परिभाषा (Paribhasha - Terminology) - रसशास्त्र नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विषय के अंतर्गत 'परिभाषा (Paribhasha - Terminology)' अध्याय पर केंद्रित है। किसी भी शास्त्र, विशेषकर रसशास्त्र जैसे गूढ़ एवं प्रक्रिया प्रधान शास्त्र को भली-भांति समझने के लिए उसकी विशिष्ट शब्दावली (Terminology) का स्पष्ट ज्ञान होना अनिवार्य है। रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना में अनेक पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनका विशिष्ट और निश्चित अर्थ होता है जो सामान्य अर्थ से भिन्न हो सकता है।
इस अध्याय में हम परिभाषा का महत्व, कुछ मूलभूत शब्दों की व्युत्पत्ति, द्रव्यों के वर्गीकरण से संबंधित परिभाषाएं (रस, महारस, धातु, विष आदि), प्रक्रियाओं से संबंधित परिभाषाएं (शोधन, मारण, संस्कार आदि), मानकीकरण से संबंधित परिभाषाएं (भस्म परीक्षा), पूरक परिभाषाएं (रुद्र भाग आदि) और मान-परिभाषा (माप-तौल की इकाइयां) का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- परिभाषा महत्व: शास्त्र के गूढ़ अर्थों को समझने, भ्रम निवारण, संक्षिप्तता, मानकीकरण और ज्ञान संरक्षण के लिए पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान आवश्यक है।
- मूलभूत शब्द: औषध (रोगनाशक), भेषज (रोगभयनाशक), कल्पना (निर्माण विधि), कषाय (रोगनाशक/मूल कल्पना), संस्कार (गुणाधान)।
- द्रव्य वर्ग परिभाषा: रस (पारद), महारस (8), उपरस (8), साधारण रस, धातु (7+), उपधातु (7), रत्न (9), उपरत्न, सुधा वर्ग, सिकता वर्ग, लवण वर्ग, विष (9/11), उपविष (7/11), कज्जली, मित्रपंचक आदि का वर्गीकरण एवं परिचय।
- संदिग्ध/अनुपलब्ध/कृत्रिम/प्रतिनिधि द्रव्य: इनकी परिभाषा एवं उदाहरण।
- प्रक्रिया परिभाषा: शोधन (सामान्य, विशेष; स्वेदन, मर्दन, धालन आदि), मारण (पुटपाक, कूपीपक्व), जारण, मूर्छन, अमृतीकरण, लोहितीकरण, सत्वपातन, द्रुति, पारद संस्कार (अष्ट/अष्टदश) आदि प्रक्रियाओं का विस्तृत अर्थ।
- मानकीकरण परिभाषा: ग्राह्य-अग्राह्य लक्षण, सिद्धि लक्षण, भस्म परीक्षा (वारितर, रेखापूर्णता, अपुनर्भव, निरुत्थ आदि) के मानक।
- पूरक परिभाषा: रुद्र भाग, धन्वन्तरि भाग।
- मान परिभाषा: प्राचीन (मागध, कलिंग) एवं आधुनिक माप-तौल इकाइयां और उनका रूपांतरण (Conversion)। काल मान।
परिभाषा प्रकरण (Paribhasha Prakarana - Chapter on Terminology)
1. परिभाषा का लक्षण एवं महत्व (Definition and Importance of Paribhasha)
परिभाषा लक्षण (Definition of Paribhasha):
शब्द व्युत्पत्ति: 'परि + √भाष् + अङ् + टाप्' = परिभाषा।
अर्थ: किसी विषय या शब्द के स्वरूप को चारों ओर से (सम्यक् प्रकार से) स्पष्ट करने वाला कथन या नियम।
अनियममे नियमकारिणी परिभाषा।
(विभिन्न व्याकरण एवं दर्शन ग्रंथों का सार)"जहाँ नियम स्पष्ट न हो, वहाँ नियम स्थापित करने वाली युक्ति परिभाषा है।"
तात्पर्य: परिभाषा वह युक्ति है जो शास्त्र में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के निश्चित अर्थ को स्थापित करती है, जिससे किसी प्रकार के संदेह या अनेकार्थकता का निवारण होता है और शास्त्र का अध्ययन सुगम बनता है।
महत्व (Importance):
- स्पष्टता (Clarity): शास्त्र के गूढ़ और संक्षिप्त सूत्रों या श्लोकों का यथार्थ अर्थ समझने में सहायता मिलती है।
- भ्रम निवारण (Avoiding Confusion): एक ही शब्द के विभिन्न संदर्भों (Contexts) में अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं (जैसे 'रस' शब्द पारद, स्वाद, रस धातु आदि के लिए प्रयुक्त होता है)। परिभाषा उस विशिष्ट संदर्भ में सही अर्थ को इंगित करती है।
- संक्षिप्तता (Brevity): पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग से लंबे विवरणों के स्थान पर संक्षिप्त और सारगर्भित कथन संभव होता है।
- मानकीकरण (Standardization): प्रक्रियाओं (जैसे शोधन, मारण, पुट) और गुणवत्ता मानकों (जैसे भस्म परीक्षा) को सुनिश्चित रूप से परिभाषित करके प्रायोगिक कार्यों में एकरूपता (Uniformity) लाई जाती है।
- ज्ञान का संरक्षण एवं संचार (Preservation & Communication of Knowledge): परिभाषाएं शास्त्र के विशिष्ट ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी सही रूप में हस्तांतरित करने और विभिन्न विद्वानों के बीच स्पष्ट संचार स्थापित करने में मदद करती हैं।
- निदान एवं चिकित्सा में सटीकता: रोगों और औषधियों के विशिष्ट लक्षणों और कर्मों को परिभाषित शब्दों द्वारा समझने से निदान और चिकित्सा में सटीकता आती है।
2. मूलभूत शब्दों की व्युत्पत्ति एवं अर्थ (Word Derivation & Meaning)
रसशास्त्र और भैषज्य कल्पना के अध्ययन से पूर्व कुछ आधारभूत शब्दों का अर्थ जानना आवश्यक है:
- औषध (Aushadha): 'ओषं रुजं धयति इति औषधम्।' अर्थात् जो ओष (दाह/पीड़ा/रोग) का पान करे या शमन करे। प्रायः यह शब्द काष्ठौषधियों (Herbal drugs) के लिए अधिक प्रयुक्त होता है।
- भेषज (Bheshaja): 'भेषं रोगभयं जयति इति भेषजम्।' अर्थात् जो रोग के भय को जीते या नष्ट करे। यह औषध का पर्याय है और अधिक व्यापक अर्थ (सभी प्रकार की औषधियां - काष्ठौषधि, रसौषधि, चिकित्सा विधि) में प्रयुक्त होता है।
- कल्पना (Kalpana): 'कल्पनम् इति कल्पना।' अर्थात् प्रयोग हेतु योजना या निर्माण विधि। औषध द्रव्यों को प्रयोग योग्य बनाने की प्रक्रिया।
- कषाय (Kashaya): 'कष गतिहिंसादरणेषु।' धातु से। 'कषति हिनस्ति रोगान् इति कषायः।' अर्थात् जो रोगों का नाश करे। 'कर्षति दोषान् शरीरात् इति कषायः।' अर्थात् जो शरीर से दोषों को खींचे या निकाले। यह शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है:
                    - षड् रसों में से एक - कषाय रस (Astringent taste)।
- पंचविध कषाय कल्पना (स्वरस, कल्क, क्वाथ, हिम, फाण्ट) का सामान्य नाम।
- क्वाथ (Decoction) कल्पना का पर्याय।
 
- पंच कषाय योनि (Pancha Kashaya Yoni): भैषज्य कल्पना की 5 मूल विधियाँ (Bases of formulations) - स्वरस, कल्क, क्वाथ, हिम, फाण्ट। इन्हीं से अन्य कल्पनाएं विकसित होती हैं।
- संस्कार (Samskara):
                    संस्कारो हि गुणान्तराधानमुच्यते। (चरक संहिता, विमानस्थान १/२४)"जिसके द्वारा द्रव्य के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन लाकर नए गुण उत्पन्न किए जाएं, वह संस्कार है।" अर्थात् किसी द्रव्य पर की जाने वाली वह प्रक्रिया जिससे उसके गुणों में परिवर्तन (वृद्धि, ह्रास या नए गुण की उत्पत्ति) हो, संस्कार कहलाती है (जैसे - चावल को पकाने से वह सुपाच्य हो जाता है, विष का शोधन करने से वह अमृत समान हो जाता है)। 
3. द्रव्य / वर्ग परिभाषा (Terminology related to Substances/Groups)
रसशास्त्र में द्रव्यों को उनके स्रोत, गुण, कर्म और महत्व के आधार पर विभिन्न वर्गों (Vargas) में वर्गीकृत किया गया है। इन वर्गों और उनके अंतर्गत आने वाले द्रव्यों की परिभाषा जानना आवश्यक है।
A) प्रमुख वर्ग (Major Groups):
| वर्ग | संक्षिप्त परिचय एवं उदाहरण | 
|---|---|
| रस (Rasa) | मुख्यतः पारद (Mercury, Hg)। इसे रसराज, सूत, शिववीर्य, चपल आदि नामों से जाना जाता है। यह रसशास्त्र का केंद्रीय द्रव्य है, जिसके संस्कार और योगों का विस्तृत वर्णन मिलता है। | 
| महारस (Maharasa - 8) | पारद कर्म में सहायक, महत्वपूर्ण 8 खनिज द्रव्य। श्लोक: 'अभ्रवैक्रान्तमाक्षिकविमलानिसस्यकश्चपलः। रसकश्चेत्यष्टौ संग्रहे महारसाः स्मृताः॥' (र.र.स. २/१)। उदाहरण: अभ्रक (Mica), वैक्रान्त (Tourmaline?), माक्षिक (Pyrite), विमल (Iron Pyrite?), शिलाजतु (Bitumen), सस्यक (Copper Sulphate), चपल (Bismuth Ore?), रसक (Zinc Ore?)। | 
| उपरस (Uparasa - 8) | महारसों की अपेक्षा गौण, किन्तु औषध निर्माण में उपयोगी 8 खनिज। श्लोक: 'गन्धकाश्मगैरिककासीसतालकशिलाञ्जनम्। कंकुष्ठं चेत्युपरसाः रसशास्त्रेऽष्ट कीर्तिताः॥' (र.र.स. ३/१)। उदाहरण: गन्धक (Sulphur), गैरिक (Red Ochre), कासीस (Green Vitriol), स्फटिका (Alum - कुछ ग्रंथों में), हरताल (Orpiment), मनःशिला (Realgar), अंजन (Antimony Sulphide), कंकुष्ठ (Gambooge?)। | 
| साधारण रस (Sadharana Rasa - 8) | कुछ ग्रंथों में उपरसों के अतिरिक्त वर्णित 8 खनिज, जो पारद कर्म में सहायक होते हैं। श्लोक: 'कम्पिल्लश्चपरो गौरी नवसारः कपर्दकः। बह्निजारो गिरिजतुर्हिंगुलश्च साधारणो रसः॥' (आ. प्र. २/३६३)। उदाहरण: कम्पिल्लक (Mallotus philippensis resin), गौरीपाषाण (Arsenic White), नवसादर (Ammonium Chloride), कपर्द (Cowrie shells), बह्निजार (Ambergris?), गिरिसिन्दूर (Red Lead Oxide?), हिंगुल (Cinnabar), मुर्दाशंख (Litharge)। | 
| धातु वर्ग (Dhatu Varga - 7+) | मुख्य धातुएं। इन्हें शुद्ध धातु (स्वर्ण, रजत) और पूति धातु (ताम्र, लौह, नाग, वंग, यशद) में बांटा जाता है। श्लोक: 'स्वर्णं तारारताम्राणि लोहं नागं च वंगकम्। यशदश्चेति धातूनां श्रेष्ठान्येतानि सप्त हि॥'। इनके अतिरिक्त मिश्र धातु (पीतल, कांस्य) का भी प्रयोग होता है। | 
| उपधातु (Upadhatu - 7) | धातुओं के समान दिखने वाले या उनके मल स्वरूप 7 द्रव्य। श्लोक: 'माक्षिकं तुत्थकमभ्रसत्वं नीलाञ्जनं सिन्दूरकम्। शिलाजतु च सप्तैवोपधातुनि प्रचक्षते॥' (र.र.स. अनुसार भेद)। उदाहरण: स्वर्ण माक्षिक, तार माक्षिक, तुत्थ (Copper Sulphate), अभ्रकसत्व, नीलाञ्जन (Galena?), सिन्दूर (Red Lead), शिलाजतु। | 
| रत्न (Ratna - 9) | मुख्य 9 बहुमूल्य रत्न (नवरत्न), जिनका प्रयोग पिष्टि या भस्म रूप में होता है। श्लोक: 'माणिक्यमुक्ताफलविद्रुमाणि गारुत्मतं पुष्परागञ्च। वज्रं नीलं गोमेदाख्यं वैदूर्यं च क्रमाद् विदुः॥' (युक्तिकल्पतरु)। उदाहरण: माणिक्य (Ruby), मुक्ता (Pearl), प्रवाल (Coral), मरकत/पन्ना (Emerald), पुखराज (Topaz), वज्र/हीरक (Diamond), नीलम (Sapphire), गोमेद (Hessonite), वैदूर्य (Cat's eye)। | 
| उपरत्न (Uparatna) | रत्नों की अपेक्षा गौण, किन्तु औषधीय प्रयोग वाले पत्थर। उदाहरण: वैक्रान्त, सूर्यकान्त, चन्द्रकान्त, राजावर्त, पेरोजा, स्फटिक, अम्बर (तृणकान्तमणि), संगयेयशब (Jade) आदि। | 
| सुधा वर्ग (Sudha Varga) | Calcium युक्त द्रव्य, क्षार गुण प्रधान। उदाहरण: सुधा (Calcium Oxide/Hydroxide), खटिका (Calcium Carbonate), गोदन्ती (Gypsum), शंख (Conch shell), शुक्ति (Oyster shell), कपर्द (Cowrie shell), प्रवाल (Coral), समुद्रफेन (Cuttlefish bone), कुक्कुटाण्डत्वक् (Egg shell)। | 
| सिकता वर्ग (Sikata Varga) | Silica (SiO2) युक्त द्रव्य। उदाहरण: सिकता (बालू/Sand), दुग्धपाषाण (Talc/Steatite), संगयेयशब (Jade), कहरुआ/तृणकान्तमणि (Amber)। | 
| लवण वर्ग (Lavana Varga - 5+) | मुख्य 5 लवण (पंचलवण): सैंधव, सामुद्र, विड, सौवर्चल, औद्भिद। इनके अतिरिक्त रोमक लवण, पांशुज लवण आदि। | 
| विष वर्ग (Visha Varga - 9/11) | तीव्र प्रभाव वाले, प्राणघातक स्थावर (वनस्पतिज) विष, जिन्हें शोधन के पश्चात् अल्प मात्रा में प्रयोग किया जाता है। मुख्य 9 विष - वत्सनाभ, हरीत, सक्तुक, प्रदीपन, सौराष्ट्रिक, श्रृंगी, कालकूट, मेषश्रृंग, हालाहल। (संख्या और नामों में मतभेद)। | 
| उपविष वर्ग (Upavisha Varga - 7/11) | विष की अपेक्षा कम तीव्र प्रभाव वाले स्थावर विष, जिन्हें भी शोधन के बाद ही प्रयोग करते हैं। मुख्य 7 उपविष - अर्क क्षीर, स्नुही क्षीर, लांगली, करवीर, गुंजा, अहिफेन (अफीम), धत्तूर। (संख्या और नामों में मतभेद)। | 
| कज्जली (Kajjali) | शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक को खरल में बिना किसी द्रव के मर्दन करने पर बनने वाला काला ('कज्जलवत्'), मसृण (Smooth), चमकरहित ('निश्चन्द्र') चूर्ण। यह अनेक रस योगों का आधार है। अनुपात भिन्न हो सकता है (जैसे 1:1, 1:2)। | 
| मित्रपंचक (Mitrapanchaka) | सत्वपातन और द्रुति कर्म में सहायक 5 द्रव्य: गुड़ (Jaggery), गुग्गुलु (Commiphora wightii), गुंजा (Abrus precatorius seeds), घृत (Ghee), टंकण (Borax)। | 
| द्रावक गण (Dravaka Gana) | धातुओं आदि को पिघलाने (Melting/Fluxing) में सहायक द्रव्य समूह। इसमें मित्रपंचक, क्षारत्रय (स्वर्जिक्षार, यवक्षार, टंकण), अम्ल आदि शामिल हो सकते हैं। | 
B) संदिग्ध द्रव्य (Sandigdha Dravya - Controversial):
वे द्रव्य जिनके स्वरूप या पहचान के बारे में विभिन्न ग्रंथों या वैद्यों में मतभेद है।
- वैक्रान्त (Vaikranta): Tourmaline? Fluorspar? Graphite?
- चपल (Chapala): Bismuth Ore (सामान्य मत)? Selenium?
- रसाञ्जन (Rasanjana): दारुहरिद्रा क्वाथ + क्षीर (रसौत)? या पीला सुरमा (Antimony Sulphide)?
- पुष्पाञ्जन (Pushpanjana): श्वेत सुरमा (Zinc Oxide)? या श्वेत अंजन पत्थर?
- वह्निजार (Vahnijara): अम्बर (Amber)? समुद्रफेन?
- गिरिसिन्दूर (Girisindura): प्राकृतिक सिन्दूर (Red Lead Oxide)? Red Ochre?
- कंकुष्ठ (Kankushtha): Garcinia morella resin? Rhubarb root?
C) अनुपलब्ध द्रव्य (Anupalabdha Dravya - Not Available/Identified):
वे द्रव्य जिनका वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, परन्तु वर्तमान में उनकी निश्चित पहचान या उपलब्धता नहीं है।
- रसक (Rasaka): एक महारस, Zinc ore (Calamine) माना जाता है, पर विशिष्ट स्वरूप अनिश्चित।
- सौविराञ्जन (Sauviranjana): एक प्रकार का अंजन, स्वरूप अनिश्चित।
- सोम (Soma): वैदिक काल का प्रसिद्ध रसायन, वास्तविक पौधा अज्ञात (Ephedra?, Sarcostemma?)।
D) कृत्रिम द्रव्य (Krutrima Dravya - Artificial/Synthesized):
वे द्रव्य जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने के साथ-साथ कृत्रिम रूप से भी बनाए जा सकते हैं या मुख्य रूप से बनाए ही जाते हैं।
- सस्यक/तुत्थ (Sasyaka/Tuttha): Copper Sulphate.
- गंधक (Gandhaka): Sulphur.
- कासीस (Kasisa): Ferrous Sulphate.
- रसाञ्जन (Rasanjana): दारुहरिद्रा से निर्मित।
- हिंगुल (Hingula)/रससिन्दूर: Mercuric Sulphide.
- नवसादर (Navasadara): Ammonium Chloride.
E) प्रतिनिधि द्रव्य (Pratinidhi Dravya - Substitute):
जब मुख्य या श्रेष्ठ द्रव्य (अभाव द्रव्य) अनुपलब्ध हो, तो उसके स्थान पर समान गुण-कर्म वाले अन्य द्रव्य (प्रतिनिधि द्रव्य) का प्रयोग किया जाता है।
अभावेषु प्रयुज्येत द्रव्यं तत्समं गुणैः।
(भावप्रकाश, मिश्र वर्ग)"अभाव होने पर समान गुणों वाले द्रव्य का प्रयोग करना चाहिए।"
| अभाव द्रव्य | प्रतिनिधि द्रव्य | 
|---|---|
| वज्र (हीरक) | वैक्रान्त | 
| स्वर्ण | स्वर्ण माक्षिक | 
| रजत | वंग / तार माक्षिक | 
| अष्टवर्ग (अधिकांश अनुपलब्ध) | अश्वगंधा, शतावरी, विदारीकंद, वाराहीकंद, मुसली आदि | 
| सोम | गुडूची | 
| रक्त चंदन | मंजिष्ठा / खदिर | 
| बकुची | तिल | 
4. प्रक्रिया परिभाषा (Terminology related to Procedures)
रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना में द्रव्यों को संस्कारित करने के लिए अनेक विशिष्ट प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं, जिनके पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान आवश्यक है।
A) शोधन (Shodhana - Purification/Potentiation):
अर्थ: द्रव्यों में स्थित भौतिक (जैसे मिट्टी, कंकड़), रासायनिक अशुद्धियों तथा उनके स्वाभाविक दोषों (हानिकारक प्रभावों) को दूर करने एवं उनके औषधीय गुणों को बढ़ाने की प्रक्रिया।
दोषापहं गुणाधायी विशुद्धिकरणं मतम्।
                 तच्छोधनमिति प्रोक्तं शास्त्रेषु रसकर्मणि॥
प्रकार:
- सामान्य शोधन: किसी वर्ग के सभी द्रव्यों के लिए समान विधि (जैसे धातुओं का तप्त कर द्रव में बुझाना, गंधक का घृत में भर्जन)।
- विशेष शोधन: प्रत्येक द्रव्य के विशिष्ट दोषों को दूर करने हेतु शास्त्रोक्त विशेष विधि (जैसे वत्सनाभ का गोमूत्र में स्वेदन, कुचला का कांजी में स्वेदन, हिंगुल का नींबू स्वरस में मर्दन)।
शोधन की तकनीकें:
- स्वेदन (Swedana): दोला यंत्र आदि में द्रव माध्यम (गोमूत्र, कांजी, क्वाथ) के साथ उबालना/भाप देना (जैसे वत्सनाभ, गुंजा)।
- मर्दन (Mardana): खरल में द्रव्यों को किसी द्रव (स्वरस, क्वाथ) के साथ पीसना (जैसे हिंगुल, गंधक)।
- धालन/निर्वाप (Dhalana/Nirvapa): द्रव्य को पिघलाकर या तप्त कर द्रव माध्यम में बार-बार बुझाना (जैसे धातु, अभ्रक)।
- निर्जलीकरण (Nirjaleekarana): द्रव्य से जल अंश को सुखाना (जैसे कासीस)।
- निमज्जन (Nimajjana): द्रव्य को द्रव माध्यम में डुबोकर रखना (जैसे चूना पानी में)।
- भावना (Bhavana): चूर्णित द्रव्य में द्रव (स्वरस, क्वाथ) मिलाकर मर्दन करना और सुखाना, यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है (गुण वृद्धि हेतु)।
- भर्जन (Bharjana): द्रव्य को घी या बिना घी के भूनना (जैसे गंधक, हरीतकी)।
- अन्य: प्रक्षालन (Washing), अवसेचन (Sprinkling), गालन (Filtering), सम्मूर्छन आदि।
B) मारण (Marana - Incineration/Calcination):
अर्थ: शोधित धातुओं, खनिजों आदि को अन्य औषधीय द्रव्यों (प्रायः वनस्पति स्वरस/क्वाथ) के साथ मर्दन कर, छोटी टिकिया (चक्रिका) बनाकर, सुखाकर, मिट्टी के दो सकोरों (शराव सम्पुट) में बंद कर, कपड़मिट्टी कर, विशिष्ट 'पुट' (निश्चित मात्रा में उपलों/कोयलों की अग्नि निश्चित अवधि तक देना) में अग्नि देकर भस्म (सूक्ष्म, प्रयोग योग्य, गैर-धात्विक स्वरूप) में परिवर्तित करने की प्रक्रिया।
महत्व: मारण से द्रव्य अत्यंत सूक्ष्म (नैनो/माइक्रो पार्टिकल), निर्विष (Detoxified), शीघ्र प्रभावी (Quick acting), योगवाही (Catalyst/Carrier) और स्थायी (Stable) हो जाता है। यह धातुओं की धात्विकता (Metallic property) नष्ट कर उन्हें शरीर के लिए सात्म्य बनाता है।
प्रकार/विधियाँ:
- पुटपाक विधि (Putapaka): विभिन्न प्रकार के पुट (अग्नि की मात्रा और अवधि के आधार पर) का प्रयोग कर मारण।
                     - महापुट: >1000 उपले, तीव्र मारण हेतु (जैसे वज्र)।
- गजपुट: ≈1000 उपले, अधिकांश धातु/खनिज मारण हेतु।
- वाराहपुट: ≈500 उपले।
- कुक्कुटपुट: ≈200 उपले, सौम्य द्रव्यों हेतु।
- कपोतपुट, गोरबरपुट, भाण्डपुट, बालुकापुट, भूधरपुट आदि।
 
- कूपीपक्व विधि (Kupipakwa): कांच की शीशी (कूपी) में कज्जली आदि भरकर, कपड़मिट्टी कर, बालुका यंत्र में विशिष्ट क्रम (मृदु, मध्य, तीव्र) से अग्नि देकर ऊर्ध्वपातन या तलस्थ योग बनाना (जैसे रस सिंदूर, समीरपन्नग रस, मकरध्वज)।
- भानुपाक (Bhanupaka): सूर्य की धूप में सुखाकर औषधि बनाना (जैसे पर्पटी के कुछ प्रकार)।
- स्वंगशीत (Swangasheeta): पुट देने के बाद उपकरण (सम्पुट) को बिना खोले स्वतः ठंडा होने देना।
- बहिःशीत (Bahisheeta): पुट के बाद सम्पुट को शीघ्रता से बाहर निकालकर ठंडा करना।
C) अमृतीकरण (Amrutikarana) एवं लोहितीकरण (Lohitikarana):
- अमृतीकरण: भस्म निर्माण के बाद उसमें बचे हुए सूक्ष्म दोषों (यदि हों) को दूर करने और उसे अमृत समान गुणकारी (Potentiation & Detoxification) बनाने के लिए किया जाने वाला अंतिम संस्कार। इसमें प्रायः भस्म को त्रिफला क्वाथ, गोघृत आदि के साथ पुनः हल्का पुट दिया जाता है (जैसे अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म)।
- लोहितीकरण: विशेषकर लौह भस्म को उत्तम सिन्दूर वर्ण या पक्व जम्बू फल जैसा लाल वर्ण (Reddish color) प्रदान करने और उसके गुणों (विशेषकर रक्त वर्धक) को बढ़ाने के लिए त्रिफला क्वाथ आदि के साथ किया जाने वाला संस्कार (पुट)।
D) सत्वपातन (Sattvapatana), शुद्धावर्त (Shuddhavarta), बीजावर्त (Beejavarta):
- सत्वपातन: खनिजों (जैसे माक्षिक, अभ्रक, तालक) को तीव्र कोष्ठिका यंत्र या मूषा में द्रावक गण (Fluxes) के साथ रखकर तीव्र अग्नि (धमन) देकर उनमें स्थित सार भाग (धातु अंश/Essence) को निकालने की प्रक्रिया।
- शुद्धावर्त: प्राप्त सत्व या अशुद्ध धातुओं को मूषा में रखकर तीव्र अग्नि देकर पिघलाकर शुद्ध करने की प्रक्रिया।
- बीजावर्त: एक धातु (प्रायः निम्न धातु) को पिघलाकर उसमें अन्य श्रेष्ठ धातु (बीज - जैसे स्वर्ण, रजत) की अल्प मात्रा मिलाकर गुणों में वृद्धि करने की प्रक्रिया (रसशास्त्र में स्वर्ण/रजत निर्माण के संदर्भ में)।
E) द्रुति (Druti - Liquefaction):
कठिन, अपाच्य द्रव्यों (जैसे अभ्रक, वज्र) को क्षार, अम्ल, लवण, विष आदि के योग से तीव्र अग्नि द्वारा पिघलाकर स्थायी द्रव रूप (Liquid form at room temperature) में परिवर्तित करने की प्रक्रिया।
द्रवी भावः द्रुतिः प्रोक्ता वह्नियोगाद् द्रवैरपि।
                    अग्नितप्तं जले क्षिप्तं यत् तिष्ठति न बुड्यति॥
                    तत् द्रुतं ...
द्रुति के लक्षण: अग्नि पर रखने पर पिघल जाए, पानी पर डालने पर तैरे, शीघ्र जमे नहीं, चमकदार हो।
F) पारद संस्कार (Parada Samskara):
पारद (Mercury) में स्थित नैसर्गिक (7 कंचुक दोष, 3 मल दोष) और कृत्रिम (नाग, वंग दोष) दोषों को दूर कर, उसे शुद्ध, शक्तिशाली, रोगनाशक, रसायन और मोक्षदायक बनाने के लिए की जाने वाली 8 या 18 विशिष्ट प्रक्रियाएं।
- महत्व: असंस्कारित पारद विषैला और चंचल होता है। संस्कारित पारद ही औषध (देह सिद्धि) या धातु परिवर्तन (लोह सिद्धि) के योग्य होता है।
- अष्ट संस्कार (8): (औषध प्रयोग हेतु आवश्यक)
                      - स्वेदन (Steaming)
- मर्दन (Trituration)
- मूर्छन (Swooning/Making into compound form)
- उत्थापन (Reviving from Murchhana)
- पातन (Sublimation/Distillation - ऊर्ध्व, अधः, तिर्यक्)
- रोधन/बोधन (Potentiation)
- नियामन (Stabilizing)
- दीपन (Enhancing appetite for metals)
 
- अष्टादश संस्कार (18): उपरोक्त 8 + 10 अन्य संस्कार (मुख्यतः लोह सिद्धि और देह सिद्धि हेतु) - जारण, गर्भ द्रुति, बाह्य द्रुति, सारण, क्रमण, वेध, भक्षण आदि।
- जारण (Jarana): पारद द्वारा अभ्रक, स्वर्ण, गंधक आदि द्रव्यों को अपने भीतर पचा लेने (Amalgamation & Digestion) की क्रिया।
- मूर्छन (Murchhana): पारद को गंधक आदि के साथ मर्दन कर उसकी द्रवता और चंचलता नष्ट कर यौगिक रूप (जैसे कज्जली, सिंदूर) में परिवर्तित करना।
- पारद बंध (Parada Bandha): पारद को विभिन्न विधियों द्वारा स्थायी ठोस रूप में परिवर्तित करना (जैसे खोट बंध, पोट्टली बंध, भस्म बंध आदि)।
5. प्रमाणीकरण परिभाषा (Terms for Standardization)
निर्मित औषधियों, विशेषकर भस्मों की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए प्राचीन काल से ही कुछ विशिष्ट परीक्षण विधियाँ वर्णित हैं, जो उनके मानकीकरण का आधार हैं।
A) ग्राह्य-अग्राह्यत्व (Criteria for Acceptance/Rejection):
कच्चे द्रव्यों (जैसे खनिज, विष) या निर्मित औषधि के स्वीकार्य (Grahyatva) और अस्वीकार्य (Agrahyatva) लक्षणों का वर्णन। उत्तम गुणवत्ता वाले द्रव्य ही प्रयोग हेतु ग्राह्य होते हैं।
B) सिद्धिलक्षण (Signs of successful preparation):
औषधि निर्माण प्रक्रिया (जैसे मारण, पाक, संधान) के सफलतापूर्वक पूर्ण होने के लक्षण, जिनसे ज्ञात होता है कि औषधि प्रयोग हेतु तैयार है (जैसे - भस्म का वर्ण परिवर्तन, अरिष्ट में संधान लक्षणों का प्रकट होना)।
C) भस्म परीक्षा (Tests for Bhasma):
निर्मित भस्म शुद्ध, दोषरहित, सूक्ष्म और प्रभावी है या नहीं, यह जांचने के लिए प्रमुख परीक्षण:
- वारितर (Varitara): (सूक्ष्मता ও लघुता) चुटकी भर भस्म को स्थिर जल पर डालने पर वह तैरनी चाहिए, डूबनी नहीं चाहिए।
- रेखापूर्णता (Rekhapurnata): (सूक्ष्मता) तर्जनी और अंगूठे के बीच भस्म को रगड़ने पर वह उंगलियों की सूक्ष्म रेखाओं में भर जानी चाहिए।
- उष्णत्व/उनाम (Unama): (तीक्ष्णता ह्रास - विवादास्पद) चावल के दाने पर भस्म रखकर धान की भूसी से ढककर जलाने पर चावल का दाना वैसा ही रहे, फूटे नहीं।
- श्लक्ष्णत्व (Slakshnatva): स्पर्श में अत्यंत चिकनी (Smooth) होनी चाहिए।
- सूक्ष्मत्व (Sukshmatva): अत्यंत बारीक कणों (Fine particles) वाली होनी चाहिए।
- अञ्जन सन्निभ (Anjana Sannibha): काजल के समान सूक्ष्म और मसृण होनी चाहिए।
- दन्ताग्रे न कचकच भावति: जीभ या दांतों के बीच रखने पर किरकिराहट (Grittiness) महसूस नहीं होनी चाहिए।
- वर्ण (Varna): प्रत्येक भस्म का शास्त्रोक्त विशिष्ट वर्ण (Colour) होना चाहिए (जैसे स्वर्ण भस्म - रक्त वर्ण, ताम्र भस्म - कृष्ण वर्ण)।
- अवामि (Avami): सेवन करने पर वमन (Vomiting) नहीं होनी चाहिए (निर्दोषता का सूचक)।
- अपुनर्भव (Apunarbhava) / निरुत्थ (Niruttha): (पूर्ण मारण) भस्म को मित्र पंचक या रजत पत्र के साथ मिलाकर तीव्र अग्नि देने पर उसमें से मूल धातु (Free metal) पुनः प्राप्त नहीं होनी चाहिए। यह सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा है।
- गत रसत्व (Gata Rasatva): भस्म में मूल द्रव्य का विशिष्ट स्वाद (जैसे ताम्र का तिक्त) नहीं होना चाहिए।
- निश्चन्द्रत्व (Nischandratva): (पूर्ण मारण) विशेषकर अभ्रक भस्म के लिए - धूप या प्रकाश में देखने पर उसमें धात्विक चमक (Metallic lustre) नहीं दिखनी चाहिए।
- निरामलत्व (Niramlattva): अम्ल (जैसे नींबू रस) के साथ मिलाने पर कोई विशेष प्रतिक्रिया या वर्ण परिवर्तन नहीं होना चाहिए (क्षार दोष की अनुपस्थिति)।
- निर्धूमत्व (Nirdhumatva): अग्नि पर डालने पर धुआं नहीं निकलना चाहिए (गंधक आदि दोषों की अनुपस्थिति)।
- जिह्वाग्रे अदाह्यमानत्व (Jihvagre Adahyamanatva): जीभ पर रखने पर जलन नहीं होनी चाहिए (तीक्ष्णता दोष की अनुपस्थिति)।
- दधि परीक्षा / निम्बु परीक्षा (Dadhi/Nimbu Pariksha): दही या नींबू के रस में डालने पर वर्ण परिवर्तन या विशेष प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।
6. पूरक परिभाषा (Supplementary Terminology)
- रुद्र भाग (Rudra Bhaga): निर्मित औषधि का 1/11 भाग (या अन्य मतानुसार) जो निर्माण प्रक्रिया में होने वाली स्वाभाविक हानि (Process Loss) या ईश्वरीय अंश के रूप में अलग रखा जाता है या माना जाता है।
- धन्वन्तरि भाग (Dhanvantari Bhaga): निर्मित औषधि का कुछ अंश जो वैद्य अपने उपयोग या गुरु/धन्वन्तरि के सम्मान हेतु रखता है।
7. मान-परिभाषा (Mana Paribhasha - Terminology of Weights & Measures)
मान (Mana): औषध द्रव्यों और योगों को मापने-तौलने की निश्चित इकाईयां। औषध की सही मात्रा (Dose) और योगों के सही अनुपात के लिए मान का ज्ञान अनिवार्य है।
प्राचीन प्रकार:
- मागध मान (Magadha Mana): मगध क्षेत्र में प्रचलित, जिसे चरक ने चिकित्सा के लिए श्रेष्ठ माना है।
- कलिंग मान (Kalinga Mana): कलिंग क्षेत्र में प्रचलित, जो मागध मान से दोगुना होता था (मुख्यतः व्यापारिक कार्यों में)।
प्राचीन इकाइयां एवं संबंध (मागध मान):
- 6 सरसों = 1 यव
- 3 यव = 1 गुंजा (रत्ती)
- 8 गुंजा = 1 माष
- 10 माष = 1 कर्ष (सुवर्ण माष) / 12 माष = 1 कर्ष ( मतान्तर से तोला)
- 4 कर्ष = 1 पल
- (आगे की इकाइयां: पल → प्रस्थ → आढक → द्रोण → खारी → भार)
आधुनिक इकाइयां एवं रूपांतरण (Modern Units & Conversion - As per AFI):**
| प्राचीन इकाई | लगभग आधुनिक मान (Approx. Modern Value) | 
|---|---|
| 1 गुंजा (रत्ती) | ≈ 125 mg | 
| 1 माष (Masha) | ≈ 1 g (8 Ratti) | 
| 1 शाण (Shana) | ≈ 4 g (4 Masha) | 
| 1 कर्ष/तोला (Karsha/Tola) | ≈ 12 g (Standard Tolā in practice, 12 Masha approx.) | 
| 1 शुक्ति (Shukti) | ≈ 24 g (2 Karsha) | 
| 1 पल (Pala) | ≈ 48 g (4 Karsha / 4 Tola approx.) | 
| 1 प्रसूति (Prasuti) | ≈ 96 g (2 Pala) | 
| 1 कुडव (Kudava) | ≈ 192 g (4 Pala) | 
| 1 प्रस्थ (Prastha) | ≈ 768 g (4 Kudava) | 
| 1 आढक (Adhaka) | ≈ 3.072 kg (4 Prastha) | 
| 1 द्रोण (Drona) | ≈ 12.288 kg (4 Adhaka) | 
| 1 खारी (Khari) | ≈ 196.608 kg (16 Drona) | 
| 1 तुला (Tula) | ≈ 4.8 kg (100 Pala) | 
| 1 भार (Bhara) | ≈ 96 kg (20 Tula) | 
Note on Mana
प्राचीन मानों के आधुनिक रूपांतरण में ग्रंथों और परंपराओं में थोड़ा मतभेद पाया जाता है। विशेषकर गुंजा, माष और कर्ष/तोला के भार में भिन्नता मिलती है। उपरोक्त मान Ayurvedic Formulary of India (AFI) और सामान्य प्रचलन पर आधारित हैं। चिकित्सा व्यवहार में सटीकता हेतु प्रामाणिक स्रोतों का संदर्भ लेना चाहिए।
काल मान (Kala Mana - Measures of Time): औषध सेवन काल (भोजन पूर्व, मध्य, पश्चात् आदि) और निर्माण प्रक्रिया की अवधि (जैसे पुट का काल, भावना का काल) के लिए समय की इकाइयों का ज्ञान आवश्यक है। प्राचीन इकाइयां - क्षण, लव, निमेष, काष्ठा, कला, मुहूर्त (≈48 मिनट), याम (≈3 घंटे), अहोरात्र (दिन-रात), पक्ष (15 दिन), मास, ऋतु (2 मास), अयन (6 मास), वर्ष आदि।
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- परिभाषा का लक्षण एवं महत्व बताते हुए रसशास्त्र में प्रयुक्त प्रमुख द्रव्य वर्गों (रस, महारस, उपरस, धातु, रत्न, विष, उपविष) का सविस्तार वर्णन करें।
- शोधन एवं मारण को परिभाषित करें। शोधन की विभिन्न तकनीकों एवं मारण की पुटपाक विधि का वर्णन करें। भस्म परीक्षा की किन्हीं पाँच विधियों का विस्तृत वर्णन करें।
- मान परिभाषा क्या है? मागध एवं कलिंग मान बताते हुए प्राचीन एवं आधुनिक मानों का रूपांतरण चार्ट (गुंजा से आढक तक) लिखें एवं काल मान का संक्षिप्त परिचय दें।
- Define Paribhasha and explain its importance in Rasashastra. Describe the classification terminology of substances: Maharasa, Uparasa, Dhatu, Upadhatu, Ratna, Visha, Upavisha with examples.
- Define Shodhana and Marana. Explain different techniques of Shodhana. Describe various tests for Bhasma Pariksha (minimum 5 in detail).
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- परिभाषा का महत्व।
- औषध, भेषज, कल्पना, कषाय, संस्कार की परिभाषा।
- महारस और उपरस के नाम लिखें।
- धातु और उपधातु के नाम लिखें।
- नवरत्नों के नाम लिखें।
- विष और उपविष वर्ग पर टिप्पणी।
- कज्जली एवं मित्रपंचक।
- शोधन: सामान्य एवं विशेष।
- मारण: पुटपाक एवं कूपीपक्व।
- अमृतीकरण एवं लोहितीकरण।
- सत्वपातन एवं द्रुति।
- पारद के अष्ट संस्कार।
- भस्म परीक्षा: वारितर एवं रेखापूर्णता।
- भस्म परीक्षा: अपुनर्भव एवं निरुत्थ।
- रुद्र भाग एवं धन्वन्तरि भाग।
- मान परिभाषा एवं प्रकार (मागध, कलिंग)।
- प्रतिनिधि द्रव्य एवं उनके उदाहरण।
- संदिग्ध एवं अनुपलब्ध द्रव्य।
- पारद बंध एवं मूर्छन।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- परिभाषा का लक्षण।
- औषध की व्युत्पत्ति।
- संस्कार को परिभाषित करें (च.वि. १/२४)।
- रसशास्त्र में 'रस' क्या है? (पारद)
- महारसों की संख्या? (8)
- उपरसों की संख्या? (8)
- दो धातुओं के नाम। (स्वर्ण, लौह)
- दो रत्नों के नाम। (माणिक्य, मुक्ता)
- दो विषों के नाम। (वत्सनाभ, हरीत)
- दो उपविषों के नाम। (अर्क, गुंजा)
- कज्जली के घटक? (शुद्ध पारद + शुद्ध गंधक)
- मित्रपंचक के घटक? (गुड़, गुग्गुलु, गुंजा, घृत, टंकण)
- शोधन क्यों आवश्यक है? (दोष/मल दूर करने हेतु, गुणाधान हेतु)
- मारण का उद्देश्य? (भस्म बनाना/धात्विकता नष्ट करना)
- पुट का एक प्रकार? (गजपुट)
- पारद के दो संस्कारों के नाम? (स्वेदन, मर्दन)
- वारितर परीक्षा क्या है? (जल पर तैरना)
- अपुनर्भव परीक्षा क्या है? (धातु का पुनः न बनना)
- रुद्र भाग कितना होता है? (1/11)
- मागध मान में 1 कर्ष कितने ग्राम के बराबर है? (≈ 12 g)
- 1 पल कितने कर्ष के बराबर है? (4 कर्ष)
- प्रतिनिधि द्रव्य का एक उदाहरण दें। (स्वर्ण अभावे स्वर्णमाक्षिक)
 
 
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