पित्त का शमन करता है, परन्तु शुण्ठी के कारण अग्नि को मंद नहीं होने देता। यह 'आम' का पाचन कर पित्त की विकृति को दूर करता है।
  • Pharmacokinetics: भावना देने से सूक्ष्म और शीघ्र प्रभावी।
  • मुख्य संकेत (Indications): **अम्लपित्त (Hyperacidity)** की श्रेष्ठ औषध, शिरःशूल (Headache - पित्तज), उदरशूल (Abdominal pain), भ्रम (Vertigo), छर्दि (Vomiting)।
  • मात्रा (Matra): १-२ रत्ती (125-250 mg)।
  • अनुपान (Anupana): मधु, घृत, या दाडिम स्वरस।
  • सेवन काल (Sevana Kala): भोजन पूर्व या आवश्यकतानुसार।

३. गैरिकद्य मलहर (Gairikadya Malahara)

  • सन्दर्भ: AFI Part III
  • प्रमुख घटक: गैरिक, रसौत (Rasanjana), मधु, घृत (या सिकथ तैल)।
  • Pharmacodynamics (External): गैरिक (शीत, रोपण), रसौत (कषाय, व्रणशोधन)। यह मलहर व्रणों को भरने और दाह को शांत करने में सहायक है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - व्रण रोपण (Wound healing), दाह, मुखपाक (Stomatitis - लगाने हेतु), गुदभ्रंश (Anal prolapse - लगाने हेतु)।
  • प्रयोग विधि: प्रभावित स्थान पर लगाना।

४. गैरिकद्य गुटिकाञ्जन (Gairikadya Gutikanjana)

  • सन्दर्भ: B.R., नेत्ररोग अधिकार।
  • प्रमुख घटक: गैरिक, रसौत, सैंधव, मधु आदि।
  • Pharmacodynamics (External - Eye): गैरिक (चक्षुष्य, शीत), रसौत (लेखन, रोपण), सैंधव (लेखन)। यह अंजन (Collyrium) नेत्रों का शोधन कर, शोथ और दाह को कम करता है।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग (नेत्रों में)** - नेत्र शोथ (Conjunctivitis), नेत्र दाह, अभिष्यंद।
  • प्रयोग विधि: गुटिका को जल या मधु में घिसकर अंजन शलाका से नेत्रों में लगाना।

५. गैरिक रसक्रिया (Gairika Rasakriya)

  • सन्दर्भ: चरक संहिता, चिकित्सास्थान २६/२३५ (त्रिमर्मीय अध्याय)।
  • निर्माण: गैरिक को क्वाथ आदि में पकाकर गाढ़ा (Semi-solid) करना।
  • Pharmacodynamics: शीत, रक्तस्तम्भन, छर्दिनिग्रहण।
  • मुख्य संकेत (Indications): हिक्का (Hiccup), छर्दि, रक्तपित्त।
  • मात्रा (Matra): चिकित्सक निर्देशानुसार।
  • अनुपान (Anupana): मधु।

६. वर्णकर लेप (Varnakara Lepa)

  • सन्दर्भ: चरक संहिता, चिकित्सास्थान २५/११७ (व्रण चिकित्सा)।
  • प्रमुख घटक: गैरिक, मञ्जिष्ठा, चन्दन, सारिवा आदि वर्ण्य (Complexion improving) द्रव्य।
  • Pharmacodynamics (External): शीत, वर्ण्य, दाहप्रशमन, व्रण रोपण।
  • मुख्य संकेत (Indications): **केवल बाह्य प्रयोग** - व्रण के निशान (Scars), मुख दूषिका (Acne), त्वचा का वर्ण सुधारने हेतु (Complexion improvement)।
  • प्रयोग विधि: जल या दुग्ध में मिलाकर लेप।

गैरिक प्रयोग: सामान्य पथ्य-अपथ्य (Pathyapathya)

  • पथ्य (Compatible): लघु भोजन, मधुर-तिक्त-कषाय रस प्रधान आहार। दुग्ध, घृत।
  • अपथ्य (Incompatible): अत्यधिक अम्ल, लवण, कटु रस। उष्ण, तीक्ष्ण, विदाही भोजन।

Research Updates:

Research on Gairika (Hematite/Red Ochre) primarily focuses on its traditional uses and chemical composition. Studies confirm its high iron content. Its use in formulations like Laghusutshekhar Rasa for hyperacidity is clinically well-established in Ayurvedic practice. Its astringent (Kashaya) and cooling (Shita) properties are utilized in external applications (Lepas, Malaharas) for skin inflammation and wound healing, although large-scale modern clinical trials are less common compared to herbal drugs.

About the Author: Sparsh Varshney

Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas and textbooks. For any medical advice or treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner.

Kalpana Nirmana-II

कल्पना निर्माण II (द्वितीयक कल्पनाएं एवं पथ्य) - रसशास्त्र नोट्स | BAMS Notes

कल्पना निर्माण II (द्वितीयक कल्पनाएं एवं पथ्य) - रसशास्त्र नोट्स

यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विषय के अंतर्गत 'कल्पना निर्माण II (Kalpana Nirmana II)' अध्याय पर केंद्रित है। पिछले अध्याय में हमने प्राथमिक कल्पनाओं (पंचविध कषाय कल्पना) और कुछ सरल उपकल्पनाओं का अध्ययन किया था। इस अध्याय में हम प्रमुख द्वितीयक कल्पनाओं - अवलेह (Avaleha), स्नेह कल्पना (Sneha Kalpana - घृत एवं तैल), संधान कल्पना (Sandhana Kalpana - आसव एवं अरिष्ट) - और पथ्य कल्पना (Pathya Kalpana - Dietary preparations) का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

प्रत्येक कल्पना की परिभाषा, संदर्भ, आवश्यक सामग्री, सामान्य एवं विशिष्ट निर्माण विधि, सिद्धांत, प्रयुक्त उपकरण, पाक परीक्षा (सिद्धि लक्षण), मात्रा, संग्रहण, सेवन काल (shelf life), आधुनिक दृष्टिकोण, उदाहरण, अनुसंधान अद्यतन और बाजार सर्वेक्षण पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

अध्याय सार (Chapter in Brief)

  • अवलेह/लेह/पाक: क्वाथ आदि द्रव को गाढ़ा कर (शर्करा/गुड़ मिलाकर) बनाई जाने वाली अर्ध-ठोस (चाटने योग्य) कल्पना। पाक परीक्षा महत्वपूर्ण। उदाहरण: वासावलेह, कूष्माण्ड अवलेह।
  • स्नेह कल्पना: औषध द्रव्यों के सार को घृत या तैल में समाविष्ट करने की प्रक्रिया (मूर्छन, स्नेह पाक)। त्रिविध पाक (मृदु, मध्यम, खर) महत्वपूर्ण। उदाहरण: फल घृत, क्षीरबला तैल। आवर्तन द्वारा गुण वृद्धि।
  • संधान कल्पना: द्रव्यों को द्रव माध्यम में किण्वन (Fermentation) द्वारा तैयार की जाने वाली कल्पना (आसव - बिना उबाले, अरिष्ट - उबालकर)। संधान पात्र, काल, तापमान महत्वपूर्ण। उदाहरण: द्राक्षारिष्ट, उशीरासव।
  • पथ्य कल्पना: रोगी के लिए सुपाच्य और रोगानुसार हितकर आहार बनाने की विधियाँ। मुख्य कल्पनाएं - पेय कल्पना (मण्ड, पेया, विलेपी, यवागू, ओदन), यूष कल्पना (शाक/दाल का सूप), तक्र कल्पना, खड, काम्बलिक, रागषाडव आदि।
  • प्रत्येक कल्पना का विस्तृत अध्ययन: परिभाषा, विधि, पाक परीक्षा, मात्रा, संग्रहण, सेवन काल, आधुनिक सहसंबंध, अनुसंधान एवं बाजार सर्वेक्षण।

कल्पना निर्माण II: द्वितीयक कल्पनाएं एवं पथ्य कल्पना

1. अवलेह कल्पना (Avaleha Kalpana - Linctus/Herbal Jam)

परिभाषा एवं संदर्भ:

लेहः स्यात् क्वाथकल्कादेः शर्करगुडपाचितः।
द्रवं घनं वा तन्मात्रं निर्दिष्टमथ गृह्यते॥

(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड ८/१)

व्याख्या: क्वाथ, कल्क, स्वरस आदि द्रव द्रव्यों को शर्करा (चीनी), गुड़ या मधु के साथ मंद अग्नि पर पकाकर जब वह गाढ़ा (घन) या अर्ध-ठोस (चाटने योग्य - लेह) हो जाए, तो उसे अवलेह, लेह या पाक कहते हैं।

संदर्भ: चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट, शारंगधर, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में अनेक अवलेहों का वर्णन है।

आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):

  • द्रव द्रव्य (Liquid Base): क्वाथ, स्वरस, फाण्ट, दुग्ध, जल आदि।
  • मधुर द्रव्य (Sweetening Agent): शर्करा, गुड़, मिश्री, मधु (पाक ठंडा होने पर)।
  • मुख्य औषध द्रव्य (Main Drugs): प्रायः कल्क या चूर्ण रूप में।
  • प्रक्षेप द्रव्य (Additive Drugs): सुगंधित चूर्ण (जैसे त्रिकटु, त्रिजात), स्नेह (घृत/तैल) - पाक के अंत में मिलाए जाते हैं।

सामान्य निर्माण विधि (General Method):

  1. द्रव द्रव्य (क्वाथ आदि) को छानकर पात्र में डालें।
  2. उसमें निर्धारित मात्रा में शर्करा या गुड़ मिलाएं और घोलें।
  3. मंद अग्नि पर पकाएं, बीच-बीच में चलाते रहें।
  4. जब पाक गाढ़ा होने लगे (चाशनी बनने लगे), तो मुख्य औषध द्रव्यों का कल्क या चूर्ण धीरे-धीरे मिलाएं और लगातार चलाते रहें।
  5. निर्धारित पाक सिद्धि लक्षण आने पर अग्नि से उतार लें।
  6. यदि स्नेह (घी/तेल) डालना है, तो इसी समय मिलाएं।
  7. पाक के स्वतः ठंडा होने पर मधु (यदि निर्देश हो) और प्रक्षेप चूर्ण मिलाएं।
  8. अच्छी तरह मिलाकर चौड़े मुंह वाले कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में सुरक्षित रखें।

सिद्धांत एवं तापमान का महत्व (Principle & Importance of Temp.):

  • सिद्धांत: औषध द्रव्यों के गुणों को मधुर माध्यम में संरक्षित करना, सेवन सुगम बनाना, और स्थायित्व बढ़ाना। शर्करा/गुड़ परिरक्षक (Preservative) का कार्य करते हैं।
  • तापमान: पाक क्रिया मंद अग्नि पर होनी चाहिए। तीव्र अग्नि से पाक जल सकता है या औषध के गुण नष्ट हो सकते हैं। पाक के अंत में तापमान विशेष महत्वपूर्ण है (पाक परीक्षा हेतु)।

उपकरण (Instruments):

लौह/स्टील/ताम्र का पात्र (कड़ाही), कलछी, अग्नि स्रोत, छानने का कपड़ा, कांच/चीनी मिट्टी का पात्र (संग्रहण हेतु)। बड़े पैमाने पर - स्टीम जैकेटेड केतली, मैकेनिकल स्टिरर।

पाक सिद्धि लक्षण (Tests for Proper Preparation):

तन्तुमत्त्वं जले मज्जनमङ्गुलीषु न लेपनम्।
गन्धवर्णरसोत्पत्तिः सिद्धलेहस्य लक्षणम्॥
पीडितोऽङ्गुलिभिर्यस्तु मुद्रां गृह्णाति लेहवत्।

(विभिन्न ग्रंथों का सार)
  • तन्तुमत्ता: कलछी से उठाने पर तार (तन्तु) बनना।
  • अप्सु मज्जनम्: पानी में डालने पर तुरंत घुलने के बजाय बैठ जाना।
  • अङ्गुलीषु न लेपनम् / मुद्रा ग्रहण: अंगूठे और तर्जनी के बीच दबाने पर चिपके नहीं और उंगलियों के निशान (मुद्रा) बन जाएं।
  • गन्ध-वर्ण-रस उत्पत्ति: विशिष्ट गंध, वर्ण और रस का प्रकट होना।
  • स्थिरता: ठंडा होने पर जम जाना (पत्थर जैसा कठोर नहीं)।

पाक की अवस्थाएं:

आम पाक (Under-cooked): पतला, पानी में घुल जाए, शीघ्र खराब। खर पाक (Over-cooked): कठोर, जलने की गंध, गुणहीन। मध्यम पाक (Correct consistency): उपरोक्त सिद्धि लक्षणों से युक्त, श्रेष्ठ।

मात्रा (Dose):

सामान्यतः 1 पल (≈ 50 g) तक, या 1-2 कर्ष (12-24 g)। व्यवहार में 5-15 g दिन में 1-2 बार।

संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):

चौड़े मुंह वाले, वायुरोधी कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रखें। सवीर्यता अवधि सामान्यतः 1 वर्ष।

उदाहरण (Examples):

  • वासावलेह (Vasavaleha): मुख्य घटक - वासा स्वरस, पिप्पली चूर्ण, शर्करा, मधु, घृत। उपयोग - कास, श्वास, रक्तपित्त।
  • कूष्माण्ड अवलेह/पाक (Kushmanda Avaleha): मुख्य घटक - कूष्माण्ड (पेठा) स्वरस/कल्क, शर्करा, घृत, पिप्पली, शुण्ठी आदि प्रक्षेप। उपयोग - क्षय, दौर्बल्य, रक्तपित्त, उरःक्षत, रसायन।
  • अन्य: च्यवनप्राश, कंटकार्यवलेह, द्राक्षावलेह, चित्रक हरीतकी।

अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):

अवलेहों के मानकीकरण (Standardization), विभिन्न द्रव्यों के प्रभाव (जैसे एंटीऑक्सीडेंट, इम्युनोमॉड्यूलेटरी), और निर्माण प्रक्रिया में सुधार पर शोध हो रहे हैं। बाजार में च्यवनप्राश, वासावलेह आदि अनेक कंपनियों द्वारा उपलब्ध हैं।


2. स्नेह कल्पना (Sneha Kalpana - Medicated Ghee & Oil)

उद्देश्य एवं परिभाषा (Aims & Definition):

उद्देश्य (Aims):

  • औषध द्रव्यों के स्नेह-घुलनशील (Lipid-soluble) और जल-घुलनशील (Water-soluble - क्वाथ/स्वरस के माध्यम से) सक्रिय घटकों को स्नेह (घृत या तैल) में समाविष्ट करना।
  • स्नेह के अपने गुणों (वात-पित्त शामक, बृंहण, स्नेहन) के साथ औषध के गुणों को जोड़ना।
  • औषध को अधिक समय तक संरक्षित रखना।
  • अभ्यंग, नस्य, बस्ति, पान आदि विभिन्न मार्गों से प्रयोग योग्य बनाना।

परिभाषा: वह कल्पना जिसमें कल्क, क्वाथ/स्वरस आदि द्रव द्रव्यों को स्नेह (घृत या तैल) के साथ मिलाकर मंद अग्नि पर शास्त्रोक्त विधि से तब तक पकाया जाता है, जब तक केवल स्नेह शेष रह जाए और उसमें औषध द्रव्यों के गुण आ जाएं।

द्रवात् कल्कात् स्नेहपाको...
कल्कात् स्नेहाच्चतुर्गुणं। स्नेह चतुर्गुणं दद्यात् ... पयः स्वरस क्वाथं ...

(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड ९/१-२ का भावार्थ)

आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):

  • स्नेह द्रव्य (Base Fat/Oil): प्रायः गो घृत (Cow's Ghee) या तिल तैल (Sesame Oil)। अन्य तैल (जैसे एरंड, सरसों, नारियल) भी प्रयोग होते हैं।
  • कल्क द्रव्य (Paste): मुख्य औषध द्रव्यों का महीन कल्क (Paste)।
  • द्रव द्रव्य (Liquid Media): जल, क्वाथ, स्वरस, दुग्ध, तक्र, कांजी आदि।
  • (गंध द्रव्य - सुगंध के लिए अंत में मिलाए जाते हैं, यदि निर्देश हो)।

सामान्य निर्माण विधि (General Method):

अनुपात (मान): कल्क : स्नेह : द्रव = 1 : 4 : 16 (यह सामान्य नियम है, निर्देशानुसार बदल सकता है)।

  1. सर्वप्रथम स्नेह का **मूर्छन** करें (अगला बिंदु देखें)।
  2. एक पात्र में कल्क और द्रव द्रव्य मिलाएं।
  3. फिर मूर्छित स्नेह मिलाएं।
  4. मंद अग्नि पर पाक प्रारम्भ करें। बीच-बीच में चलाते रहें।
  5. जब अधिकांश जल उड़ जाए और केवल स्नेह शेष रहने लगे (फेन शांति, शब्द शांति), तब स्नेह पाक परीक्षा करें।
  6. निर्धारित पाक (मृदु, मध्यम, खर) सिद्ध होने पर अग्नि से उतार लें।
  7. गुनगुना रहने पर छान लें। यदि गंध द्रव्य मिलाना है तो इसी समय मिलाएं।
  8. ठंडा होने पर कांच या स्टील के पात्र में सुरक्षित रखें।

घृत/तैल मूर्छन (Murchhana of Ghee/Oil):

स्नेह पाक से पहले घृत या तैल का मूर्छन करना आवश्यक है।

  • उद्देश्य: स्नेह में स्थित आम दोष, दुर्गंध, उग्रता को दूर करना, उसकी ग्राही क्षमता (Absorption capacity for drug properties) बढ़ाना, और वर्ण सुधारना।
  • विधि: स्नेह में कुछ विशिष्ट द्रव्य (जैसे घृत के लिए - त्रिफला, नागरमोथा, हरिद्रा; तैल के लिए - मंजिष्ठा, लोध्र, हरिद्रा, नागरमोथा आदि) का कल्क और जल मिलाकर मंद अग्नि पर पकाया जाता है, जब तक जल न उड़ जाए और स्नेह के सिद्धि लक्षण प्रकट न हों। फिर छान लिया जाता है।

स्नेह सिद्धि लक्षण एवं पाक के प्रकार (Tests & Types of Paka):

स्नेह पाक की सिद्धि (पूर्णता) की जांच महत्वपूर्ण है।

फेनोद्गमे ... गन्धवर्णरसोद्भवः।
... स्नेहोत्कर्षश्च मध्यमे॥
... वर्तिवत् कल्कः ... मृदुमध्यमखराः क्रमात्॥

(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड ९/११-१४ का सार)
  • सामान्य लक्षण: फेन शांति (झाग का बैठ जाना), शब्द शांति (चटचटाहट बंद होना), विशिष्ट गंध-वर्ण-रस की उत्पत्ति।
  • कल्क परीक्षा: कल्क को अंगूठे और तर्जनी के बीच मसलने पर बत्ती (वर्ति) बने।
    • मृदु पाक (Mild): कल्क नरम हो, बत्ती बने पर थोड़ी चिपचिपाहट हो, अग्नि पर डालने पर हल्की चटचटाहट हो। (मुख्यतः नस्य हेतु)
    • मध्यम पाक (Moderate): कल्क न नरम न कठोर, बत्ती आसानी से बने, चिपचिपाहट न हो, अग्नि पर डालने पर शब्द न हो। (मुख्यतः पान, बस्ति, अभ्यंग हेतु - सर्वश्रेष्ठ पाक)
    • खर पाक (Hard): कल्क कठोर, सूखा, भंगुर हो, बत्ती मुश्किल से बने, अग्नि पर डालने पर जले। (मुख्यतः अभ्यंग हेतु)
    • दग्ध पाक (Burnt): कल्क काला, जला हुआ। (प्रयोग योग्य नहीं)
  • जल परीक्षा: स्नेह की बूंद पानी पर डालने पर फैल जाए।

पत्र पाक / गंध पाक (Patra Paka / Gandha Paka): जब स्नेह पाक में केवल सुगंधित द्रव्यों (जैसे चन्दन, अगरु) का प्रयोग कल्क के बिना किया जाता है, तो उसे गंध पाक कहते हैं।

पाक काल एवं तापमान (Time & Temperature):

  • पाक हमेशा मंद अग्नि पर करना चाहिए।
  • समय द्रव्य की मात्रा और अग्नि पर निर्भर करता है, कुछ घंटों से लेकर कई दिन लग सकते हैं।
  • तापमान 100°C के आसपास रहता है जब तक जल अंश रहता है, उसके बाद धीरे-धीरे बढ़ता है। सिद्धि लक्षण पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

आवर्तन (Avartana):

स्नेह के गुणों को उत्तरोत्तर बढ़ाने के लिए स्नेह पाक की प्रक्रिया को उसी स्नेह में बार-बार दोहराना आवर्तन कहलाता है (जैसे क्षीरबला तैल 101 आवर्ती)। प्रत्येक आवर्तन में स्नेह में औषध के गुण बढ़ते जाते हैं।

मात्रा (Dose):

पान हेतु - अग्निबलानुसार ½ कर्ष से 1 पल तक। अभ्यंग, नस्य, बस्ति हेतु आवश्यकतानुसार।

संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):

कांच या स्टील के वायुरोधी पात्र में रखें। घृत की सवीर्यता अवधि 16 मास, तैल की 16 मास (या अधिक, तैल जल्दी खराब नहीं होता)।

उदाहरण (Examples):

  • फल घृत (Phala Ghrita): मुख्य द्रव्य - मंजिष्ठा, मुलेठी, कुष्ठ, त्रिफला, शतावरी आदि का कल्क, दुग्ध। उपयोग - बंध्यत्व (Infertility), गर्भपोषण।
  • क्षीरबला तैल (Ksheerabala Taila): मुख्य द्रव्य - बला मूल कल्क/क्वाथ, क्षीर, तिल तैल। उपयोग - वात रोग, अर्दित, पक्षाघात, दौर्बल्य (विशेषकर आवर्तित तैल)।
  • अन्य: ब्राह्मी घृत, पंचतिक्त घृत, महानारायण तैल, सहचरादि तैल।

अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):

स्नेह कल्पना के मानकीकरण, विभिन्न पाक अवस्थाओं के रासायनिक विश्लेषण, और विशिष्ट रोगों (जैसे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) में उनकी प्रभावशीलता पर शोध हो रहे हैं। बाजार में अनेक प्रकार के सिद्ध घृत और तैल उपलब्ध हैं।


3. संधान कल्पना (Sandhana Kalpana - Fermented Formulations)

परिचय एवं महत्व (Introduction & Significance):

संधान कल्पना आयुर्वेद की एक विशिष्ट फर्मेंटेशन (किण्वन) आधारित प्रक्रिया है, जिससे आसव और अरिष्ट नामक अल्कोहलिक औषधियां बनाई जाती हैं।

  • महत्व:
    • किण्वन से औषध के गुण बदलते हैं, सूक्ष्म होते हैं, और शीघ्र प्रभावी होते हैं।
    • उत्पन्न अल्कोहल (स्वयं जनित) परिरक्षक (Preservative) का कार्य करता है, जिससे ये कल्पनाएं लंबे समय तक सुरक्षित रहती हैं।
    • यह कल्पना दीपन, पाचन, हृद्य, स्रोतोविशोधन गुणों से युक्त होती है।
    • अल्कोहल औषध के सक्रिय घटकों के निष्कर्षण (Extraction) और अवशोषण (Absorption) में मदद करता है।

वर्गीकरण (Classification):

संधान कल्पना को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:

  1. मध्य कल्पना (Madya Kalpana): जिनमें अल्कोहल उत्पन्न होता है (जैसे आसव, अरिष्ट, सुरा, सीधु)।
  2. शुक्त कल्पना (Shukta Kalpana): जिनमें एसिटिक एसिड (सिरका) उत्पन्न होता है (जैसे कांजी, शुक्त, तक्रारिष्ट)।

हम यहाँ मुख्य रूप से आसव और अरिष्ट पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

आसव एवं अरिष्ट में भेद (Difference between Asava & Arishta):

लक्षणआसव (Asava)अरिष्ट (Arishta)
निर्माण विधिऔषध द्रव्यों के स्वरस या शीतल जल में गुड़/शर्करा आदि मिलाकर संधान। (बिना उबाले)औषध द्रव्यों का क्वाथ बनाकर, ठंडा करके, उसमें गुड़/शर्करा आदि मिलाकर संधान। (उबालकर)
बल (Strength)अरिष्ट की अपेक्षा अधिक बलवान (सामान्यतः)आसव की अपेक्षा कम बलवान (सामान्यतः)
उदाहरणकुमार्यासव, उशीरासव, चन्दनासवदशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, द्राक्षारिष्ट

आवश्यक सामग्री (Essential Ingredients):

  • द्रव द्रव्य (Liquid Base): आसव के लिए - जल/स्वरस; अरिष्ट के लिए - क्वाथ।
  • मधुर द्रव्य (Fermenting Agent): गुड़ (पुराना), शर्करा, मधु, धान्य (जैसे चावल)।
  • संधान द्रव्य / किण्व (Yeast Source): धातकी पुष्प (Woodfordia fruticosa flowers) - यह प्राकृतिक यीस्ट का स्रोत है और संधान प्रक्रिया शुरू करता है।
  • प्रक्षेप द्रव्य (Aromatic/Additive Drugs): सुगंधित द्रव्यों (जैसे त्रिजात, त्रिकटु, नागरमोथा) का चूर्ण, जो संधान पूर्ण होने के बाद मिलाया जाता है।

अनुक्त मान (Unspecified Quantities): यदि शास्त्र में मात्रा न बताई हो तो सामान्य नियम - द्रव (क्वाथ/जल) - 1 द्रोण (≈ 12 L), गुड़ - 1 तुला (≈ 4.8 kg), मधु - गुड़ का आधा, प्रक्षेप - गुड़ का 1/10 भाग, धातकी पुष्प - गुड़ का 1/10 भाग।

सामान्य निर्माण विधि (General Method - Sandhana Vidhi):

  1. पात्र चयन (Sandhana Patra): मिट्टी का लेप किया हुआ घड़ा (स्निग्ध घट) या आजकल लकड़ी के पीपे (Wooden vats) या स्टील के टैंक। पात्र को धूपन (Fumigation - जैसे गुग्गुलु, वचा से) कर निर्जन्तुक (Sterilize) करें।
  2. द्रव्य मिश्रण: पात्र में द्रव (क्वाथ/जल), गुड़/शर्करा/मधु, संधान द्रव्य (धातकी पुष्प) आदि मिलाएं।
  3. संधान स्थापन: पात्र का मुख अच्छी तरह बंद (सन्धि लेपन) कर दें ताकि हवा अंदर न जाए, पर गैस बाहर निकल सके (या आधुनिक एयर-लॉक लगाएं)।
  4. स्थान चयन: पात्र को स्थिर, समान तापमान वाले स्थान पर (जैसे भूमिगत कक्ष, धान की राशि में) रखें। तापमान लगभग 25-30°C अनुकूल होता है।
  5. संधान काल (Fermentation Period): यह ऋतु, तापमान और द्रव्यों पर निर्भर करता है (7 दिन से 1 माह या अधिक)।
  6. संधान परीक्षा (Observations/Tests):
    • शब्द श्रवण: कान लगाने पर बुदबुदाहट (Bubbling sound) सुनाई देना (सक्रिय किण्वन)।
    • जलती शलाका परीक्षा (Burning Candle Test):** पात्र के मुख के पास जलती तीली ले जाने पर यदि बुझ जाए तो CO2 बन रही है (सक्रिय किण्वन), यदि तेजी से जले तो अल्कोहल वाष्प है, यदि सामान्य जले तो संधान पूर्ण हो सकता है।
    • चूना जल परीक्षा (Lime Water Test): पात्र से निकलने वाली गैस को चूने के पानी में प्रवाहित करने पर यदि वह दूधिया हो जाए तो CO2 बन रही है।
    • अन्य लक्षण: विशिष्ट गंध आना, द्रव का स्थिर हो जाना, मुख्य द्रव्यों का नीचे बैठ जाना।
  7. निस्रावण एवं प्रक्षेप: संधान पूर्ण होने पर द्रव को सावधानी से छान लें।
  8. इसमें निर्धारित प्रक्षेप द्रव्यों का चूर्ण मिलाएं।
  9. धारण काल: प्रक्षेप मिलाने के बाद पुनः कुछ दिनों (7-15 दिन) के लिए बंद पात्र में रखें ताकि प्रक्षेप के गुण समाविष्ट हो जाएं।
  10. अंत में छानकर बोतलों में भर लें।

संधान प्रक्रिया में महत्वपूर्ण कारक:

  • पात्र (Vessel): स्वच्छ, निर्जन्तुक, उचित आकार का।
  • स्थान (Place): समान तापमान, हवादार, स्वच्छ।
  • तापमान (Temperature): 25-30°C इष्टतम। कम या अधिक तापमान संधान को बाधित करता है।
  • संधान काल (Duration): ऋतु अनुसार भिन्न (ग्रीष्म में कम, शीत में अधिक)।
  • मधुर द्रव्य: गुड़/शर्करा/मधु की गुणवत्ता और मात्रा।
  • धातकी पुष्प: किण्व का मुख्य स्रोत, इसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण।
  • भस्म/प्रक्षेप: कुछ योगों में भस्म (जैसे लौहासव) या अन्य प्रक्षेप संधान के बाद मिलाए जाते हैं।

मात्रा (Dose):

2 से 4 तोला (24-48 ml), सामान्यतः 15-30 ml दिन में 2 बार भोजन के बाद समान मात्रा में जल मिलाकर।

संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):

रंगीन कांच की बोतलों में, ठंडे स्थान पर रखें। आसव-अरिष्ट चिरकाल तक स्थायी रहते हैं ('आसवा अरिष्टाश्च सर्वे स्युः चिरस्थायिनो गुणाधिकाः')। इनकी कोई निश्चित सवीर्यता अवधि नहीं है, जितने पुराने हों उतने गुणकारी माने जाते हैं (यदि विकृत न हुए हों)।

अल्कोहल प्रतिशत (%): स्वयं जनित अल्कोहल की मात्रा सामान्यतः 5-12% v/v होती है।

उदाहरण (Examples):

  • द्राक्षारिष्ट (Draksharishta): मुख्य घटक - द्राक्षा (मुनक्का) क्वाथ, गुड़, धातकी पुष्प, प्रक्षेप (त्रिजात, त्रिकटु आदि)। उपयोग - कास, श्वास, क्षय, दौर्बल्य, अर्श, अग्निमांद्य।
  • उशीरासव (Usheerasava): मुख्य घटक - उशीर, कमल, लोध्र आदि का शीतल जल, शर्करा, मधु, धातकी पुष्प, प्रक्षेप (पाठ, मंजिष्ठा आदि)। उपयोग - रक्तपित्त, दाह, तृष्णा, पाण्डु, प्रमेह, त्वचा रोग।
  • अन्य: दशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, कुमार्यासव, लोहासव, पुनर्नवासव।

अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):

संधान प्रक्रिया के मानकीकरण, अल्कोहल प्रतिशत नियंत्रण, यीस्ट की भूमिका, विभिन्न योगों की प्रभावशीलता और सुरक्षा पर निरंतर शोध हो रहे हैं। आसव-अरिष्ट बाजार में सर्वाधिक बिकने वाली आयुर्वेदिक कल्पनाओं में से हैं।


4. पथ्य कल्पना (Pathya Kalpana - Dietary Preparations)

परिभाषा एवं महत्व (Definition & Significance):

पथ्य (Pathya): 'पथः अनपेतम् इति पथ्यम्।' अर्थात् जो पथ (मार्ग - यहाँ स्रोतस् या स्वास्थ्य) के लिए हितकर हो, उसे पथ्य कहते हैं। यह रोगी के लिए सुपाच्य (Easily digestible), अग्नि वर्धक (Appetizer), दोष शामक और बल प्रदान करने वाला आहार है।

पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः।
पथ्येऽसति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः॥

(वैद्यजीवनम् / हारीत संहिता)

व्याख्या: रोगी के लिए यदि पथ्य (हितकर आहार) का सेवन किया जा रहा हो, तो औषध सेवन की क्या आवश्यकता है? और यदि पथ्य का सेवन नहीं किया जा रहा हो, तो औषध सेवन का क्या लाभ है? (अर्थात् चिकित्सा में पथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है)।

पथ्य कल्पना: रोगी की अग्नि, बल, दोष और रोग की अवस्था के अनुसार आहार द्रव्यों (जैसे चावल, दाल, सब्जियां) को विभिन्न विधियों से पकाकर सुपाच्य और हितकर स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया पथ्य कल्पना कहलाती है।

प्रकार एवं सामान्य निर्माण विधि (Types & General Method):

प्रमुख पथ्य कल्पनाएं, विशेषकर **पेय कल्पना (Peya Kalpana - Rice/Cereal based preparations)**, निम्नलिखित हैं, जो उत्तरोत्तर गुरु होती हैं:

  1. मण्ड (Manda): चावल (1 भाग) को 14 गुना जल में पकाकर, बिना चावल के कणों वाला, केवल मांड (Supernatant liquid) लेना। (अत्यंत लघु, दीपन, अनुलोमन)।
  2. पेया (Peya): चावल (1 भाग) को 14 गुना जल में पकाकर, जिसमें चावल के कण (सिक्त) बहुत कम हों, अधिक द्रव भाग हो। (मण्ड से गुरु, दीपन, पाचन, ग्राही)।
  3. विलेपी (Vilepi): चावल (1 भाग) को 4 गुना जल में पकाकर, जिसमें द्रव कम और चावल के कण (सिक्त) अधिक हों, गाढ़ी हो। (पेया से गुरु, ग्राही, तर्पण, बल्य)।
  4. यवागू (Yavagu): चावल (1 भाग) को 6 गुना जल में पकाकर, जिसमें द्रव और चावल के कण समान हों (न गाढ़ी न पतली)। इसमें औषध द्रव्य मिलाकर भी बनाया जाता है (औषध सिद्ध यवागू)। (विलेपी से गुरु, दोषानुसार प्रयोग)।
  5. ओदन/अन्न (Odana/Anna): चावल (1 भाग) को 5 गुना जल में पकाकर, जब चावल पक जाए और पानी सूख जाए (भात)। (सबसे गुरु, सामान्य आहार)।

अन्य पथ्य कल्पनाएं:

  • कृशरा (Krishara): चावल, दाल (प्रायः मूंग), घी/तैल और मसालों (जैसे त्रिकटु) को मिलाकर पकाई गई खिचड़ी। (बृंहण, बल्य, वात शामक)।
  • यूष (Yusha): दालों (प्रायः मूंग) या अन्य शमी धान्यों को 14 या 18 गुना जल में पकाकर बनाया गया सूप (Soup)। इसे कृत (घी/मसालों से छौंका हुआ) या अकृत (बिना छौंका) रूप में प्रयोग करते हैं। (लघु, दीपन, पाचन, स्रोतोग्लानिकर)। मुद्ग यूष श्रेष्ठ माना गया है।
  • तक्र कल्पना (Takra Kalpana): छाछ (Buttermilk) में औषध द्रव्य मिलाकर या सिद्ध करके प्रयोग करना (जैसे तक्रारिष्ट, तक्र धारा)। (लघु, ग्राही, दीपन, अर्श-ग्रहणी में उत्तम)।
  • खड (Khada): तक्र में बेसन या सत्तू और औषध द्रव्य मिलाकर पकाया गया गाढ़ा पेय। (रुचिकर, दीपन)।
  • काम्बलिक (Kambalika): तक्र, अम्ल द्रव्य (जैसे अनारदाना), तिल कल्क, स्नेह और मसालों से बना गाढ़ा योग।
  • राग (Raga) / षाडव (Shadava): फलों के रस या गूदे में शर्करा, लवण, मसाले मिलाकर बनाया गया चटनी जैसा योग (Sweet & sour appetizer)।

महत्व (Significance):

  • रोग की अवस्था में जब जठराग्नि मंद होती है, तब ये कल्पनाएं सुपाच्य पोषण प्रदान करती हैं।
  • शोधन कर्म (पंचकर्म) के पश्चात् अग्नि को धीरे-धीरे बढ़ाने (संसर्जन क्रम) में इनका प्रयोग होता है।
  • विभिन्न रोगों में दोषानुसार विशिष्ट पथ्य कल्पना का निर्देश होता है।

अनुसंधान अद्यतन एवं बाजार सर्वेक्षण (Research & Market Survey):

विभिन्न पथ्य कल्पनाओं के पोषण मूल्य (Nutritional value), पाचन पर प्रभाव और विशिष्ट रोगों में उनकी उपयोगिता पर शोध हो रहे हैं। आजकल बाजार में इंस्टेंट खिचड़ी, सूप मिक्स, हर्बल ड्रिंक्स आदि के रूप में पथ्य कल्पनाओं से मिलते-जुलते अनेक डाइटरी सप्लीमेंट्स (Dietary Supplements) उपलब्ध हैं, जिनकी गुणवत्ता और शास्त्रीयता का मूल्यांकन आवश्यक है।

परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)

  1. अवलेह कल्पना का सोदाहरण वर्णन करें (परिभाषा, विधि, पाक परीक्षा, मात्रा, सेवन काल)।
  2. स्नेह कल्पना का उद्देश्य बताते हुए सामान्य निर्माण विधि, मूर्छन, स्नेह पाक परीक्षा (त्रिविध पाक) और आवर्तन का वर्णन करें।
  3. संधान कल्पना क्या है? आसव एवं अरिष्ट में भेद स्पष्ट करते हुए सामान्य निर्माण विधि, संधान परीक्षा एवं महत्वपूर्ण कारकों का वर्णन करें।
  4. पथ्य कल्पना का महत्व बताते हुए पेय कल्पना (मण्ड, पेया, विलेपी, यवागू, ओदन) का सविस्तार वर्णन करें।
  5. Define and describe Avaleha Kalpana in detail covering method of preparation, Paka Pariksha, dose, shelf life with examples like Vasavaleha.
  6. Explain the aims of Sneha Kalpana. Describe the general method of preparation including Murchhana, Sneha Paka Pariksha (Trividha Paka) and concept of Avartana with examples like Phala Ghrita.
  7. What is Sandhana Kalpana? Differentiate between Asava and Arishta. Describe the general method of preparation, Sandhana Pariksha, and important factors affecting fermentation with examples like Draksharista.
  8. Discuss the importance of Pathya Kalpana. Describe Peya Kalpana (Manda, Peya, Vilepi, Yavagu, Odana) in detail.

लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)

  • अवलेह की परिभाषा एवं पाक सिद्धि लक्षण।
  • स्नेह कल्पना का उद्देश्य एवं प्रकार।
  • घृत मूर्छन एवं तैल मूर्छन।
  • स्नेह पाक के त्रिविध पाक (मृदु, मध्यम, खर)।
  • स्नेह कल्पना में आवर्तन।
  • आसव एवं अरिष्ट में अंतर।
  • संधान कल्पना में धातकी पुष्प का महत्व।
  • संधान परीक्षा (जलती शलाका, चूना जल)।
  • पथ्य की परिभाषा एवं महत्व।
  • पेय कल्पना का वर्गीकरण (मण्ड से ओदन तक)।
  • यूष कल्पना पर टिप्पणी लिखें।
  • क्षीर पाक कल्पना।
  • चूर्ण कल्पना।
  • अर्क कल्पना।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)

  • अवलेह का पर्याय? (लेह/पाक)
  • अवलेह पाक परीक्षा का एक लक्षण? (तन्तुमत्ता/अप्सु मज्जनम्)
  • स्नेह पाक से पूर्व क्या करना आवश्यक है? (मूर्छन)
  • पानार्थ श्रेष्ठ स्नेह पाक? (मध्यम)
  • नस्यार्थ श्रेष्ठ स्नेह पाक? (मृदु)
  • क्षीरबला तैल 101 आवर्ती - यहाँ आवर्तन का क्या अर्थ है? (पाक प्रक्रिया को 101 बार दोहराना)
  • आसव बिना उबाले बनता है या उबालकर? (बिना उबाले)
  • अरिष्ट किससे बनता है? (क्वाथ से)
  • संधान में प्रयुक्त मुख्य किण्व द्रव्य? (धातकी पुष्प)
  • आसव-अरिष्ट की सवीर्यता अवधि? (चिर स्थायी)
  • पथ्य का अर्थ? (स्रोतसों/स्वास्थ्य के लिए हितकर)
  • सबसे लघु पेय कल्पना? (मण्ड)
  • सबसे गुरु पेय कल्पना? (ओदन)
  • मूंग दाल के सूप को क्या कहते हैं? (मुद्ग यूष)
  • चावल, दाल, घी, मसालों से बनी कल्पना? (कृशरा)

About the Author: Sparsh Varshney

Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas (like Charaka, Sushruta, Vagbhata) and texts like Sharangdhara Samhita and Bhavaprakash. Specific procedures, ratios, ingredients, and shelf-life may vary based on different texts, traditions, and specific formulations. For practical application, manufacturing, and treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner and refer to authentic sources under expert guidance. Market survey and research updates are indicative and subject to change.