Amidha Ayurveda

28/10/25

Mishraka Gana

In This Article
    मिश्रक गण (Mishraka Gana) - द्रव्यगुण नोट्स | BAMS Chapter Notes

    मिश्रक गण (Mishraka Gana) - द्रव्यगुण नोट्स

    यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत **'मिश्रक गण (Mishraka Gana)'** पर केंद्रित है। 'मिश्रक' का अर्थ है मिला हुआ या मिश्रित। द्रव्यगुण विज्ञान में, मिश्रक गण उन महत्वपूर्ण द्रव्य समूहों को कहते हैं जिनमें 2 या अधिक द्रव्यों को उनके विशिष्ट सम्मिलित प्रभाव के लिए एक निश्चित अनुपात में मिलाकर प्रयोग किया जाता है। ये गण आयुर्वेदिक चिकित्सा में योग (Formulation) के आधार हैं और बहुतायत से प्रयोग किए जाते हैं। इस अध्याय में हम प्रमुख मिश्रक गणों, उनके घटक द्रव्यों, गुणों, कर्मों और चिकित्सीय उपयोगों का अध्ययन करेंगे।

    अध्याय सार (Chapter in Brief)

    • मिश्रक गण: दो या अधिक द्रव्यों के विशिष्ट संयोग से बने द्रव्य समूह, जिनका सम्मिलित प्रभाव एकल द्रव्य से भिन्न या अधिक प्रभावी होता है।
    • प्रमुख गण: त्रिफला, त्रिकटु, त्रिजात, चतुर्जात, पंचकोल, षडूषण, पंचमूल (बृहत् ও लघु), दशमूल, पंचवल्कल, त्रिमद, पंचतिक्त आदि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
    • वर्गीकरण का आधार: इनमें द्रव्यों की संख्या (जैसे त्रिफला, पंचकोल) या विशिष्ट कर्म (जैसे पंचवल्कल - कषाय रस प्रधान) के आधार पर नामकरण होता है।
    • गुण-कर्म: प्रत्येक गण के अपने विशिष्ट गुण-कर्म होते हैं जो उनके घटक द्रव्यों के सम्मिलित प्रभाव से उत्पन्न होते हैं (जैसे त्रिकटु - दीपन, पाचन, कफघ्न)।
    • चिकित्सीय महत्व: मिश्रक गणों का प्रयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में एकल रूप से या अन्य योगों के घटक के रूप में किया जाता है। ये योग निर्माण के आधारभूत सिद्धांत हैं।

    मिश्रक गण (Mishraka Gana - Groups of Combined Drugs)

    आयुर्वेदिक चिकित्सा में द्रव्यों का प्रयोग एकल रूप में (Single drug therapy) और संयुक्त रूप में (Combined/Polyherbal therapy) किया जाता है। जब दो या दो से अधिक द्रव्यों को उनके synergistic (एक दूसरे के प्रभाव को बढ़ाने वाले) या specific combined effect के लिए एक साथ मिलाया जाता है, तो ऐसे समूह को 'मिश्रक गण' कहते हैं। ये गण हजारों वर्षों के अनुभव और ज्ञान के आधार पर संहिताओं और निघण्टुओं में वर्णित हैं और आज भी चिकित्सा की रीढ़ हैं।

    इन गणों का निर्माण द्रव्यों के रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव के सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है ताकि अधिकतम चिकित्सीय लाभ प्राप्त हो सके और संभावित दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।

    प्रमुख मिश्रक गण (Important Mishraka Ganas)

    अनेक मिश्रक गण प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं:

    1. त्रिफला (Triphala) - तीन फल

    हरीतकी विभीतञ्च धात्रीफलमतः परम्।
    त्रिफलेति समाख्याता सर्व रोग विनाशिनी॥

    (भावप्रकाश निघण्टु, हरीतक्यादि वर्ग)
    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • हरीतकी (Terminalia chebula)
    • विभीतक/बहेड़ा (Terminalia bellirica)
    • आमलकी/आंवला (Emblica officinalis)
    (समान भाग में)
    • गुण: लघु, रूक्ष
    • रस: पंचरस युक्त (लवण रहित), कषाय प्रधान
    • वीर्य: अनुष्ण-अशीत (समशीतोष्ण)
    • विपाक: मधुर
    • कर्म: त्रिदोषहर (विशेषतः कफ-पित्त शामक), रसायन (Rejuvenator), चक्षुष्य (Eye tonic), दीपन, पाचन, अनुलोमन (Mild laxative), क्लेद-मेद हर, प्रमेहघ्न, कुष्ठघ्न।
    • उपयोग: नेत्र रोग, कब्ज, मोटापा, प्रमेह, त्वचा रोग, सामान्य स्वास्थ्य वर्धन। इसे 'सर्वरोगहर' माना जाता है।

    2. त्रिकटु (Trikatu) - तीन कटु

    व्योषं कटुत्रयं त्र्यूषणमुच्यते।
    शुण्ठीमरिचपिप्पलीभिस्त्रिकटुः...

    (शारंगधर संहिता, मध्य खण्ड ६/१)
    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • शुण्ठी (Zingiber officinale) - सोंठ
    • मरिच (Piper nigrum) - काली मिर्च
    • पिप्पली (Piper longum) - पीपल
    (समान भाग में)
    • गुण: लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
    • रस: कटु
    • वीर्य: उष्ण
    • विपाक: कटु (पिप्पली का मधुर)
    • कर्म: दीपन (Appetizer), पाचन (Digestive), कफ-वात शामक, पित्त वर्धक, आम पाचक, स्रोतोविशोधन, लेखन, श्वास-कासहर, मेदोहर।
    • उपयोग: अग्निमांद्य, अजीर्ण, आमवात, श्वास, कास, प्रतिश्याय (जुकाम), स्थौल्य, कफज रोग।

    3. पंचकोल (Panchakola)

    पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः।
    पञ्चभिः कोलमात्रैस्तु पञ्चकोलकमुच्यते॥

    (शारंगधर संहिता, मध्य खण्ड ६/५)
    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • पिप्पली (Piper longum)
    • पिप्पलीमूल (Root of Piper longum)
    • चव्य (Piper retrofractum)
    • चित्रक (Plumbago zeylanica)
    • शुण्ठी/नागर (Zingiber officinale)
    (समान भाग में)
    • गुण: लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
    • रस: कटु
    • वीर्य: उष्ण
    • विपाक: कटु (पिप्पली/मूल का मधुर)
    • कर्म: दीपन, पाचन (त्रिकटु से अधिक तीव्र), आमपाचक, शूलघ्न (Pain reliever), गुल्महर्, प्लीहा-उदर रोग नाशक, कफ-वात शामक।
    • उपयोग: तीव्र अग्निमांद्य, आम संचय, गुल्म, प्लीहा वृद्धि, उदर रोग, शूल।

    4. दशमूल (Dashamula) - दस मूल

    यह दो उपसमूहों का योग है - बृहत् पंचमूल और लघु पंचमूल।

    4.1 बृहत् पंचमूल (Brihat Panchamula)

    बिल्वाग्निमन्थश्योनाककाश्मरीपाटलाः क्रमात्।
    महत् पञ्चमूलं ज्ञेयं ...

    (शारंगधर संहिता, मध्य खण्ड ६/१४ का अंश)
    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • बिल्व (Aegle marmelos)
    • अग्निमन्थ (Premna integrifolia)
    • श्योनाक (Oroxylum indicum)
    • काश्मर्य/गम्भारी (Gmelina arborea)
    • पाटला (Stereospermum suaveolens)
    (इन वृक्षों की मूल/छाल)
    • गुण: लघु, रूक्ष
    • रस: तिक्त, कषाय प्रधान
    • वीर्य: उष्ण (अधिकांश)
    • विपाक: कटु
    • कर्म: **वात-कफ शामक**, दीपन, पाचन, शोथहर (Anti-inflammatory), आमपाचक।
    • उपयोग: वात रोग, कफज रोग, शोथ, अग्निमांद्य।
    4.2 लघु पंचमूल (Laghu Panchamula)

    ... शालिपर्णी पृश्निपर्णी बृहतीद्वयगोक्षुरैः॥
    लघु पञ्चमूलं ख्यातं ...

    (शारंगधर संहिता, मध्य खण्ड ६/१४-१५ का अंश)
    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • शालपर्णी (Desmodium gangeticum)
    • पृश्निपर्णी (Uraria picta)
    • बृहती (Solanum indicum)
    • कंटकारी (Solanum xanthocarpum) - (बृहतीद्वय)
    • गोक्षुर (Tribulus terrestris)
    (इन क्षुपों की मूल)
    • गुण: लघु
    • रस: मधुर, तिक्त, कषाय
    • वीर्य: उष्ण (अधिकांश)
    • विपाक: मधुर/कटु
    • कर्म: **त्रिदोषहर (विशेषतः वात-पित्त शामक)**, बृंहण, बल्य, शोथहर, श्वास-कासहर, मूत्रल (Diuretic)।
    • उपयोग: वात-पित्तज रोग, श्वास, कास, ज्वर, मूत्रकृच्छ्र, हृदय रोग, दौर्बल्य।
    4.3 दशमूल (Dashamula = Brihat + Laghu Panchamula)

    दोनों पंचमूलों को मिलाकर दशमूल बनता है।

    गुण-कर्म-उपयोग
    • कर्म: **त्रिदोष शामक (मुख्यतः वात शामक)**, शोथहर, शूलघ्न, आमपाचक, कास-श्वासहर, ज्वरघ्न, बल्य, बृंहण।
    • उपयोग: सभी प्रकार के वात रोग, संधिवात, आमवात, श्वास, कास, ज्वर, शोथ, सूतिका रोग (Post-partum care), दौर्बल्य। यह अनेक आयुर्वेदिक योगों (जैसे दशमूलारिष्ट, दशमूल क्वाथ) का आधार है।

    5. पंचवल्कल (Panchavalkala) - पाँच छालें

    न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षपारिशकास्त्वचः।
    पञ्चैते क्षीरिणो वृक्षाः पञ्चवल्कलमुच्यते॥

    (विभिन्न निघण्टुओं में वर्णित)
    घटक द्रव्य (त्वक्/छाल)गुण-कर्म-उपयोग
    • न्यग्रोध (Ficus benghalensis) - वट
    • उदुम्बर (Ficus racemosa) - गूलर
    • अश्वत्थ (Ficus religiosa) - पीपल
    • प्लक्ष (Ficus lacor) - पाकड़
    • पारिश/पीलु (Thespesia populnea/Salvadora persica - मतभेद)
    (क्षीरी वृक्ष - Latex yielding trees)
    • गुण: गुरु, शीत, रूक्ष
    • रस: कषाय
    • वीर्य: शीत
    • विपाक: कटु
    • कर्म: **कफ-पित्त शामक**, स्तंभन (Astringent), व्रण रोपण (Wound healing), रक्त स्तंभक (Haemostatic), शोथहर, योनि विशोधन।
    • उपयोग: व्रण धावन (Wound wash), रक्तस्राव, श्वेत प्रदर (Leucorrhoea), मुख पाक, त्वचा रोग, योनि रोग (धूपन, धावन)। क्वाथ बनाकर बाह्य प्रयोग में अधिक उपयोगी।

    6. त्रिमद (Trimada)

    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    • विडंग (Embelia ribes)
    • मुस्तक/नागरमोथा (Cyperus rotundus)
    • चित्रक (Plumbago zeylanica)
    (समान भाग में)
    • कर्म: **कृमिघ्न (Anthelmintic)**, दीपन, पाचन, **लेखन**, कफ-वात शामक। 'मद' का अर्थ यहाँ कृमि या मेद माना जाता है।
    • उपयोग: कृमि रोग, स्थौल्य, अग्निमांद्य, आम दोष।

    7. चतुर्बीज (Chaturbija)

    घटक द्रव्य (बीज)गुण-कर्म-उपयोग
    • मेथी (Trigonella foenum-graecum)
    • चन्द्रशूर (Lepidium sativum)
    • कलौंजी (Nigella sativa)
    • यवानी/अजवायन (Trachyspermum ammi)
    • कर्म: **वात शामक**, शूलघ्न, दीपन, पाचन।
    • उपयोग: वात रोग, आमवात, कटिशूल, उदरशूल।

    8. षडूषण (Shadushana)

    घटक द्रव्यगुण-कर्म-उपयोग
    त्रिकटु (सोंठ, मिर्च, पिप्पली) + चव्य + चित्रक + पिप्पलीमूल
    (अर्थात् पंचकोल + मरिच)
    • कर्म: पंचकोल से भी अधिक **तीक्ष्ण दीपन-पाचन**, कफ-वात नाशक।
    • उपयोग: तीव्र अग्निमांद्य, आम संचय, कफज श्वास-कास।

    मिश्रक गणों का महत्व (Significance of Mishraka Ganas)

    मिश्रक गण आयुर्वेद की विशिष्टता हैं। इनके महत्व के कारण हैं:

    • Synergistic Effect: गण के द्रव्य मिलकर एकल द्रव्य की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली या विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
    • Balancing Effect: एक द्रव्य के संभावित दुष्प्रभाव को दूसरा द्रव्य कम कर सकता है (जैसे त्रिफला में हरीतकी के रूक्ष गुण को आमलकी के स्निग्ध गुण संतुलित करते हैं)।
    • Multiple Actions: एक ही गण विभिन्न कर्म कर सकता है (जैसे दशमूल - वातघ्न, शोथहर, शूलघ्न)।
    • Ease of Use: चिकित्सकों के लिए विशिष्ट कर्म हेतु द्रव्यों का चयन आसान हो जाता है।
    • Foundation of Formulations: ये गण हजारों आयुर्वेदिक योगों के आधार हैं।

    इन गणों का ज्ञान और उनके घटक द्रव्यों के गुणों का विश्लेषण, सफल चिकित्सा के लिए आवश्यक है।

    परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)

    (यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से 'मिश्रक गण' पर आधारित है)

    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)

    1. मिश्रक गण से क्या तात्पर्य है? त्रिफला एवं त्रिकटु गण के घटक द्रव्य, गुण, कर्म और उपयोग विस्तार से लिखें।
    2. दशमूल का वर्णन करें। बृहत् पंचमूल एवं लघु पंचमूल के घटक द्रव्यों का नामोल्लेख करते हुए दशमूल के कर्म एवं उपयोग बताएं।
    3. Define Mishraka Gana. Describe Triphala and Trikatu in detail mentioning their ingredients, properties, actions, and uses.
    4. Describe Dashamula. Mention the ingredients of Brihat Panchamula and Laghu Panchamula and explain the actions and uses of Dashamula.

    लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)

    • मिश्रक गण क्या हैं? इनका क्या महत्व है?
    • त्रिफला के घटक द्रव्य और मुख्य कर्म लिखें।
    • त्रिकटु के घटक द्रव्य और मुख्य कर्म लिखें।
    • पंचकोल के घटक द्रव्य और उपयोग बताएं।
    • बृहत् पंचमूल के घटक द्रव्य लिखें।
    • लघु पंचमूल के घटक द्रव्य लिखें।
    • दशमूल के मुख्य कर्म क्या हैं?
    • पंचवल्कल के घटक द्रव्य और उपयोग (विशेषकर बाह्य प्रयोग) बताएं।
    • त्रिमद गण के घटक एवं कर्म लिखें।
    • चतुर्बीज के घटक एवं कर्म लिखें।

    अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)

    • त्रिफला के घटक द्रव्यों के नाम लिखें। (हरीतकी, विभीतक, आमलकी)
    • त्रिकटु के घटक द्रव्यों के नाम लिखें। (शुण्ठी, मरिच, पिप्पली)
    • पंचकोल का एक मुख्य कर्म बताएं। (दीपन/पाचन)
    • बृहत् पंचमूल किस दोष का शमन करता है? (वात-कफ)
    • लघु पंचमूल किस दोष का शमन करता है? (त्रिदोषहर/वात-पित्त)
    • दशमूल का एक मुख्य उपयोग बताएं। (वात रोग/शोथ)
    • पंचवल्कल का मुख्य रस क्या है? (कषाय)
    • कृमिघ्न कर्म वाला मिश्रक गण कौन सा है? (त्रिमद)
    • वात शामक बीजों का समूह कौन सा है? (चतुर्बीज)
    • त्रिकटु + चव्य + चित्रक + पिप्पलीमूल = ? (षडूषण)

    About the Author: Sparsh Varshney

    Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

    Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas, Nighantus, and textbooks like Sharangdhara Samhita and Bhavaprakash. For any medical advice or treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner.

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