Amidha Ayurveda

28/10/25

Chronological Development of Ayurvedic Pharmaceutics

In This Article
    आयुर्वेदिक भेषज कल्पना का विकास - रसशास्त्र नोट्स | BAMS Chapter Notes

    आयुर्वेदिक भेषज कल्पना का विकास - रसशास्त्र नोट्स

    यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना (Rasashastra & Bhaishajya Kalpana - RSBK) विषय के प्रथम अध्याय - 'आयुर्वेदिक भेषज कल्पना का कालक्रमानुसार विकास (Chronological Development of Ayurvedic Pharmaceutics)' पर केंद्रित है। रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना आयुर्वेद का वह महत्वपूर्ण अंग है जो औषध द्रव्यों (वनस्पतिज, खनिज, प्राणिज) को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा संस्कारित कर प्रयोग योग्य, सुरक्षित और अधिक प्रभावी बनाने की विधियों (कल्पनाओं) का विस्तृत वर्णन करता है।

    इस अध्याय में हम अध्ययन करेंगे कि कैसे साधारण काष्ठौषधियों (Herbal drugs) से लेकर जटिल रसौषधियों (Herbo-mineral drugs) तक का विकास विभिन्न कालों में हुआ, किन आचार्यों का इसमें योगदान रहा, कौन सी प्रमुख भेषज कल्पनाएं विकसित हुईं, और इस शास्त्र की परिभाषा, महत्व एवं कार्यक्षेत्र क्या है।

    रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना: परिभाषा, महत्व एवं कार्यक्षेत्र

    परिभाषा (Definition)

    भैषज्य कल्पना (Bhaishajya Kalpana):

    योजयेत् कल्पनां यां तु सा भैषज्यकल्पना।
    द्रव्याणाम् आश्रित्य गुणान्तरम् आधीयते यया॥

    (आचार्य यादवजी त्रिकमजी एवं अन्य व्याख्याओं के आधार पर)

    व्याख्या: औषध द्रव्यों को (रोग और रोगी की आवश्यकतानुसार) प्रयोग योग्य बनाने के लिए जो योजना (विधि/Process) की जाती है, वह भैषज्य कल्पना है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा द्रव्यों के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन लाकर (संस्कार द्वारा) नए गुण (गुणान्तर) उत्पन्न किए जाते हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता बढ़ती है, स्थायित्व बढ़ता है, या दुष्प्रभाव कम होते हैं। इसमें मुख्यतः काष्ठौषधियों (Herbal drugs) की कल्पनाएं (स्वरस, कल्क, क्वाथ, वटी, अवलेह आदि) शामिल हैं।

    रसशास्त्र (Rasashastra):

    रसादीनां गुणानां च विचारा यत्र वर्तते।
    तच्छास्त्रं रसशास्त्रं हि विज्ञेयं वैद्यसम्मतम्॥

    (रसार्णव आदि ग्रंथों का भावार्थ)

    रसति सर्वधातून् भक्षयति इति रसः (पारदः)।

    (व्युत्पत्ति)

    व्याख्या: जिस शास्त्र में मुख्यतः 'रस' (पारद/Mercury) तथा अन्य धातुओं (Metals), उपरसों (Minerals), रत्नों (Gems) आदि के गुणधर्म, उनके शोधन (Purification), मारण (Incineration/Calcination), मूर्छन (Processing of Mercury), और उनसे बनने वाली औषधियों (रसौषधियों) का विचार (अध्ययन) किया जाता है, उसे वैद्य समुदाय द्वारा रसशास्त्र माना गया है। 'रस' शब्द यहाँ मुख्य रूप से पारद का वाचक है, जो अन्य धातुओं को अपने में लीन (भक्षण) करने की क्षमता रखता है। रसशास्त्र का मुख्य उद्देश्य देह सिद्धि (शरीर को निरोगी और दीर्घायु बनाना) और लोह सिद्धि (धातु परिवर्तन, गौण उद्देश्य) है।

    संक्षेप में, भैषज्य कल्पना काष्ठौषधियों की फार्मेसी है, जबकि रसशास्त्र खनिज और धातु आधारित औषधियों (Herbo-mineral-metallic preparations) की फार्मेसी (Iatrochemistry/Alchemy) है।

    महत्व (Significance of RSBK)

    • प्रभावशीलता में वृद्धि (Enhanced Efficacy): कल्पनाओं द्वारा औषध का अवशोषण और जैव-उपलब्धता बढ़ती है। रसौषधियाँ अल्प मात्रा में भी तीव्र प्रभाव दिखाती हैं ('अल्पामात्रोपयोगित्वात् अरुचेरप्रसंगतः क्षिप्रमारोग्यदायित्वात् औषधेभ्यो अधिको रसः।')।
    • स्थायित्व (Stability): कल्पित औषधियाँ (चूर्ण, वटी, भस्म, आसव-अरिष्ट) अधिक समय तक सुरक्षित रहती हैं।
    • सेवन सुगमता (Palatability & Ease): कड़वी औषधियों को वटी, अवलेह आदि रूप में देना आसान होता है।
    • दुष्प्रभावों में कमी (Reduced Toxicity): शोधन और मारण प्रक्रियाओं से विषैले द्रव्यों के हानिकारक प्रभाव कम होते हैं।
    • विशिष्ट कर्म प्राप्ति (Specific Action): विभिन्न कल्पनाओं द्वारा एक ही द्रव्य से अलग-अलग कर्म लिए जा सकते हैं।
    • आपातकालीन उपयोग (Emergency Use): रसौषधियाँ शीघ्र प्रभाव दिखाती हैं।
    • रसायन एवं वाजीकरण (Rejuvenation & Aphrodisiac): रसशास्त्र के योग उत्कृष्ट रसायन और वाजीकरण प्रभाव रखते हैं।

    कार्यक्षेत्र (Scope of RSBK)

    • औषध द्रव्यों की पहचान, संग्रहण, संरक्षण।
    • विभिन्न भैषज्य कल्पनाओं का निर्माण (Manufacturing)।
    • औषधियों का मानकीकरण (Standardization) और गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control)।
    • विभिन्न रोगों में कल्पनाओं का युक्तिपूर्वक प्रयोग (Application)।
    • नए औषध योगों का अनुसंधान और विकास (Research & Development)।
    • औषध निर्माणशाला (Pharmacy) का प्रबंधन (Management)।
    • औषध संबंधित कानूनी नियमों (Drug Laws) का ज्ञान।

    आयुर्वेदिक भेषज कल्पना का कालक्रमानुसार विकास

    आयुर्वेदिक औषध निर्माण विज्ञान का विकास क्रमिक रूप से हुआ है, जिसे समझने के लिए इसे विभिन्न कालों में विभाजित किया जा सकता है:

    1. वैदिक काल (Vedic Period - approx. 4500 BC - 1500 BC)

    मुख्य बिंदु:

    • औषधियों का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद और विशेषकर अथर्ववेद में।
    • मुख्यतः जड़ी-बूटियों (मूल, पत्र, पुष्प, फल) का प्रयोग। सोम का विशेष महत्व।
    • सरल कल्पनाएं: प्रत्यक्ष सेवन, स्वरस, फाण्ट, लेप, क्षीर पाक।
    • खनिज प्रयोग सीमित: मणि धारण (शंख, मोती), स्वर्ण का सरल प्रयोग।
    • मंत्र चिकित्सा का महत्व: औषधियों का प्रयोग मंत्रोच्चार के साथ।

    या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा ।
    मनै नु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च ॥

    (ऋग्वेद १०/९७/१)

    व्याख्या: जो औषधियाँ देवताओं से भी तीन युग पूर्व उत्पन्न हुई हैं, उन भूरे रंग वाली (बभ्रु) सैकड़ों औषधियों के सात सौ स्थानों (उत्पत्ति स्थान या प्रयोग विधि) को मैं जानता हूँ। यह मंत्र औषधियों की प्राचीनता और उनके गहन ज्ञान को दर्शाता है।

    2. संहिता काल (Samhita Period - approx. 1500 BC - 7th Cent. AD)

    मुख्य बिंदु:

    • आयुर्वेद का स्वर्ण युग (चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट)।
    • भैषज्य कल्पना का व्यवस्थित विकास।
    • पंचविध कषाय कल्पना का स्पष्ट वर्णन:
    • स्वरसः कल्कः क्वाथश्च हिमः फाण्टस्तथैव च।
      कषायाः पञ्च विज्ञेयाः लघवः स्युर्यथोत्तरम्॥

      (शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड १/१-२)
      1. स्वरस (Expressed juice)
      2. कल्क (Paste)
      3. क्वाथ/श्रृत (Decoction)
      4. हिम (Cold infusion)
      5. फाण्ट (Hot infusion)
    • अन्य कल्पनाओं का विकास: स्नेह कल्पना (घृत, तैल), संधान कल्पना (आसव-अरिष्ट), अवलेह, गुटिका/वटि, चूर्ण, क्षीरपाक, लेप, धूम्रपान, अंजन आदि।
    • खनिज प्रयोग: लौह, स्वर्ण, रजत, ताम्र, अभ्रक, गैरिक, अंजन, शिलाजतु आदि का शोधित रूप में या सरल योगों में प्रयोग। क्षार (Alkali) एवं क्षारसूत्र (Sushruta)।
    • भस्म निर्माण या पारद के जटिल प्रयोगों का अभाव।

    3. मध्यकाल / रसशास्त्र काल (Medieval Period / Rasashastra Era - 8th Cent. AD - 16th Cent. AD)

    मुख्य बिंदु:

    • रसशास्त्र का अभूतपूर्व विकास: खनिज द्रव्यों, विशेषकर पारद और गंधक, के प्रयोग पर अत्यधिक बल।
    • उद्देश्य: देह सिद्धि (स्वास्थ्य, दीर्घायु) एवं लोह सिद्धि (धातु परिवर्तन)।
    • पारद का महत्व: शिव वीर्य मानकर पूजा, अष्टदश पारद संस्कारों का विकास।

      मूर्छितो हन्ति रुक् जालं बद्धो खेचरतां दिशेत्।
      को ब्रूते तस्य सामर्थ्यं यो हन्ति जरामरणम्॥

      (रसार्णव तंत्र या अन्य रसग्रंथों से)

      अघोर मंत्र: रस कर्म में शुद्धि, ऊर्जा और सफलता हेतु प्रयोग।

      ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो, घोर घोरतरेभ्यः।
      सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो, नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः॥

      (तैत्तिरीय आरण्यक १०.१.७, शिव मंत्र)

      अर्थ: हे रुद्र! आपके जो अघोर (सौम्य) रूप हैं, जो घोर (उग्र) रूप हैं, और जो घोरतर (अत्यंत उग्र) रूप हैं, उन सभी रूपों को नमस्कार है। आप ही सर्व (सब कुछ) और शर्व (संहारकर्ता) हैं, आपके उन सभी रुद्र रूपों को नमस्कार है।

    • नई रसौषधियों का निर्माण: भस्म (धातु, उपधातु, रत्न, उपरत्न), कज्जली, पर्पटी, पोट्टली, खल्वीय रसायन, सिंदूर/मकरध्वज।
    • तकनीकी विकास: विभिन्न यंत्र (दोला, बालुका, विद्याधर), पुट (गजपुट, वाराहपुट), मूषा (Crucible) और पारिभाषिक शब्दों (शोधन, मारण, जारण, मूर्छन) का विकास।
    • प्रमुख आचार्य एवं ग्रंथ: नागार्जुन (रस रत्नाकर), वृन्द (सिद्ध योग), चक्रपाणि दत्त (चक्रदत्त), शारंगधर (शारंगधर संहिता), वाग्भट्ट (रस रत्न समुच्चय), यशोधर भट्ट (रस प्रकाश सुधाकर), गोविन्दाचार्य (रसार्णव), भावमिश्र (भावप्रकाश)।

    4. आधुनिक काल (Modern Period - 17th Cent. AD - Present)

    मुख्य बिंदु:

    • पश्चिमी विज्ञान और औद्योगिकीकरण का प्रभाव।
    • मानकीकरण (Standardization): API, HPTLC, AAS आदि का प्रयोग।
    • गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control): Raw material से finished product तक गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
    • GMP (Good Manufacturing Practices): Schedule T के अनुसार निर्माण।
    • नई डोसेज फॉर्म्स: टैबलेट, कैप्सूल, सिरप, ग्रेन्यूल्स, पैलेट्स, ट्रांसडर्मल पैच।
    • कानूनी नियमन (Legal Regulation): Drug & Cosmetics Act (1940), आयुष मंत्रालय का गठन।
    • वैज्ञानिक अनुसंधान (Scientific Research): Efficacy, safety, mechanism of action का अध्ययन। नैनो-टेक्नोलॉजी का अनुप्रयोग।
    • संरक्षण एवं संवर्धन: औषधीय पौधों का संरक्षण, खेती, GAP (Good Agricultural Practices)।
    • फार्माकोविजिलेंस: आयुर्वेदिक औषधियों की सुरक्षा निगरानी।

    आज भैषज्य कल्पना पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का एक गतिशील समन्वय है।

    विकास क्रम की मुख्य उपलब्धियां (Key Milestones)

    काल प्रमुख विकास/उपलब्धि
    वैदिक कालसरल कल्पनाएं (स्वरस, फाण्ट), मंत्रों का प्रयोग, सोम
    संहिता कालपंचविध कषाय कल्पना, स्नेह कल्पना, संधान कल्पना, क्षार कल्पना
    मध्यकालरसशास्त्र का उदय, पारद संस्कार, भस्म निर्माण, कज्जली, पर्पटी, पोट्टली, यंत्र, पुट
    आधुनिक कालमानकीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण, GMP, नई डोसेज फॉर्म्स, अनुसंधान, कानूनी नियमन, नैनो-टेक्नोलॉजी अनुप्रयोग

    रसशाला, रसमण्डप एवं भेषजागार की अवधारणा

    आयुर्वेदिक औषधियों, विशेषकर रसौषधियों के सुरक्षित और प्रभावी निर्माण के लिए विशिष्ट संरचनाओं और वातावरण का वर्णन आवश्यक है।

    रसशाला (Rasashala):

    यह आधुनिक फार्मेसी की निर्माण इकाई (Manufacturing Unit) और प्रयोगशाला (Laboratory) का प्राचीन स्वरूप है।

    • स्थान चयन: रमणीय, शांत, जड़ी-बूटियों से युक्त, निर्जन स्थान।
    • दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा में।
    • संरचना: विभिन्न कार्यों के लिए पृथक कक्ष - द्रव्य संग्रह, शोधन, मर्दन, अग्नि कर्म (पुट), यंत्र स्थापन, तैयार औषधि संग्रह, जल स्रोत आदि।
    • उपकरण: खरल (विभिन्न पदार्थों के), यंत्र (दोला, स्वेदनी, पातन आदि), पुट, मूषा, भस्त्रिका (धौंकनी), तराजू आदि।
    • वातावरण: स्वच्छ, पवित्र, सुरक्षित, मांगलिक द्रव्यों से युक्त।

    रसमण्डप (Rasamandapa):

    यह रसशाला के भीतर या समीप स्थित एक विशेष, अलंकृत मण्डप होता था।

    • कार्य: यहाँ सिद्ध रस वैद्य बैठकर रस कर्म का पर्यवेक्षण करते थे, महत्वपूर्ण गोपनीय प्रक्रियाएं संपन्न होती थीं, या छात्रों को उपदेश दिया जाता था।
    • वातावरण: अत्यंत पवित्र, देवताओं (विशेषकर शिव-पार्वती) की मूर्तियों से युक्त।

    भेषजागार (Bheshajagara):

    यह औषधियों का भंडार गृह (Store room) है।

    • कार्य: कच्चे द्रव्यों (Raw materials) और निर्मित औषधियों (Finished products) का उचित वर्गीकरण कर सुरक्षित भंडारण।
    • व्यवस्था: सूखा, हवादार, प्रकाश रहित, कीट-चूहों से सुरक्षित स्थान। द्रव्यों को उनके वीर्य (shelf-life) के अनुसार रखना।
    • चरक संहिता (कल्प स्थान 1) में इसका वर्णन मिलता है।

    आधुनिक आयुर्वेदिक फार्मेसियों में GMP के अंतर्गत इन सिद्धांतों (जैसे पृथक अनुभाग, स्वच्छता, उपकरणों का रखरखाव, भंडारण की उचित व्यवस्था) का पालन अनिवार्य है।


    रस-रसायन की अवधारणा (Concept of Rasa-Rasayana)

    रसशास्त्र का रसायन (Rejuvenation) से गहरा संबंध है, जिसे 'रस-रसायन' कहा जाता है।

    • रस (Rasa): यहाँ रस का प्रमुख अर्थ 'पारद' (Mercury) है, जिसे रसराज या सूत भी कहते हैं।
    • रसायन (Rasayana):**

      लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम्।

      (चरक संहिता, चिकित्सास्थान १/१/७-८)

      व्याख्या: शस्त (उत्तम) रस आदि धातुओं की प्राप्ति का जो उपाय है, वह रसायन है। अर्थात्, जो चिकित्सा या द्रव्य उत्तम धातु पोषण द्वारा जरा (aging) और व्याधि (disease) का नाश करे, आयु, स्मृति, मेधा, आरोग्य, बल, वर्ण आदि को बढ़ाए।

    रस-रसायन: पारद या पारद-गंधक आदि से निर्मित योगों (रसौषधियों) द्वारा रसायन कर्म प्राप्त करना। रसशास्त्रियों का मानना था कि विधिवत् संस्कारित पारद और उससे निर्मित भस्में (स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, हीरक भस्म आदि) काष्ठौषधियों की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से और प्रभावी रूप से धातु पोषण कर रसायन प्रभाव उत्पन्न करती हैं।

    मकरध्वज, सिद्ध मकरध्वज, स्वर्ण भस्म, वसन्त कुसुमाकर रस, च्यवनप्राश (रसौषधि युक्त) आदि रस-रसायन के प्रमुख उदाहरण हैं। इनका प्रयोग जीर्ण रोगों, दौर्बल्य, क्षय और वयःस्थापन (anti-aging) के लिए किया जाता है।


    धातु आधारित औषधियों में भारत का योगदान (India's Contribution to Metallo-Mineral Pharmaceutics)

    विश्व इतिहास में धातु एवं खनिजों का औषधीय प्रयोग करने वाले देशों में भारत का स्थान अग्रणी और अद्वितीय है। जहाँ अन्य प्राचीन सभ्यताओं में धातुओं का प्रयोग सीमित और प्रायः विषाक्तता युक्त था, वहीं भारत में रसशास्त्र के माध्यम से धातुओं को सुरक्षित और अत्यधिक प्रभावी औषधियों में परिवर्तित करने की परिष्कृत तकनीक विकसित हुई।

    • प्राचीनता: संहिता काल में भी लौह, स्वर्ण आदि का प्रयोग मिलता है, परन्तु मध्यकाल (8वीं शताब्दी से) में इसका व्यवस्थित विज्ञान विकसित हुआ।
    • पारद विज्ञान: पारद के 18 संस्कार, गंधक जारण, मूर्छन आदि जटिल प्रक्रियाएं केवल भारतीय रसशास्त्र में ही मिलती हैं।
    • भस्म विज्ञान: धातुओं, उपरत्नों को शोधन-मारण द्वारा नैनो-पार्टिकल (nanoparticle) स्वरूप में परिवर्तित कर उनकी विषाक्तता कम करना और प्रभावशीलता बढ़ाना भारत की विशिष्ट देन है। आधुनिक विज्ञान भी अब इन भस्मों की संरचना और प्रभाव को समझने का प्रयास कर रहा है।
    • यंत्र एवं तकनीक: रस कर्म के लिए विभिन्न यंत्रों (जैसे पातन यंत्र, तिर्यक् पातन यंत्र, विद्याधर यंत्र) और पुटों का आविष्कार भारतीय रसवेत्ताओं की प्रतिभा का प्रमाण है।
    • निरंतरता: वैदिक काल से लेकर आज तक यह परंपरा निरंतर चली आ रही है और आधुनिक युग में भी करोड़ों लोग इन औषधियों का प्रयोग कर रहे हैं।

    यह निर्विवाद है कि धातु आधारित सुरक्षित एवं प्रभावी औषधियों के निर्माण और प्रयोग का श्रेय मुख्यतः भारतीय रसशास्त्र को जाता है।

    परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)

    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)

    1. आयुर्वेदिक भैषज्य कल्पना के ऐतिहासिक विकास का कालक्रमानुसार सविस्तार वर्णन करें। प्रत्येक काल की मुख्य कल्पनाओं और उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
    2. रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना की परिभाषा, महत्व एवं कार्यक्षेत्र का वर्णन करें। मध्यकाल में रसशास्त्र के विकास का विस्तृत वर्णन करें, जिसमें पारद का महत्व और प्रमुख कल्पनाओं का उल्लेख हो।
    3. Describe the chronological development of Ayurvedic Pharmaceutics from Vedic period to Modern era. Explain the key contributions of the Samhita period and Rasashastra (Medieval) period including concepts like Panchavidha Kashaya Kalpana and Bhasma preparation.
    4. Define Rasashastra and Bhaishajya Kalpana. Discuss their significance and scope. Explain the concept of Rasashala, Bheshajagara, and Rasa-Rasayana.

    लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)

    • भैषज्य कल्पना की परिभाषा एवं महत्व।
    • रसशास्त्र की परिभाषा एवं उद्देश्य (देह सिद्धि, लोह सिद्धि)।
    • वैदिक काल की भेषज कल्पनाएं।
    • संहिता काल की प्रमुख भैषज्य कल्पनाएं (पंचविध कषाय, स्नेह, संधान)।
    • मध्यकाल को रसशास्त्र का स्वर्ण युग क्यों कहते हैं?
    • पारद का महत्व एवं अष्टदश संस्कार (संक्षेप में)।
    • भस्म कल्पना पर टिप्पणी लिखें।
    • आधुनिक काल में भैषज्य कल्पना का विकास एवं हालिया प्रगति।
    • रसशाला की अवधारणा स्पष्ट करें।
    • रस-रसायन क्या है? उदाहरण दें।
    • अघोर मंत्र लिखें एवं उसका अर्थ बताएं।
    • धातु आधारित औषधियों में भारत के योगदान पर टिप्पणी लिखें।

    अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)

    • भैषज्य कल्पना को परिभाषित करें।
    • रसशास्त्र को परिभाषित करें।
    • पंचविध कषाय कल्पना के नाम लिखें।
    • स्वरस क्या है?
    • क्वाथ बनाने का सामान्य नियम क्या है?
    • रसशास्त्र किस काल में विकसित हुआ? (मध्यकाल)
    • पारद के कितने संस्कार हैं? (18)
    • कज्जली क्या है? (शुद्ध पारद + शुद्ध गंधक का मर्दन)
    • भस्म निर्माण की एक विधि का नाम लिखें। (मारण/पुट)
    • API का पूर्ण रूप क्या है? (Ayurvedic Pharmacopoeia of India)
    • GMP का पूर्ण रूप क्या है? (Good Manufacturing Practices)
    • रसशाला किसे कहते हैं?
    • भेषजागार किसे कहते हैं?
    • रस-रसायन का एक उदाहरण दें। (मकरध्वज/स्वर्ण भस्म)
    • अघोर मंत्र किस देवता से सम्बंधित है? (शिव)
    • देह सिद्धि किस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य है? (रसशास्त्र)

    About the Author: Sparsh Varshney

    Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

    Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas, Rasashastra texts, and historical interpretations. For any medical advice or treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner.

    No comments:

    Post a Comment

    Amidha Ayurveda