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NidānaPatha

निदानपथ (NidānaPatha)

निदानपथ (NidānaPatha)

आयुर्वेदीय रोग-निदान एवं परिक्षा शिक्षण प्रणाली

🎯 परियोजना का उद्देश्य (Aim)

आयुर्वेद के रोग-निदान विषय को आधुनिक शिक्षण तकनीक से जोड़ते हुए एक ऐसा डिजिटल माध्यम तैयार करना, जो विद्यार्थियों को निदान पंचक, रोगी एवं रोग परीक्षा, तथा सम्प्राप्ति के सिद्धांतों को सरल, दृश्यात्मक (Visual) और संवादात्मक (Interactive) ढंग से समझने में सहायता करे।

🌿 १. निदान पंचक (Nidāna Pañchaka)

शास्त्र कहते हैं —

निदानं पूर्वरूपाणि रुपाणि उपशयस्तथा |
सम्प्राप्ती श्चेति विज्ञानं रोगानाम पंचधा स्मृतम || (मा. नि.१/४)

निदान पंचक को पाँच आधारस्तंभों में विभाजित किया गया है। विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें —

🧩 विद्यार्थी “कारण से परिणाम” तक का सम्पूर्ण क्रम देख सकता है: Hetu → Doṣa → Dhātu → Srotas → Roga

🧬 २. रोगी परीक्षा (Rogī Parīkṣā)

चरकाचार्य कहते हैं —

रोगमादौ परीक्षेत ततोऽनन्तरमौषधम्।
ततः कर्म भिषक् कुर्यात् ज्ञानपूर्वं समाचरेत्॥ (च. सू. २०/२०)

रोगी परीक्षा के विभिन्न प्रकार इस प्रकार होंगे —

🔹 (A) द्विविध परीक्षा (Dvi-Vidhā Parīkṣā)
🔹 (B) त्रिविध परीक्षा (Tri-Vidhā Parīkṣā)
दर्शनस्पर्शनप्रश्नैः परीक्षेत च रोगिणम्॥ (अ.हृ.सू. १/२२)
🔹 (C) चतुर्विध परीक्षा (Chatur-Vidhā Parīkṣā)
🔹 (D) पंचविध परीक्षा (Pancha-Vidhā Parīkṣā)

👉 (यह अष्टस्थान परीक्षा का एक उपसमूह है।)

🔹 (E) षड्विध परीक्षा (Ṣaḍ-Vidhā ParīkṣSā)

यह परीक्षा रोग के बल और प्रकृति का आकलन करने के लिए छह प्रमुख घटकों पर केंद्रित है:

🩺 (F) अष्टस्थान परीक्षा (Aṣṭa-Sthāna Parīkṣā)

"नाडीमूत्रमलजिह्वाशब्दस्पर्शदृकाकृतयः।
अष्ट स्थाना परिक्ष्यन्ते नित्यं रोगिणमादरात्॥" (योगरत्नाकर)

आठ अंगों पर आधारित एक Virtual Patient इंटरफ़ेस होगा। कृपया परीक्षण हेतु एक अंग चुनें:

कृपया ऊपर दिए गए किसी एक स्थान का चयन करें...

🩻 ३. रोग परीक्षा (Roga Parīkṣā)

"रोगं रोगिणं च परिक्षेत् हेतुलक्षणोपशयैः।" (चरक संहिता, सूत्रस्थान १०/५)

यह भाग केवल रोग पर केन्द्रित होगा। विस्तृत जानकारी के लिए प्रत्येक विषय का विस्तार करें:

🔹 दोष-दूष्य मूलम् (Dosha-Dushya Basis)

इसका अर्थ है "कौन सा दोष किस धातु (दूष्य) को दूषित कर रहा है।" यह रोग का मूल आधार है। उदाहरण के लिए, आमवात (Rheumatoid Arthritis) में, वात दोष 'आम' (undigested toxins) के साथ मिलकर 'रस' धातु को दूषित करता है और संधियों (जोड़ों) में जमा हो जाता है।

🔹 स्रोतोदुष्टि भेद (Types of Channel Vitiation)

स्रोतस् (शारीरिक चैनल) चार प्रकार से दूषित हो सकते हैं:

  • सङ्ग (Sanga): अवरोध (Obstruction), जैसे पसीने का न आना।
  • अतिप्रवृत्ति (Atipravritti): अत्यधिक प्रवाह (Excessive flow), जैसे अतिसार (Diarrhea)।
  • विमार्गगमन (Vimargagamana): गलत दिशा में प्रवाह (Flowing in wrong path), जैसे रक्त का नाक से बहना (रक्तपित्त)।
  • सिराग्रन्थि (Sira Granthi): चैनलों में गांठ या उभार (Nodules/dilation), जैसे अर्श (Piles) या ट्यूमर।
🔹 सम्प्राप्ति गति (Direction of Pathogenesis)

यह रोग के विकसित होने की दिशा (कोर्स) को दर्शाता है। क्या रोग ऊर्ध्व (ऊपर की ओर, जैसे वमन), अधो (नीचे की ओर, जैसे अतिसार), या तिर्यक् (तिरछी, जैसे त्वचा रोग) गति कर रहा है। यह समझने से चिकित्सा की दिशा तय करने में मदद मिलती है।

🔹 रोगभेद (Disease Classification)

रोगों को उनके उप-प्रकारों (sub-types) में वर्गीकृत करना। उदाहरण के लिए, ज्वर (Fever) को 8 प्रकारों (वातज, पित्तज, कफज, आदि) में बांटा गया है। सही भेद जानने से ही विशिष्ट चिकित्सा (specific treatment) संभव है।

🔹 साध्य-असाध्य निर्णय (Prognosis)

यह रोग की चिकित्सा सम्भावना (curability) का मूल्यांकन है। इसे चार स्तरों में बांटा गया है:

  • सुखसाध्य (Sukhasādhya): आसानी से साध्य (Easily curable)।
  • कृच्छ्रसाध्य (Krichhrasādhya): कठिनाई से साध्य (Difficult to cure)।
  • याप्य (Yāpya): प्रबंधनीय (Manageable), जब तक दवा जारी है।
  • असाध्य (Asādhya): असाध्य (Incurable)।

🎓 ४. शिक्षण लाभ (Learning Outcomes)

  • ✅ निदान पंचक की गहराई से समझ
  • ✅ रोगी व रोग परीक्षा की तर्कशक्ति विकसित
  • ✅ शास्त्रीय सिद्धांतों का आधुनिक चित्रण
  • ✅ परीक्षा व अनुसंधान दोनों में सहायक
  • ✅ बीएएमएस द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों हेतु आदर्श शिक्षण माध्यम

🧠 ५. परीक्षा मोड (BAMS Quiz)

अपने ज्ञान का परीक्षण करें। यह BAMS द्वितीय वर्ष के पैटर्न पर आधारित एक त्वरित प्रश्नोत्तरी है।

🌼 ६. प्रेरणासूत्र (Inspirational Verse)

"निदानं यः प्रजानीते तस्य व्याधिः विनश्यति।
अन्यथा चिकित्सायां स्यादन्धकारेऽन्धगमनं॥" (चरक संहिता)

अर्थ:

जो वैद्य रोग का निदान (कारण और स्वरूप) भलीभाँति जानता है, वही सफल चिकित्सा कर सकता है। अन्यथा, बिना निदान के चिकित्सा अन्धकार में चलने के समान है।

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