कर्म (Karma) - द्रव्यगुण विज्ञान नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत **'कर्म' (Karma)** अध्याय पर केंद्रित है। कर्म, द्रव्यगुण के सप्त पदार्थों में से एक है, जो द्रव्य के 'Pharmacological Action' या चिकित्सीय प्रभाव को दर्शाता है। यह वह अंतिम परिणाम है जो एक द्रव्य, अपने रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव के माध्यम से, शरीर में उत्पन्न करता है। कर्म का ज्ञान ही चिकित्सा की सफलता का आधार है।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- कर्म परिभाषा: द्रव्य का वह कार्य (Action) जो शरीर में संयोग या विभाग उत्पन्न करता है, कर्म कहलाता है। (संयोगे च विभागे च कारणं द्रव्यमाश्रितम्...)
- आधार: कर्म किसी द्रव्य के रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव का अंतिम परिणाम (Net Result) होता है।
- मुख्य प्रकार: कर्म मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं - **शमन (Sanshamana)**, जो दोषों को शांत करे, और **शोधन (Sanshodhana)**, जो दोषों को शरीर से बाहर निकाले।
- वर्गीकरण: कर्म का सबसे महत्वपूर्ण वर्गीकरण आचार्यों द्वारा किया गया है - चरक के **50 महाकषाय** और सुश्रुत के **37 गण**।
- प्रमुख कर्म (शारंगधर): दीपन, पाचन, ग्राही, स्तम्भन, भेदन, लेखन, बृंहण, रसायन, वाजीकरण, छेदन आदि चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले मुख्य कर्म हैं।
कर्म (Karma - The Action)
द्रव्यगुण विज्ञान में, 'द्रव्य' को एक उपकरण (Tool) माना जाता है, और 'कर्म' वह कार्य है जिसे उस उपकरण से संपन्न किया जाता है। द्रव्य का सेवन करने का अंतिम लक्ष्य उसके 'कर्म' को प्राप्त करना ही है, चाहे वह दोषों को शांत (शमन) करना हो, उन्हें बाहर निकालना (शोधन) हो, या धातुओं को पोषित (बृंहण) करना हो।
कर्म की परिभाषा (Definition of Karma)
आचार्य चरक कर्म को परिभाषित करते हुए कहते हैं:
संयोगे च विभागे च कारणं द्रव्यमाश्रितम्।
            कर्तव्यस्य क्रिया कर्म, कर्म नान्यदपेक्षते॥
व्याख्या:
कर्म वह है जो:
- संयोग और विभाग में कारण हो: यह शरीर में दो चीजों को जोड़ता है (जैसे - संधान कर्म) या तोड़ता है (जैसे - भेदन कर्म)।
- द्रव्य में आश्रित हो: कर्म, द्रव्य के बिना नहीं रह सकता। द्रव्य आधार है और कर्म उसका कार्य है।
- कर्तव्य की क्रिया हो: यह वह 'action' है जिसे करने की अपेक्षा की जाती है (जैसे - वमन द्रव्य से वमन कर्म)।
- अन्य की अपेक्षा न करे: एक बार शुरू होने के बाद, कर्म अपने परिणाम को उत्पन्न करने के लिए किसी अन्य कारक पर निर्भर नहीं करता।
सरल शब्दों में, द्रव्य का शरीर पर होने वाला 'Pharmacological Action' ही 'कर्म' है।
कर्म का मुख्य वर्गीकरण (Primary Classification of Karma)
चिकित्सीय दृष्टि से, द्रव्य के कर्मों को दो मुख्य भागों में बांटा गया है:
1. शमन कर्म (Sanshamana Karma - Pacifying Action)
जो द्रव्य बढ़े हुए दोषों को शरीर से बाहर निकाले बिना, उन्हें अपने स्थान पर ही संतुलित या शांत कर दे, उसे शमन कर्म कहते हैं।
न शोधयति यद् दोषान् समान्नोदीरयत्यपि।
            समीकरोति विषमान् शमनं तद्यथाऽमृता॥
अर्थात्: जो न दोषों का शोधन करे, न ही सामान्य दोषों को बढ़ाए, बल्कि विषम (असंतुलित) दोषों को सम (संतुलित) कर दे, वह शमन कर्म है। उदाहरण: अमृता (गिलोय)।
2. शोधन कर्म (Sanshodhana Karma - Purifying Action)
जो द्रव्य संचित (Accumulated) दोषों को बलपूर्वक शरीर से निकटतम मार्ग द्वारा बाहर निकाल दे, उसे शोधन कर्म कहते हैं।
शरीराद् दूषितान् दोषान् बलाद् बहिरधोऽपि वा।
            नयति द्रव्यं विज्ञेयं तत्...॥
यह मुख्य रूप से पंचकर्म का आधार है।
- ऊर्ध्वभागहर (वमन): जो दोषों को मुख मार्ग (ऊर्ध्व) से बाहर निकाले। उदाहरण: मदनफल।
- अधोभागहर (विरेचन): जो दोषों को गुदामार्ग (अधो) से बाहर निकाले। उदाहरण: त्रिवृत्।
कर्म का विस्तृत वर्गीकरण (Detailed Classification of Karma)
द्रव्यों के असंख्य कर्मों को समझने के लिए आचार्यों ने उन्हें विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया है:
1. चरक के 50 महाकषाय (Charaka's 50 Mahakashaya)
आचार्य चरक ने 'चरक संहिता' (सूत्रस्थान 4) में 50 प्रमुख कर्मों के आधार पर 50 महाकषाय (Great Groups) का वर्णन किया है। प्रत्येक महाकषाय में उस विशिष्ट कर्म को करने वाले 10 द्रव्यों का उल्लेख है। यह वर्गीकरण 'Pharmacological Action' पर आधारित है।
कुछ प्रमुख महाकषाय:
- जीवनीय: जीवन शक्ति बढ़ाने वाले (जैसे - जीवक, ऋषभक)।
- बृंहणीय: शरीर को पुष्ट (Nourish) करने वाले (जैसे - अश्वगंधा, क्षीरिणी)।
- लेखनीय: शरीर में scraping (खुरचने) का कार्य करने वाले (जैसे - गुग्गुलु, वचा)।
- भेदनीय: जमे हुए मल को तोड़ने वाले (जैसे - कुटकी, चित्रक)।
- दीपनीय: अग्नि (Digestive fire) को प्रदीप्त करने वाले (जैसे - पिप्पली, चित्रक)।
- स्तन्यजनन: स्तन्य (Breast milk) उत्पन्न करने वाले (जैसे - वीरण, शतावरी)।
- मूत्रविरेचनीय: मूत्र की मात्रा बढ़ाने वाले (Diuretic) (जैसे - पुनर्नवा, गोक्षुर)।
2. सुश्रुत के 37 गण (Sushruta's 37 Ganas)
आचार्य सुश्रुत ने 'सुश्रुत संहिता' (सूत्रस्थान 38) में द्रव्यों को 37 गणों (Groups) में वर्गीकृत किया है। यह वर्गीकरण मुख्य रूप से 'Therapeutic Use' (चिकित्सीय प्रयोग) और कुछ हद तक द्रव्यों के समान गुणों पर आधारित है।
कुछ प्रमुख गण:
- आरग्वधादि गण: कफ शामक, वमन, कुष्ठ (Skin diseases) और विष नाशक।
- विदार्गन्धादि गण: वात-पित्त शामक, बृंहण, हृद्य (Cardiac tonic) और रसायन।
- पिपल्यादि गण: दीपन, पाचन, कफ-वात शामक और आम नाशक।
- गुडूच्यादि गण: त्रिदोष शामक, ज्वर नाशक, दीपन और रसायन।
- अंजन आदि गण: विष नाशक, दाह (Burning) और रक्तपित्त शामक।
शारंगधर के अनुसार प्रमुख चिकित्सीय कर्म (Important Karmas by Sharangadhara)
आचार्य शारंगधर ने (पूर्व खंड, अध्याय 4 में) कर्मों को उनकी क्रिया के आधार पर बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है, जो चिकित्सा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
| कर्म (Action) | शारंगधर परिभाषा (संक्षेप) और गुण | उदाहरण (Example) | 
|---|---|---|
| दीपन (Deepana) (Appetizer) | "दीपनं वह्निकृत् प्रोक्तं..." जो द्रव्य जठराग्नि को प्रदीप्त करे (भूख बढ़ाए), लेकिन आम का पाचन न करे। | सौंफ, पिप्पलीमूल | 
| पाचन (Pachana) (Digestant) | "पाचनं पाचयेदामं..." जो द्रव्य आम (Toxins/Undigested food) का पाचन करे, लेकिन जठराग्नि को आवश्यक रूप से न बढ़ाए। | नागकेशर, आम्र-अस्थि | 
| ग्राही (Grahi) (Absorbent) | "दीपनं पाचनं यत् स्यादुष्णत्वाद् द्रवशोषकम्। ग्राही..." जो दीपन-पाचन हो, और उष्ण होने से द्रव (जल) का शोषण करे। (गुण: उष्ण वीर्य) | शुण्ठी (सोंठ), जीरा, बिल्व | 
| स्तम्भन (Stambhana) (Astringent/Styptic) | "स्तम्भनं स्तम्भयेद्... यद्... रूक्षशीतगुणैर्युतम्।" जो रूक्ष (Dry) और शीत (Cold) गुणों से स्राव (Flow) को बलपूर्वक रोक दे। (गुण: शीत वीर्य) | कुटज, वट (बरगद), खदिर | 
| अनुलोमन (Anulomana) (Carminative) | "सकृत् पक्वं मलं बद्धं... अधो नयति यत्..." जो पक्वाशय में रुके हुए बद्ध मल को (पकाकर) नीचे की ओर गति प्रदान करे। | हरीतकी (हरड़) | 
| स्रंसन (Sransana) (Mild Laxative) | "यत् पक्वामेव शकृद... श्लिष्टं कोष्ठे... स्रंसयति..." जो पक्वाशय में चिपके हुए पक्व मल को (बिना पकाए) पिघलाकर बाहर निकाल दे। | आरग्वध (अमलतास) | 
| भेदन (Bhedana) (Purgative) | "मलं बद्धमबद्धं वा... पिण्डितं... भित्त्वाऽधः पातयेत्..." जो जमे हुए, कठिन या बंधे हुए (पिण्डित) मल को तोड़कर (भेदकर) बाहर निकाल दे। | कुटकी, एरण्ड तैल | 
| रेचन (Rechana) (Drastic Purgative) | "पक्वापक्वमलं... यद् द्रवतां नीत्वा रेचयति..." जो पक्व और अपक्व मल को पतला (द्रव) करके गुदमार्ग से (बलपूर्वक) बाहर निकाल दे। | त्रिवृत्, जयपाल | 
| छेदन (Chedana) (Cutting/Expectorant) | "श्लिष्टान् कफादीन्... बलादुन्मूलयेत्..." जो स्रोतसों में चिपके हुए कफ आदि दोषों को बलपूर्वक उखाड़ कर बाहर निकाल दे। | क्षार (Yavakshara), मरिच, शिलाजतु | 
| लेखन (Lekhana) (Scraping) | "धातून् मलान् वा देहस्य... विशोष्योल्लेखयेच्च यत्। लेखनं तत्..." जो शरीर की धातुओं, दोषों और मलों को सुखाकर या खुरच कर (Scrape) कम करे। | मधु (शहद), गुग्गुलु, वचा | 
| बृंहण (Brimhana) (Nourishing) | "बृंहणं गुरु... धातूनां वृद्धिं करोति।" जो द्रव्य शरीर की धातुओं का पोषण कर शरीर को पुष्ट (Nourish) और स्थूल (Bulky) बनाए। | अश्वगंधा, शतावरी, दुग्ध, घृत | 
| रसायन (Rasayana) (Rejuvenator) | "रसायनं च तज्ज्ञेयं यज्जराव्याधिनाशनम्।" जो द्रव्य उत्तम रस-रक्तादि धातुओं का निर्माण कर, वृद्धावस्था (Jara) और व्याधि का नाश करे। | आमलकी, गिलोय, हरीतकी | 
| वाजीकरण (Vajikarana) (Aphrodisiac) | "यत्किञ्चित् शुक्रजननं... तद् वाजीकरणं..." जो द्रव्य शुक्र धातु की वृद्धि कर यौन शक्ति (Sexual potency) को बढ़ाए। | कौंच बीज (कपिकच्छु), मूसली | 
| प्रमाथि (Pramathi) | जो द्रव्य अपने वीर्य से स्रोतसों में जमे हुए दोषों को मथकर (Agitate) बाहर निकाले। | वचा, मरिच | 
| अभिष्यन्दि (Abhishyandi) | जो द्रव्य अपने गुरु (Heavy) और पिच्छिल (Slimy) गुणों से स्रोतसों (Channels) को अवरुद्ध (Obstruct) कर दे और शरीर में भारीपन लाए। (अहितकर) | दधि (दही) | 
प्रमुख कर्मों में अंतर (Key Differentiations)
1. दीपन बनाम पाचन (Deepana vs. Pachana)
- दीपन (Appetizer): 'अग्नि' पर कार्य करता है (भूख बढ़ाता है)। यह आम का पाचन नहीं करता।
- पाचन (Digestant): 'आम' पर कार्य करता है (Toxin/Ama पचाता है)। यह अग्नि को नहीं बढ़ाता।
- दीपन-पाचन: जो द्रव्य दोनों कार्य करे, वह श्रेष्ठ है (जैसे - चित्रक, शुण्ठी)।
2. ग्राही बनाम स्तम्भन (Grahi vs. Stambhana)
यह अतिसार (Diarrhoea) की चिकित्सा में बहुत महत्वपूर्ण है:
| गुण | ग्राही (Grahi) | स्तम्भन (Stambhana) | 
|---|---|---|
| वीर्य | उष्ण (Hot) | शीत (Cold) | 
| कर्म | दीपन, पाचन और द्रव-शोषण (पहले आम पचाता है, फिर जल सोखता है)। | केवल रूक्ष और शीत गुणों से स्राव को बलपूर्वक रोकना। | 
| अग्नि पर प्रभाव | अग्नि को बढ़ाता है। | अग्नि को मंद करता है। | 
| उदाहरण | शुण्ठी, जीरा | कुटज, वट | 
| प्रयोग | आमातिसार (Diarrhoea with Ama/mucus) में श्रेष्ठ। | पक्वातिसार (Chronic diarrhoea, without Ama) या रक्तस्राव में। | 
चिकित्सा चेतावनी
'आमातिसार' (Infective diarrhoea) में स्तम्भन द्रव्य देने से 'आम' (Toxins) शरीर के अंदर ही रुक जाता है और अधिक गंभीर रोग (जैसे - ग्रहणी) उत्पन्न कर सकता है। इसलिए पहले ग्राही या पाचन द्रव्यों का प्रयोग कर 'आम' का पाचन करना अनिवार्य है।
3. मल विसर्जन कर्मों में अंतर (Laxative Actions)
यह वर्गीकरण कब्ज (Constipation) की चिकित्सा के लिए महत्वपूर्ण है:
| कर्म | क्रियाविधि | उदाहरण | 
|---|---|---|
| अनुलोमन | बद्ध मल को (आम पाचन कर) पकाकर, वायु की गति ठीक करके, मल को सरलता से बाहर निकालना। (Gentle Carminative) | हरीतकी | 
| स्रंसन | आंतों में चिपके 'पक्व' मल को (बिना पकाए) पिघलाकर (स्रंसन कर) बाहर निकालना। (Mild Laxative) | आरग्वध (अमलतास) | 
| भेदन | सूखे, कठोर, जमे हुए (पिण्डित) मल को 'तोड़कर' (भेदकर) बाहर निकालना। (Strong Purgative) | कुटकी, एरण्ड तैल | 
| रेचन | पक्व या अपक्व मल को 'पतला' (द्रव) करके, बलपूर्वक तीव्र गति से बाहर निकालना। (Drastic Purgative) | त्रिवृत्, जयपाल | 
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
(यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से 'कर्म' अध्याय पर आधारित है)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- कर्म की परिभाषा (च.सू. १/५२) लिखें। शमन और शोधन कर्म को सोदाहरण समझाएं। चरक के 50 महाकषाय और सुश्रुत के 37 गणों का संक्षेप में वर्णन करें।
- शारंगधर के अनुसार ग्राही और स्तम्भन कर्म को श्लोक सहित परिभाषित करें और उनमें विस्तृत अंतर स्पष्ट करें। आमातिसार में इनका प्रयोग कैसे किया जाना चाहिए?
- शारंगधर के अनुसार अनुलोमन, स्रंसन, भेदन, और रेचन कर्म को श्लोक सहित परिभाषित करें और उनमें अंतर स्पष्ट करें।
- Define Karma. Differentiate in detail between 'Grahi' and 'Stambhana' karma with their shlokas (Sharangadhara) and examples.
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- कर्म की परिभाषा एवं लक्षण बताएं। (च.सू. १/५२)
- दीपन और पाचन कर्म में अंतर सोदाहरण स्पष्ट करें।
- ग्राही और स्तम्भन कर्म में अंतर (श्लोक सहित) स्पष्ट करें।
- अनुलोमन, स्रंसन, भेदन, और रेचन कर्म को समझाएं।
- लेखन और बृंहण कर्म एक दूसरे से कैसे विपरीत हैं? सोदाहरण बताएं। (शारंगधर श्लोक सहित)
- रसायन और वाजीकरण कर्म को श्लोक सहित परिभाषित करें।
- छेदन और प्रमाथि कर्म को सोदाहरण समझाएं।
- चरक के 5 महाकषायों के नाम और उनका 1-1 द्रव्य लिखें।
- सुश्रुत के 3 गणों के नाम और उनका मुख्य कर्म लिखें।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- कर्म की परिभाषा (च.सू. १/५२) लिखें।
- शमन कर्म का उदाहरण दें। (गिलोय)
- शोधन कर्म का उदाहरण दें। (मदनफल / त्रिवृत्)
- ग्राही द्रव्य का श्लोक (आधा) लिखें। ("दीपनं पाचनं यत् स्यात्...")
- स्तम्भन द्रव्य का श्लोक (आधा) लिखें। ("स्तम्भनं स्तम्भयेद्... यद्...")
- ग्राही और स्तम्भन में मुख्य वीर्य का अंतर क्या है? (ग्राही उष्ण, स्तम्भन शीत)
- भेदन कर्म का एक उदाहरण दें। (कुटकी)
- लेखन कर्म का एक उदाहरण दें। (मधु)
- बृंहण कर्म का एक उदाहरण दें। (अश्वगंधा)
- रसायन कर्म की परिभाषा (शारंगधर) लिखें।
- अनुलोमन का एक उदाहरण दें। (हरीतकी)
- अभिष्यन्दि द्रव्य का एक उदाहरण दें। (दधि)
 
 
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