विपाक (Vipaka) - द्रव्यगुण विज्ञान नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत **'विपाक'** अध्याय पर केंद्रित है। विपाक, द्रव्य के सप्त पदार्थों में से एक है और रस एवं वीर्य के साथ मिलकर द्रव्य के कर्म (action) को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह द्रव्य का पाचन के उपरांत होने वाला अंतिम परिणामी प्रभाव (Post-digestive effect) है। इस अध्याय में हम विपाक की निरुक्ति, परिभाषा, भेद, गुण, कर्म और चिकित्सीय महत्व का अध्ययन करेंगे।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- विपाक परिभाषा: जठराग्नि द्वारा द्रव्य के पाचन (परिणाम) के अंत में उत्पन्न होने वाले विशिष्ट रस (प्रभाव) को विपाक कहते हैं।
- विपाक के भेद: मुख्यतः त्रिविध (मधुर, अम्ल, कटु) और द्विविध (गुरु, लघु) भेद माने जाते हैं। त्रिविध भेद सर्वाधिक मान्य है।
- रस से विपाक: सामान्यतः मधुर/लवण रस का विपाक मधुर, अम्ल का अम्ल, और कटु/तिक्त/कषाय का विपाक कटु होता है।
- विपाक का कर्म: विपाक दोषों (विशेषकर मल-मूत्र प्रवृत्ति) और शुक्र धातु पर प्रभाव डालता है। मधुर विपाक कफवर्धक, मल-मूत्र प्रवर्तक, शुक्रल होता है। अम्ल विपाक पित्तवर्धक, मल-मूत्र प्रवर्तक, शुक्रनाशक होता है। कटु विपाक वातवर्धक, मल-मूत्र रोधक, शुक्रनाशक होता है।
- महत्व: विपाक का ज्ञान द्रव्य के पाचन उपरांत होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को समझने और चिकित्सा में उचित द्रव्य चयन के लिए आवश्यक है। यह रस और वीर्य से अधिक बलवान हो सकता है।
विपाक (Vipaka - Post-digestive Effect/Transformation)
विपाक, द्रव्यगुण विज्ञान के सप्त पदार्थों में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। 'विपाक' शब्द का अर्थ है 'विशिष्ट पाक' या 'परिणाम पाक'। जब हम कोई आहार या औषध द्रव्य ग्रहण करते हैं, तो जठराग्नि (Digestive fire) और भूताग्नि (Elemental fire) द्वारा उसका पाचन होता है। इस पाचन प्रक्रिया के अंत में जो अंतिम रूप से परिवर्तित और विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे विपाक कहते हैं। यह द्रव्य के शरीर में अवशोषण (Absorption) के बाद होने वाले चयापचय (Metabolism) और उसके अंतिम प्रभाव को दर्शाता है।
विपाक की निरुक्ति एवं परिभाषा (Etymology and Definition of Vipaka)
निरुक्ति: 'वि + √पच् + घञ्' = विपाक।
- 'वि' उपसर्ग का अर्थ है 'विशिष्ट' या 'विरुद्ध'।
- 'पच्' धातु का अर्थ है 'पकाना' या 'पाचन करना'।
- अतः विपाक का अर्थ हुआ - विशिष्ट पाक क्रिया या पाचन का अंतिम परिणाम।
परिभाषा:
आचार्य चरक विपाक की स्पष्ट परिभाषा नहीं देते, परन्तु उसके कर्म का उल्लेख करते हैं। आचार्य वाग्भट्ट (अष्टांगहृदय) विपाक को परिभाषित करते हैं:
जठराग्निना योगाद् यदुदेति रसान्तरम्।
            रसानां परिणामान्ते स विपाक इति स्मृतः॥
व्याख्या:
जठराग्नि के योग (संयोग और क्रिया) से, रसों के **परिणाम के अंत में** (अर्थात् पाचन क्रिया पूर्ण होने पर) जो **रसान्तर** (दूसरा रस या परिवर्तित प्रभाव) उत्पन्न होता है, उसे **विपाक** कहा गया है।
यहाँ 'रसान्तर' का अर्थ केवल स्वाद में परिवर्तन नहीं है, बल्कि पाचन के बाद उत्पन्न होने वाले विशिष्ट गुण-धर्मों से है जो शरीर पर प्रभाव डालते हैं। यह अवस्थापाक (पाचन की प्रारंभिक अवस्थाएं - मधुर, अम्ल, कटु) से भिन्न, निष्ठापाक (पाचन का अंतिम चरण) का परिणाम है।
विपाक के भेद (Types of Vipaka)
विपाक के भेदों के संबंध में विभिन्न आचार्यों के मत हैं, जिनमें मुख्यतः दो मत प्रचलित हैं:
1. त्रिविध विपाक (Three Types - चरक, वाग्भट्ट आदि):
यह मत सर्वाधिक मान्य है। इसके अनुसार विपाक तीन प्रकार के होते हैं:
- मधुर विपाक (Madhura Vipaka)
- अम्ल विपाक (Amla Vipaka)
- कटु विपाक (Katu Vipaka)
विपाकस्त्रिविधो ज्ञेयो मधुरोऽम्लः कटुस्तथा।
(अष्टांगसंग्रह, सूत्रस्थान १७)2. द्विविध विपाक (Two Types - सुश्रुत, नागार्जुन आदि):
आचार्य सुश्रुत और रसशास्त्र के आचार्य नागार्जुन के अनुसार विपाक दो प्रकार का होता है:
- गुरु विपाक (Guru Vipaka)
- लघु विपाक (Laghu Vipaka)
रसस्य परिणामे तु यः कटुश्चाथ वा गुरुः।
             विपाक इति विज्ञेयो लघुश्चापि तथा गुरुः॥
द्विधा च गुणभेदात् गुरुर्लघुश्चेति।
(आचार्य प्रियव्रत शर्मा जी द्वारा नागार्जुन मत का उल्लेख)दोनों मतों में समन्वय (Reconciliation of the Views):
यद्यपि भेद संख्या में अंतर है, परन्तु दोनों मतों में समानता है। गुरु विपाक मुख्यतः मधुर विपाक के गुणों (गुरु, स्निग्ध) को दर्शाता है और कफ को बढ़ाता है। लघु विपाक मुख्यतः कटु और अम्ल विपाक के गुणों (लघु, रूक्ष/स्निग्ध) को दर्शाता है और क्रमशः वात और पित्त को बढ़ाता है। चिकित्सा की दृष्टि से त्रिविध विपाक अधिक स्पष्ट और उपयोगी माना जाता है।
| विपाक (त्रिविध) | संबंधित विपाक (द्विविध) | प्रमुख गुण | दोष प्रभाव | 
|---|---|---|---|
| मधुर | गुरु | गुरु, स्निग्ध | कफ वर्धक, वात-पित्त शामक | 
| अम्ल | लघु (कुछ गुरुत्व भी) | लघु, स्निग्ध, उष्ण | पित्त वर्धक, कफ वर्धक, वात शामक | 
| कटु | लघु | लघु, रूक्ष | वात वर्धक, पित्त वर्धक, कफ शामक | 
रस से विपाक का निर्धारण (Determination of Vipaka from Rasa)
सामान्यतः द्रव्य का विपाक उसके मुख्य रस पर आधारित होता है। इसका सामान्य नियम (प्रायिक नियम) इस प्रकार है:
मधुरस्य अम्लोऽम्लस्य लवणस्य च जायते।
             विपाकः स्वादुः,... कटुतिक्तकषायणाम्॥
             प्रायेण कटुकः... 
व्याख्या:
प्रायः (Generally),
- मधुर और लवण रस का विपाक **मधुर** होता है।
- अम्ल रस का विपाक **अम्ल** होता है।
- कटु, तिक्त, और कषाय रस का विपाक **कटु** होता है।
| मुख्य रस (Rasa) | सामान्य विपाक (Vipaka) | 
|---|---|
| मधुर (Sweet) | मधुर (Sweet) | 
| अम्ल (Sour) | अम्ल (Sour) | 
| लवण (Salty) | मधुर (Sweet) | 
| कटु (Pungent) | कटु (Pungent) | 
| तिक्त (Bitter) | कटु (Pungent) | 
| कषाय (Astringent) | कटु (Pungent) | 
अपवाद (Exceptions)
यह नियम 'प्रायिक' है, अर्थात् अधिकांश द्रव्यों पर लागू होता है, लेकिन इसके महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं। कुछ द्रव्यों का विपाक उनके रस से भिन्न हो सकता है, जिसका कारण द्रव्य का 'प्रभाव' या विशिष्ट रासायनिक संरचना हो सकती है।
- पिप्पली (Piper longum): रस कटु, विपाक मधुर।
- आमलकी (Emblica officinalis): रस अम्ल (मुख्य), विपाक मधुर।
- शुण्ठी (Zingiber officinale): रस कटु, विपाक मधुर।
- गुडूची (Tinospora cordifolia): रस तिक्त, विपाक मधुर।
इन अपवादों का ज्ञान चिकित्सा में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विपाक के गुण एवं कर्म (Properties and Actions of Vipaka)
विपाक का कर्म मुख्यतः दोषों पर, विशेषकर मल-मूत्र की प्रवृत्ति पर और शुक्र धातु पर होता है।
विपाको नाम कर्मणां निष्ठया यदुपलभ्यते।
(सुश्रुत संहिता, सूत्रस्थान ४०/८)व्याख्या:
कर्मों की निष्ठा (completion of action/digestion) पर जो उपलब्ध होता है (या अनुभव होता है), वह विपाक है। सुश्रुत विपाक को कर्म के रूप में देखते हैं।
| विपाक | दोष प्रभाव | मल-मूत्र प्रभाव | शुक्र प्रभाव | अन्य कर्म | 
|---|---|---|---|---|
| मधुर | कफ वर्धक, वात-पित्त शामक | सृष्टविण्मूत्र (मल-मूत्र को आसानी से निकालने वाला) | शुक्रल (शुक्र वर्धक) | बृंहण, बल्य | 
| अम्ल | पित्त वर्धक, (कफ वर्धक), वात शामक | सृष्टविण्मूत्र (मल-मूत्र को निकालने वाला) | शुक्रनाशक (शुक्र का ह्रास करने वाला) | पाचन, अनुलोमन | 
| कटु | वात वर्धक, (पित्त वर्धक), कफ शामक | बद्धविण्मूत्र (मल-मूत्र को रोकने वाला) | शुक्रनाशक (शुक्र का ह्रास करने वाला) | लेखन, शोषण | 
(नोट: द्विविध विपाक के अनुसार, गुरु विपाक मधुर विपाक के समान और लघु विपाक कटु और अम्ल विपाक के समान कर्म करता है।)
विपाक का चिकित्सीय महत्व (Clinical Importance of Vipaka)
विपाक का ज्ञान द्रव्य के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने के लिए आवश्यक है:
- द्रव्य चयन: केवल रस के आधार पर द्रव्य का चयन भ्रामक हो सकता है। उदाहरण के लिए, पिप्पली का रस कटु होने के कारण कफ शामक है, लेकिन उसका विपाक मधुर होने के कारण वह वात-पित्त को अधिक नहीं बढ़ाता और रसायन (rejuvenative) कर्म भी करता है। शुण्ठी कटु रस और उष्ण वीर्य होते हुए भी मधुर विपाक के कारण ग्राही (absorbent) है और आमवात में उपयोगी है।
- मल-मूत्र प्रवृत्ति: विपाक का सीधा प्रभाव मल-मूत्र की प्रवृत्ति पर पड़ता है। कब्ज (बद्धकोष्ठ) वाले रोगी को कटु विपाक वाले द्रव्य (जैसे हरीतकी) देते समय सावधानी रखनी चाहिए या मधुर विपाक वाले द्रव्यों (जैसे आरग्वध) का चयन करना चाहिए। अतिसार (Diarrhoea) में मधुर या अम्ल विपाक वाले द्रव्य नहीं देने चाहिए।
- शुक्र धातु पर प्रभाव: वाजीकरण (Aphrodisiac) चिकित्सा में शुक्रल (मधुर विपाक) द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है, जबकि शुक्र का ह्रास करने के लिए कटु या अम्ल विपाक वाले द्रव्यों का प्रयोग किया जा सकता है।
- दीर्घकालिक प्रभाव: रस का प्रभाव तुरंत अनुभव होता है, जबकि विपाक का प्रभाव पाचन पूर्ण होने के बाद शरीर में अवशोषण के उपरांत प्रकट होता है और अधिक स्थायी होता है।
- रस, वीर्य, विपाक का बलाबल: सामान्यतः कर्म निर्धारण में विपाक, रस से बलवान होता है और वीर्य, विपाक से बलवान माना जाता है (वीर्य > विपाक > रस)। हालांकि, 'प्रभाव' इन सबसे बलवान होता है।
अतः, किसी द्रव्य के पूर्ण प्रभाव को समझने के लिए रस, वीर्य और विपाक तीनों का सम्मिलित ज्ञान आवश्यक है।
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
(यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से 'विपाक' अध्याय पर आधारित है)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- विपाक की निरुक्ति एवं परिभाषा लिखें। विपाक के भेदों (त्रिविध एवं द्विविध) का वर्णन करें और उनमें समन्वय स्थापित करें।
- रस से विपाक निर्धारण के सामान्य नियम एवं अपवादों को सोदाहरण समझाएं। त्रिविध विपाक के गुण एवं कर्म विस्तार से लिखें।
- Define Vipaka according to Vagbhata. Describe the different types of Vipaka (Dwividha and Trividha) with reconciliation.
- Explain the general rules and exceptions for determining Vipaka from Rasa with examples. Describe the properties and actions of Trividha Vipaka in detail.
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- विपाक की परिभाषा एवं लक्षण (अ.हृ.सू. ९/२०)।
- त्रिविध विपाक कौन-कौन से हैं?
- द्विविध विपाक कौन-कौन से हैं?
- रस से विपाक निर्धारण का सामान्य नियम लिखें।
- रस से भिन्न विपाक वाले दो द्रव्यों के नाम लिखें (अपवाद)।
- मधुर विपाक के गुण एवं कर्म लिखें।
- कटु विपाक के गुण एवं कर्म लिखें।
- विपाक का चिकित्सीय महत्व संक्षेप में बताएं।
- रस, वीर्य और विपाक में बलाबल (Hierarchy of strength) क्या है?
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- विपाक की परिभाषा लिखें।
- 'परिणामान्ते स विपाक इति स्मृतः' - यह किस आचार्य का कथन है? (वाग्भट्ट)
- त्रिविध विपाक के नाम लिखें। (मधुर, अम्ल, कटु)
- द्विविध विपाक के नाम लिखें। (गुरु, लघु)
- लवण रस का विपाक सामान्यतः क्या होता है? (मधुर)
- तिक्त रस का विपाक सामान्यतः क्या होता है? (कटु)
- पिप्पली का विपाक क्या है? (मधुर)
- आमलकी का विपाक क्या है? (मधुर)
- शुक्रल विपाक कौन सा है? (मधुर)
- बद्धविण्मूत्र किस विपाक का कर्म है? (कटु)
 
 
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