Amidha Ayurveda

28/10/25

Karmas of Dashemani Gana

In This Article
    दशमानि गण के कर्म - द्रव्यगुण नोट्स | BAMS Chapter Notes

    दशमानि गण के कर्म - द्रव्यगुण नोट्स

    यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत चरक संहिता, सूत्रस्थान अध्याय 4 में वर्णित **षड् विरेचनशताश्रितीय अध्याय** के महत्वपूर्ण भाग - **दशमानि गण (Dashemani Gana)** या **दश वर्ग (Ten Groups)** पर केंद्रित है। आचार्य चरक ने औषध द्रव्यों को उनके मुख्य कर्मों के आधार पर 50 महाकषायों में वर्गीकृत किया है, जिनमें से 6 गणों (प्रत्येक में 10 द्रव्य) का वर्णन इस अध्याय में विशेष रूप से किया गया है। इन्हें 'षड् विरेचन आश्रय' भी कहते हैं क्योंकि ये वमन-विरेचन आदि शोधन कर्मों में प्रयुक्त द्रव्यों के मूल स्रोत हैं। (नोट: यद्यपि अध्याय का नाम षड् विरेचनशताश्रितीय है, व्यवहार में इन 6 गणों को 'दशमानि गण' के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्रत्येक में 10 द्रव्य होते हैं)।

    इस अध्याय में हम इन 6 प्रमुख कर्म-आधारित गणों और उनके मुख्य कर्मों का अध्ययन करेंगे। यह वर्गीकरण द्रव्यों के चिकित्सीय प्रयोग को समझने और याद रखने में अत्यंत सहायक है।

    अध्याय सार (Chapter in Brief)

    • दशमानि गण/षड् विरेचन आश्रय: चरक संहिता सूत्रस्थान-4 में वर्णित 6 प्रमुख कर्म-आधारित द्रव्य समूह, प्रत्येक में 10 द्रव्य।
    • वर्गीकरण का आधार: द्रव्यों का उनके शरीर पर होने वाले प्रधान कर्म (Main Action) के अनुसार वर्गीकरण।
    • छः गण: विरेचन, बमन (वमन), स्थापन (आस्थापन), अनुवासन, शिरोविरेचन (नस्य), और संग्रहक (यहाँ चरक ने संग्रहक के स्थान पर वमनोपग, विरेचनोपग आदि उपग गणों का उल्लेख किया है, पर कर्मानुसार 6 मुख्य आश्रय पुष्प, फल, मूल, त्वक्, पत्र, क्षीर हैं जिनके आधार पर वमन-विरेचन आदि होते हैं। व्यवहार में षड् गणों का अध्ययन कर्मानुसार किया जाता है: दीपन, पाचन, लेखन आदि)।
    • अध्ययन का फोकस: इस नोट्स में हम चरक सूत्र-4 में वर्णित 6 मुख्य कर्मों - **वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, शिरोविरेचन** और इनसे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण कर्मों वाले **महाकषायों** का अध्ययन करेंगे (क्योंकि चरक ने सूत्र 4 में विशिष्ट गण नहीं, बल्कि महाकषायों के माध्यम से कर्म बताए हैं)।
    • महाकषाय उदाहरण: वमनोपग, विरेचनोपग, आस्थापनोपग, अनुवासनोपग, शिरोविरेचनोपग, छर्दिनिग्रहण, तृष्णानिग्रहण, हिक्कानिग्रहण आदि।
    • चिकित्सीय महत्व: यह वर्गीकरण पंचकर्म चिकित्सा और अन्य रोगों में औषध द्रव्यों के चयन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    स्पष्टीकरण (Clarification)

    चरक सूत्रस्थान अध्याय 4 में सीधे तौर पर 'दशमानि गण' नाम से 10 गणों का वर्णन नहीं है। वहाँ 50 महाकषायों का वर्णन है, जिनमें से प्रत्येक में 10 द्रव्य हैं। इस अध्याय में मुख्य रूप से वमन, विरेचन आदि पंचकर्म में उपयोगी द्रव्यों और उनके आश्रयों (पुष्प, फल आदि) तथा कर्मों (जैसे वमनोपग, विरेचनोपग) का वर्णन है। चिकित्सा व्यवहार में, कर्मानुसार प्रमुख 10 गणों का अध्ययन किया जाता है, जिन्हें 'दशमानि गण' कह दिया जाता है, यद्यपि उनका स्रोत चरक के 50 महाकषाय ही हैं। हम यहाँ चरक सूत्र 4 में वर्णित प्रमुख कर्मों से संबंधित महाकषायों का अध्ययन करेंगे।

    दशमानि गण / महाकषायों के प्रमुख कर्म

    आचार्य चरक ने सूत्रस्थान के चौथे अध्याय 'षड् विरेचनशताश्रितीयम्' में द्रव्यों को उनके कर्मों के आधार पर 50 समूहों में वर्गीकृत किया है, जिन्हें **महाकषाय (Mahakashaya)** कहा जाता है। प्रत्येक महाकषाय में उस विशिष्ट कर्म को करने वाले 10 श्रेष्ठ द्रव्यों का समावेश किया गया है। यह वर्गीकरण चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत व्यावहारिक और महत्वपूर्ण है। हम यहाँ कुछ प्रमुख महाकषायों और उनके कर्मों का अध्ययन करेंगे, जिन्हें प्रायः 'दशमानि गण' के अध्ययन के अंतर्गत शामिल किया जाता है।

    पञ्च कषायशतानि भवन्ति, पञ्च कषाययोनयः,
    पञ्च पञ्चकषायाणि, इति कषायसंग्रहः॥
    ...
    महाकषायांश्च दश द्रव्ययुक्तान् व्याख्यास्यामः।

    (चरक संहिता, सूत्रस्थान ४/६-८ का भावार्थ)

    व्याख्या:

    आचार्य चरक कहते हैं कि (विभिन्न योगों के अनुसार) 500 कषाय कल्पनाएं होती हैं, कषायों की 5 योनियां (स्वरस, कल्क, क्वाथ, शीत, फांट) हैं, और 5 वर्गों में 5-5 कषाय (जैसे पंचवल्कल) होते हैं। इसके पश्चात् वे कहते हैं कि अब हम 10 द्रव्यों से युक्त 50 महाकषायों का वर्णन करेंगे।

    प्रमुख महाकषाय एवं उनके कर्म (Important Mahakashayas and their Actions)

    चरक सूत्रस्थान अध्याय 4 में वर्णित 50 महाकषायों में से कुछ प्रमुख और उनके कर्म निम्नलिखित हैं:

    महाकषाय (गण) प्रमुख कर्म (Action) चिकित्सीय उपयोग (Examples) मुख्य द्रव्य (Examples)
    1. जीवनीय (Jivaniya) जीवन शक्ति वर्धक, रसायन, बृंहण क्षय रोग, दौर्बल्य, ओज क्षय जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ती, मुलेठी
    2. बृंहणीय (Brimhaniya) शरीर का पोषण करने वाला, स्थूलता लाने वाला कृशता (Emaciation), दौर्बल्य, वात रोग क्षीरिणी (दुग्धिका), राजादन (खिरनी), बला, अतिबला, नागबला, विदारीकंद, अश्वगंधा
    3. लेखनीय (Lekhaniya) धातुओं और मलों को खुरच कर कम करने वाला (Scraping) स्थौल्य (Obesity), मेदो रोग, कफज रोग, अर्श, गुल्म मुस्तक (नागरमोथा), कुष्ठ, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, वचा, अतिविषा, कटुका, चित्रक
    4. भेदनीय (Bhedaniya) बंधे हुए मल आदि को तोड़कर निकालने वाला (Purgative for hard stools) कोष्ठबद्धता (Constipation), गुल्म, अर्श निशोथ (त्रिवृत्), आरग्वध (अमलतास), कटुका, दंती, द्रवंती, चित्रक
    5. संधानिय (Sandhaniya) टूटी हुई हड्डी आदि को जोड़ने वाला (Fracture healing, Uniting) अस्थि भग्न (Fracture), व्रण (Wound) मधुक (मुलेठी), गुडूची, पृश्निपर्णी, अम्बाष्ठा (पाठा), मोचरस, लाक्षा
    6. दीपनीय (Dipaniya) अग्नि (पाचन शक्ति) को बढ़ाने वाला (Appetizer) अग्निमांद्य (Loss of appetite), अजीर्ण, आम दोष पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक, शुण्ठी, अम्लवेतस, मरीच, अजमोदा
    7. बल्य (Balya) शरीर को बल प्रदान करने वाला (Strength promoting) सामान्य दौर्बल्य, क्षय, वात रोग बला, अतिबला, नागबला, इन्द्रवारुणी, शतावरी, अश्वगंधा, पुनर्नवा
    8. वर्ण्य (Varnya) त्वचा के वर्ण (Complexion) को सुधारने वाला त्वचा विकार, वर्ण सुधार हेतु चन्दन, तुंग (नागकेसर), पद्मक, उशीर (खस), मधुक (मुलेठी), मंजिष्ठा, सारिवा
    9. कण्ठ्य (Kanthya) कंठ (गले/स्वर) के लिए हितकर (Beneficial for throat/voice) स्वर भेद (Hoarseness), गले के रोग सारिवा, इक्षुमूल (गन्ने की जड़), मधुक, पिप्पली, द्राक्षा (अंगूर), विदारीकंद
    10. हृद्य (Hridya) हृदय के लिए हितकर (Cardiotonic) हृदय रोग, मानसिक तनाव आम्र (आम), आम्रातक (अमरूद जैसा फल), लकुच (बड़हल), करमर्द (करौंदा), मातुलुंग (बिजौरा नींबू)
    11. तृप्तिघ्न (Triptighna) अति तृप्ति (False satisfaction) को नष्ट करने वाला अरुचि, अग्निमांद्य शुण्ठी, चित्रक, चव्य, विडंग, नागरमोथा, गुडूची, वचा
    12. अर्शोघ्न (Arshoghna) अर्श (Piles/Haemorrhoids) को नष्ट करने वाला अर्श (बवासीर) कुटज, बिल्व, चित्रक, शुण्ठी, अतिविषा, हरीतकी, चव्य
    13. कुष्ठघ्न (Kushthaghna) कुष्ठ (Skin diseases including Leprosy) को नष्ट करने वाला सभी प्रकार के त्वचा रोग खदिर, हरीतकी, आमलकी, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, निम्ब, आरग्वध
    14. कण्डूघ्न (Kandughna) कण्डू (Itching) को नष्ट करने वाला खुजली, त्वचा के कीड़े चन्दन, नलद (जटामांसी), कुटज, निम्ब, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, मुस्तक
    15. कृमिघ्न (Krimighna) कृमि (Worms/Parasites) को नष्ट करने वाला आंतरिक और बाह्य कृमि रोग विडंग, शिग्रु (सहजन), मरीच, निम्ब, हींग, वचा
    16. विषघ्न (Vishaghna) विष (Poison/Toxin) के प्रभाव को नष्ट करने वाला सभी प्रकार की विषाक्तता हरिद्रा, मंजिष्ठा, चन्दन, शिरीष, सिन्धुवार (निर्गुण्डी), श्लेष्मातक (लिसोड़ा)
    17. स्तन्यजनन (Stanyajanana) स्तन्य (Breast milk) को उत्पन्न करने वाला स्तन्य की कमी (Lactation insufficiency) वीरण (खस), शालि (चावल), षष्टिक (चावल), इक्षुवालिका (काँस), दर्भ, कुश, शतावरी
    18. स्तन्यशोधन (Stanyashodhana) दूषित स्तन्य को शुद्ध करने वाला स्तन्य दुष्टि (Vitiated breast milk) पाठा, शुण्ठी, देवदारु, नागरमोथा, मूर्वा, गुडूची, किरातिक्त (चिरायता)
    19. शुक्रजनन (Shukrajanana) शुक्र (Semen/Reproductive tissue) को उत्पन्न करने वाला शुक्र क्षय, नपुंसकता जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, मेदा, शतावरी
    20. शुक्रशोधन (Shukrashodhana) दूषित शुक्र को शुद्ध करने वाला शुक्र दुष्टि (Vitiated semen) कुष्ठ, एलवालुक (एक सुगंधित द्रव्य), कट्फल, समुद्रफेन, कदम्ब निर्यास (रस), इक्षु कांड (गन्ना)
    21. स्नेहोपग (Snehopaga) स्नेहन (Oleation therapy) में सहायक पंचकर्म पूर्व स्नेहन द्राक्षा, मधुक, विदारीकंद, मेदा, जीवन्ती
    22. स्वेदोपग (Swedopaga) स्वेदन (Fomentation/Sudation) में सहायक पंचकर्म पूर्व स्वेदन शोभाञ्जन (शिग्रु/सहजन), एरण्ड, अर्क, पुनर्नवा, यव, तिल
    23. वमनोपग (Vamanopaga) वमन (Therapeutic emesis) में सहायक पंचकर्म - वमन कर्म मधु, मधुक, कोविदार, निम्ब, बिम्बी, विशाला (इन्द्रायण)
    24. विरेचनोपग (Virechanopaga) विरेचन (Therapeutic purgation) में सहायक पंचकर्म - विरेचन कर्म द्राक्षा, आमलकी, हरीतकी, काश्मर्य (गम्भारी), परुषक (फालसा)
    25. आस्थापनोपग (Asthapanopaga) आस्थापन बस्ति (Decoction enema) में सहायक पंचकर्म - बस्ति कर्म त्रिवृत्, बिल्व, पिप्पली, कुष्ठ, सरषप (सरसों), वचा, इन्द्रयव
    26. अनुवासनोपग (Anuvasanopaga) अनुवासन बस्ति (Oil enema) में सहायक पंचकर्म - बस्ति कर्म रास्ना, देवदारु, बिल्व, मदनफल, शतावरी, पुनर्नवा, गुडूची
    27. शिरोविरेचनोपग (Shirovirechanopaga) शिरोविरेचन/नस्य (Nasal cleansing/medication) में सहायक पंचकर्म - नस्य कर्म, शिरो रोग ज्योतिष्मती, क्षवक (नकछिकनी), मरीच, पिप्पली, विडंग, शिग्रु, अपामार्ग बीज
    28. छर्दिनिग्रहण (Chhardinigrahana) छर्दि/वमन (Vomiting) को रोकने वाला (Anti-emetic) वमन रोग लाजा (खील), मधु, चन्दन, द्राक्षा, मातुलुंग
    29. तृष्णानिग्रहण (Trishnanigrahana) तृष्णा (Thirst) को रोकने वाला अत्यधिक प्यास शुण्ठी, नागरमोथा, गुडूची, पर्पट (पित्तपापड़ा), चन्दन, उशीर
    30. हिक्कानिग्रहण (Hikkanigrahana) हिक्का (Hiccup) को रोकने वाला हिचकी शटी (कपूरकचरी), पुष्करमूल, हरीतकी, पिप्पली, द्राक्षा
    ... (अन्य महाकषाय) ... ... ...

    (नोट: उपरोक्त तालिका में सभी 50 महाकषायों का समावेश नहीं है, केवल प्रमुख और परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण गणों को दर्शाया गया है। प्रत्येक गण के सभी 10 द्रव्यों के स्थान पर केवल कुछ मुख्य उदाहरण दिए गए हैं।)

    चिकित्सीय महत्व (Clinical Importance)

    चरक द्वारा किया गया यह कर्म-आधारित वर्गीकरण (महाकषाय) चिकित्सा के लिए अत्यंत उपयोगी है:

    • औषध चयन में सुगमता: किसी विशिष्ट कर्म (जैसे - लेखन या बृंहण) के लिए श्रेष्ठ 10 द्रव्यों का समूह उपलब्ध होने से चिकित्सक आसानी से रोगी की आवश्यकतानुसार द्रव्य का चयन कर सकता है।
    • योग निर्माण का आधार: अनेक आयुर्वेदिक योग (Formulations) इन्हीं महाकषायों के द्रव्यों को आधार बनाकर तैयार किए जाते हैं (जैसे दशमूलारिष्ट, च्यवनप्राश)।
    • पंचकर्म में उपयोग: वमनोपग, विरेचनोपग, आस्थापनोपग, अनुवासनोपग, शिरोविरेचनोपग गण पंचकर्म की प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक द्रव्यों का निर्देश देते हैं।
    • विशिष्ट रोगों की चिकित्सा: अर्शोघ्न, कुष्ठघ्न, कृमिघ्न, विषघ्न जैसे गण विशिष्ट रोगों की चिकित्सा में सीधे उपयोगी हैं।
    • लक्षणों का शमन: छर्दिनिग्रहण, तृष्णानिग्रहण, हिक्कानिग्रहण जैसे गण लक्षणों (Symptoms) को शांत करने वाले द्रव्यों का समूह बताते हैं।
    • स्वास्थ्य रक्षण एवं धातु पोषण: जीवनीय, बल्य, वयःस्थापन (Anti-aging), शुक्रजनन जैसे गण स्वास्थ्य को बनाए रखने और धातुओं का पोषण करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

    यह वर्गीकरण द्रव्य के कर्मों को याद रखने और समझने का एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका प्रदान करता है, जो द्रव्यगुण विज्ञान के अध्ययन को सरल बनाता है।

    परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)

    (यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से चरक सूत्रस्थान अध्याय 4 में वर्णित 'महाकषाय' पर आधारित है)

    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)

    1. चरक संहिता में वर्णित किन्हीं चार महाकषायों का नामोल्लेख करते हुए उनके प्रमुख कर्म, उपयोग और मुख्य द्रव्यों का वर्णन करें (जैसे - जीवनीय, लेखनीय, दीपनीय, विषघ्न)।
    2. पंचकर्म में उपयोगी महाकषायों (वमनोपग, विरेचनोपग, आस्थापनोपग, अनुवासनोपग, शिरोविरेचनोपग) का वर्णन करें।
    3. Explain the concept of Mahakashaya as described by Charaka in Sutrasthana Chapter 4. Describe any four Mahakashayas in detail regarding their main Karma, uses, and constituent drugs.

    लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)

    • महाकषाय वर्गीकरण का आधार क्या है?
    • जीवनीय गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • लेखनीय गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • दीपनीय गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • बल्य गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • हृद्य गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • विषघ्न गण के कर्म और मुख्य द्रव्य लिखें।
    • वमनोपग और विरेचनोपग गणों का उपयोग बताएं।
    • महाकषाय वर्गीकरण का चिकित्सीय महत्व संक्षेप में बताएं।

    अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)

    • चरक ने कितने महाकषायों का वर्णन किया है? (50)
    • प्रत्येक महाकषाय में कितने द्रव्य होते हैं? (10)
    • जीवनीय गण का मुख्य कर्म क्या है? (जीवन शक्ति वर्धक)
    • लेखनीय गण किस रोग में उपयोगी है? (स्थौल्य/Obesity)
    • दीपनीय गण का एक मुख्य द्रव्य बताएं। (पिप्पली/चित्रक/शुण्ठी)
    • हृदय के लिए हितकर गण कौन सा है? (हृद्य)
    • वमन में सहायक गण कौन सा है? (वमनोपग)
    • विरेचन में सहायक गण कौन सा है? (विरेचनोपग)
    • अर्श (Piles) के लिए कौन सा गण है? (अर्शोघ्न)
    • कृमि (Worms) के लिए कौन सा गण है? (कृमिघ्न)

    About the Author: Sparsh Varshney

    Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

    Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas and textbooks, primarily Charaka Samhita Sutrasthana Chapter 4. For any medical advice or treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner.

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