मिश्रक गण (Mishraka Gana) - द्रव्यगुण नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत **'मिश्रक गण (Mishraka Gana)'** पर केंद्रित है। 'मिश्रक' का अर्थ है मिला हुआ या मिश्रित। द्रव्यगुण विज्ञान में, मिश्रक गण उन महत्वपूर्ण द्रव्य समूहों को कहते हैं जिनमें 2 या अधिक द्रव्यों को उनके विशिष्ट सम्मिलित प्रभाव के लिए एक निश्चित अनुपात में मिलाकर प्रयोग किया जाता है। ये गण आयुर्वेदिक चिकित्सा में योग (Formulation) के आधार हैं और बहुतायत से प्रयोग किए जाते हैं। इस अध्याय में हम प्रमुख मिश्रक गणों, उनके घटक द्रव्यों, गुणों, कर्मों और चिकित्सीय उपयोगों का अध्ययन करेंगे।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- मिश्रक गण: दो या अधिक द्रव्यों के विशिष्ट संयोग से बने द्रव्य समूह, जिनका सम्मिलित प्रभाव एकल द्रव्य से भिन्न या अधिक प्रभावी होता है।
- प्रमुख गण: त्रिफला, त्रिकटु, त्रिजात, चतुर्जात, पंचकोल, षडूषण, पंचमूल (बृहत् ও लघु), दशमूल, पंचवल्कल, त्रिमद, पंचतिक्त आदि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
- वर्गीकरण का आधार: इनमें द्रव्यों की संख्या (जैसे त्रिफला, पंचकोल) या विशिष्ट कर्म (जैसे पंचवल्कल - कषाय रस प्रधान) के आधार पर नामकरण होता है।
- गुण-कर्म: प्रत्येक गण के अपने विशिष्ट गुण-कर्म होते हैं जो उनके घटक द्रव्यों के सम्मिलित प्रभाव से उत्पन्न होते हैं (जैसे त्रिकटु - दीपन, पाचन, कफघ्न)।
- चिकित्सीय महत्व: मिश्रक गणों का प्रयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में एकल रूप से या अन्य योगों के घटक के रूप में किया जाता है। ये योग निर्माण के आधारभूत सिद्धांत हैं।
मिश्रक गण (Mishraka Gana - Groups of Combined Drugs)
आयुर्वेदिक चिकित्सा में द्रव्यों का प्रयोग एकल रूप में (Single drug therapy) और संयुक्त रूप में (Combined/Polyherbal therapy) किया जाता है। जब दो या दो से अधिक द्रव्यों को उनके synergistic (एक दूसरे के प्रभाव को बढ़ाने वाले) या specific combined effect के लिए एक साथ मिलाया जाता है, तो ऐसे समूह को 'मिश्रक गण' कहते हैं। ये गण हजारों वर्षों के अनुभव और ज्ञान के आधार पर संहिताओं और निघण्टुओं में वर्णित हैं और आज भी चिकित्सा की रीढ़ हैं।
इन गणों का निर्माण द्रव्यों के रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव के सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है ताकि अधिकतम चिकित्सीय लाभ प्राप्त हो सके और संभावित दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।
प्रमुख मिश्रक गण (Important Mishraka Ganas)
अनेक मिश्रक गण प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं:
1. त्रिफला (Triphala) - तीन फल
हरीतकी विभीतञ्च धात्रीफलमतः परम्।
             त्रिफलेति समाख्याता सर्व रोग विनाशिनी॥
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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2. त्रिकटु (Trikatu) - तीन कटु
व्योषं कटुत्रयं त्र्यूषणमुच्यते।
             शुण्ठीमरिचपिप्पलीभिस्त्रिकटुः...
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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3. पंचकोल (Panchakola)
पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः।
             पञ्चभिः कोलमात्रैस्तु पञ्चकोलकमुच्यते॥
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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4. दशमूल (Dashamula) - दस मूल
यह दो उपसमूहों का योग है - बृहत् पंचमूल और लघु पंचमूल।
4.1 बृहत् पंचमूल (Brihat Panchamula)
बिल्वाग्निमन्थश्योनाककाश्मरीपाटलाः क्रमात्।
             महत् पञ्चमूलं ज्ञेयं ...
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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4.2 लघु पंचमूल (Laghu Panchamula)
... शालिपर्णी पृश्निपर्णी बृहतीद्वयगोक्षुरैः॥
             लघु पञ्चमूलं ख्यातं ...
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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4.3 दशमूल (Dashamula = Brihat + Laghu Panchamula)
दोनों पंचमूलों को मिलाकर दशमूल बनता है।
| गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|
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5. पंचवल्कल (Panchavalkala) - पाँच छालें
न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षपारिशकास्त्वचः।
             पञ्चैते क्षीरिणो वृक्षाः पञ्चवल्कलमुच्यते॥
| घटक द्रव्य (त्वक्/छाल) | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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6. त्रिमद (Trimada)
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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7. चतुर्बीज (Chaturbija)
| घटक द्रव्य (बीज) | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
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8. षडूषण (Shadushana)
| घटक द्रव्य | गुण-कर्म-उपयोग | 
|---|---|
| त्रिकटु (सोंठ, मिर्च, पिप्पली) + चव्य + चित्रक + पिप्पलीमूल (अर्थात् पंचकोल + मरिच) | 
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मिश्रक गणों का महत्व (Significance of Mishraka Ganas)
मिश्रक गण आयुर्वेद की विशिष्टता हैं। इनके महत्व के कारण हैं:
- Synergistic Effect: गण के द्रव्य मिलकर एकल द्रव्य की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली या विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- Balancing Effect: एक द्रव्य के संभावित दुष्प्रभाव को दूसरा द्रव्य कम कर सकता है (जैसे त्रिफला में हरीतकी के रूक्ष गुण को आमलकी के स्निग्ध गुण संतुलित करते हैं)।
- Multiple Actions: एक ही गण विभिन्न कर्म कर सकता है (जैसे दशमूल - वातघ्न, शोथहर, शूलघ्न)।
- Ease of Use: चिकित्सकों के लिए विशिष्ट कर्म हेतु द्रव्यों का चयन आसान हो जाता है।
- Foundation of Formulations: ये गण हजारों आयुर्वेदिक योगों के आधार हैं।
इन गणों का ज्ञान और उनके घटक द्रव्यों के गुणों का विश्लेषण, सफल चिकित्सा के लिए आवश्यक है।
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
(यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से 'मिश्रक गण' पर आधारित है)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- मिश्रक गण से क्या तात्पर्य है? त्रिफला एवं त्रिकटु गण के घटक द्रव्य, गुण, कर्म और उपयोग विस्तार से लिखें।
- दशमूल का वर्णन करें। बृहत् पंचमूल एवं लघु पंचमूल के घटक द्रव्यों का नामोल्लेख करते हुए दशमूल के कर्म एवं उपयोग बताएं।
- Define Mishraka Gana. Describe Triphala and Trikatu in detail mentioning their ingredients, properties, actions, and uses.
- Describe Dashamula. Mention the ingredients of Brihat Panchamula and Laghu Panchamula and explain the actions and uses of Dashamula.
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- मिश्रक गण क्या हैं? इनका क्या महत्व है?
- त्रिफला के घटक द्रव्य और मुख्य कर्म लिखें।
- त्रिकटु के घटक द्रव्य और मुख्य कर्म लिखें।
- पंचकोल के घटक द्रव्य और उपयोग बताएं।
- बृहत् पंचमूल के घटक द्रव्य लिखें।
- लघु पंचमूल के घटक द्रव्य लिखें।
- दशमूल के मुख्य कर्म क्या हैं?
- पंचवल्कल के घटक द्रव्य और उपयोग (विशेषकर बाह्य प्रयोग) बताएं।
- त्रिमद गण के घटक एवं कर्म लिखें।
- चतुर्बीज के घटक एवं कर्म लिखें।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- त्रिफला के घटक द्रव्यों के नाम लिखें। (हरीतकी, विभीतक, आमलकी)
- त्रिकटु के घटक द्रव्यों के नाम लिखें। (शुण्ठी, मरिच, पिप्पली)
- पंचकोल का एक मुख्य कर्म बताएं। (दीपन/पाचन)
- बृहत् पंचमूल किस दोष का शमन करता है? (वात-कफ)
- लघु पंचमूल किस दोष का शमन करता है? (त्रिदोषहर/वात-पित्त)
- दशमूल का एक मुख्य उपयोग बताएं। (वात रोग/शोथ)
- पंचवल्कल का मुख्य रस क्या है? (कषाय)
- कृमिघ्न कर्म वाला मिश्रक गण कौन सा है? (त्रिमद)
- वात शामक बीजों का समूह कौन सा है? (चतुर्बीज)
- त्रिकटु + चव्य + चित्रक + पिप्पलीमूल = ? (षडूषण)
 
 
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