Amidha Ayurveda

28/10/25

Dravya (द्रव्य)

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    द्रव्य (Dravya) - द्रव्यगुण विज्ञान नोट्स | BAMS Chapter Notes

    द्रव्य (Dravya) - द्रव्यगुण विज्ञान नोट्स

    यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के द्रव्यगुण विज्ञान विषय के अंतर्गत **'द्रव्य'** अध्याय पर केंद्रित है। इसमें हम द्रव्य की परिभाषा, कारण द्रव्य, कार्य द्रव्य, पंचभौतिक संघटन और विभिन्न वर्गीकरणों का अध्ययन विस्तार से करेंगे। यह अध्याय औषध द्रव्यों को समझने और उनके चिकित्सीय प्रभाव को निर्धारित करने के लिए मूलभूत ज्ञान प्रदान करता है।

    अध्याय सार (Chapter in Brief)

    • द्रव्य परिभाषा: द्रव्य गुण और कर्म का आश्रय तथा कार्य का समवायी कारण है।
    • कारण द्रव्य (9): पंचमहाभूत, आत्मा, मन, काल, दिशा (नित्य)।
    • कार्य द्रव्य (असंख्य): कारण द्रव्यों से उत्पन्न (अनित्य), समस्त चेतन/अचेतन पदार्थ।
    • पंचभौतिकता: सभी कार्य द्रव्य पंचमहाभूतों से बने होते हैं, जिनमें महाभूतों की प्रधानता गुण-कर्म निर्धारित करती है।
    • वर्गीकरण आधार: द्रव्यों का वर्गीकरण योनि (स्रोत), प्रयोग (उपयोग), कर्म (कार्य), रस (स्वाद) आदि के आधार पर होता है।

    द्रव्य (Dravya - The Substance)

    आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में 'द्रव्य' की अवधारणा अत्यंत केंद्रीय है। द्रव्यगुण विज्ञान के सप्त पदार्थों में 'द्रव्य' प्रथम और मूलभूत पदार्थ है। आयुर्वेद दर्शन, विशेषकर वैशेषिक दर्शन के अनुसार, द्रव्य षट् पदार्थों (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय) में से एक प्रमुख पदार्थ है। यह वह अधिष्ठान (Substratum) है जिसमें अन्य सभी पदार्थ जैसे गुण, कर्म आदि समवाय सम्बन्ध (Inseparable inherence) से रहते हैं।

    द्रव्य की परिभाषा (Definition of Dravya)

    आचार्य चरक द्रव्य को परिभाषित करते हुए कहते हैं:

    यत्राश्रिताः कर्मगुणाः कारणं समवायि यत्।
    तद् द्रव्यम्॥

    (चरक संहिता, सूत्रस्थान १/५१)

    व्याख्या:

    जिसमें **कर्म** (Actions) और **गुण** (Properties) आश्रित रहते हैं (यानी द्रव्य गुण और कर्म का आश्रय है), और जो अपने कार्य (Effect) का **समवायि कारण** (Inseparable or inherent cause) है, वह 'द्रव्य' है।

    • गुण और कर्म का आश्रय: द्रव्य ही गुणों (जैसे रूक्षता, शीतलता) और कर्मों (जैसे दीपन, पाचन) का आधार है। गुण और कर्म बिना द्रव्य के स्वतंत्र रूप से विद्यमान नहीं हो सकते।
    • समवायि कारण: द्रव्य अपने द्वारा उत्पन्न होने वाले कार्य का समवायि कारण होता है। समवाय संबंध नित्य और अविभाज्य होता है, अर्थात् कार्य अपने कारण (द्रव्य) से कभी अलग नहीं हो सकता।

    आचार्य सुश्रुत भी लगभग समान परिभाषा देते हैं: "क्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम्" (सुश्रुत संहिता, सूत्रस्थान ४०/३)

    कारण द्रव्य एवं कार्य द्रव्य (Causal and Effect Substances)

    आयुर्वेद दर्शन (विशेषकर न्याय-वैशेषिक) के अनुसार, द्रव्यों को उनकी नित्यता और उत्पत्ति के आधार पर दो मुख्य भागों में बांटा गया है:

    1. कारण द्रव्य (Karan Dravya):

    ये वे मूल द्रव्य हैं जो सृष्टि की उत्पत्ति के कारण हैं। इन्हें नित्य (eternal), अविनाशी और अमूर्त (formless) माना जाता है। इनकी संख्या 9 है:

    कारण द्रव्य विवरण
    पंचमहाभूत पृथ्वी, जल, अग्नि (तेज), वायु, आकाश - भौतिक सृष्टि के आधार।
    आत्मा चेतना, ज्ञान और अनुभव का अधिष्ठान; विभु (सर्वव्यापी)।
    मन इन्द्रियों और आत्मा के बीच संयोजक; सुख-दुःख आदि का अनुभवकर्ता; अणु स्वरूप, प्रतिशरीर भिन्न।
    काल समय का सूचक; परिवर्तन, वृद्धि, ह्रास आदि का कारण; नित्य और विभु।
    दिक् (दिशा) स्थान, दूरी और स्थिति का निर्धारण करने वाला; नित्य और विभु।

    आचार्य चरक इन कारण द्रव्यों का उल्लेख करते हुए चेतन और अचेतन द्रव्य का भेद भी बताते हैं:

    खादीन्यात्मा मनः कालो दिशश्च द्रव्यसंग्रहः।
    सेन्द्रियं चेतनं द्रव्यं निरिन्द्रियमचेतनम्॥

    (चरक संहिता, सूत्रस्थान १/४८)

    व्याख्या:

    आकाश आदि पाँच महाभूत, आत्मा, मन, काल और दिशाएँ - यह द्रव्यों का संग्रह (कारण द्रव्यों का समूह) है। इनमें से जो इन्द्रिय युक्त है वह चेतन द्रव्य है (जैसे आत्मा-मन युक्त शरीर) और जो इन्द्रिय रहित है वह अचेतन द्रव्य है (जैसे पंचमहाभूत स्वयं)।

    2. कार्य द्रव्य (Karya Dravya):

    ये वे द्रव्य हैं जो कारण द्रव्यों (विशेषकर पंचमहाभूतों) के विभिन्न संयोगों से उत्पन्न होते हैं। ये अनित्य (non-eternal) और संख्या में असंख्य हैं। संसार के सभी चेतन और अचेतन पदार्थ जो हमें प्रत्यक्ष गोचर होते हैं, कार्य द्रव्य हैं।

    • चेतन कार्य द्रव्य: वे जिनमें चेतना और इन्द्रियाँ होती हैं (जैसे - मनुष्य, पशु, पक्षी)।
    • अचेतन कार्य द्रव्य: वे जिनमें चेतना और इन्द्रियाँ नहीं होतीं (जैसे - औषधीय पौधे, खनिज पदार्थ, जल, वायु)।

    चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले सभी औषध, आहार और विहार (जीवन शैली के कारक) द्रव्य 'कार्य द्रव्य' की श्रेणी में आते हैं।

    द्रव्य का पंचभौतिक संघटन (Panchabhautika Composition)

    आयुर्वेद का यह मूलभूत सिद्धांत है कि सृष्टि का प्रत्येक कार्य द्रव्य पंचमहाभूतों - आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी - से मिलकर बना है।

    सर्वं द्रव्यं पाञ्चभौतिकमस्मिन्नर्थे; तच्चेतनावदचेतनं च।

    (चरक संहिता, सूत्रस्थान २६/१०)

    व्याख्या:

    इस लोक में सभी (कार्य) द्रव्य पांचभौतिक हैं; वे चेतन या अचेतन हो सकते हैं।

    यद्यपि सभी द्रव्य पांचों महाभूतों से बने होते हैं, उनमें किसी एक या अधिक महाभूत की **प्रधानता (Predominance/Utkarsha)** होती है। जिस महाभूत की अभिव्यक्ति उस द्रव्य में अधिक होती है, उसी के आधार पर उस द्रव्य के गुण, रस, वीर्य, विपाक और अंततः कर्म निर्धारित होते हैं। इसे 'व्यपदेशस्तु भूयसा' का सिद्धांत कहते हैं - अर्थात्, पहचान अधिकता के आधार पर होती है।

    पंचमहाभूतों की प्रधानता और उनके गुण-कर्म:

    महाभूत प्रधानता प्रमुख गुण प्रमुख कर्म उदाहरण
    पृथ्वी गुरु, खर, कठिन, मंद, स्थिर, सान्द्र, गंध स्थिरता, गौरव, उपचय, संघात, धारण अस्थि, मांस, गोधूम, शिलाजतु, स्वर्ण
    जल (आप्य) द्रव, स्निग्ध, शीत, मृदु, पिच्छिल, गुरु, मंद, रस स्नेहन, क्लेदन, बंधन, प्रह्लादन, जीवन रस धातु, कफ दोष, दुग्ध, इक्षु रस, घी
    अग्नि (तेजस) उष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, लघु, रूक्ष, विशद, रूप दाह, पाक, दीपन, पाचन, वर्ण, प्रकाश पित्त दोष, भष्म, चित्रक, मरीच, शुण्ठी
    वायु (वायव्य) लघु, शीत (अनुष्ण-अशीत), रूक्ष, खर, विशद, सूक्ष्म, चल, स्पर्श रौक्ष्य, ग्लानि, चलन, भेदना, वैशद्य, लाघव वात दोष, त्वचा, शिरीष, वातशामक तेल
    आकाश (नाभस) मृदु, लघु, सूक्ष्म, श्लक्ष्ण, अव्यक्त, शब्द मार्दव, सुषिरता, लाघव, अवकाश निर्माण स्रोतस्, कर्ण इन्द्रिय, विभितकी

    द्रव्यों की पंचभौतिकता का ज्ञान चिकित्सा के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसी आधार पर **सामान्य-विशेष सिद्धांत** का प्रयोग कर समान गुण वाले द्रव्यों से धातुओं की वृद्धि और विपरीत गुण वाले द्रव्यों से उनका ह्रास किया जाता है।

    द्रव्य का वर्गीकरण (Classification of Dravya)

    द्रव्यों को उनके स्रोत, उपयोगिता, कर्म, रस, वीर्य आदि विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है ताकि उनके अध्ययन और चिकित्सीय प्रयोग में सरलता और स्पष्टता हो।

    1. योनि भेद से (Based on Source - उत्पत्ति स्थान के आधार पर):

    द्रव्य कहाँ से प्राप्त होता है, इस आधार पर मुख्य तीन भेद हैं:

    वर्ग (Yoni) विवरण उदाहरण
    औद्भिद (Audbhida)
    (वनस्पति जगत)
    अधिकांश औषधियाँ इसी वर्ग से। पुनः 4 प्रकार:
    • वनस्पति: केवल फल, फूल अप्रत्यक्ष (जैसे - गूलर, वट)।
    • वानस्पत्य: फूल और फल दोनों प्रत्यक्ष (जैसे - आम, अर्जुन)।
    • वीरुध: लताएं और गुल्म (जैसे - गिलोय, कंटकारी)।
    • ओषधि: फल पकने पर नष्ट होने वाले पौधे (जैसे - गेहूं, जौ)।
    अश्वगंधा, हरीतकी, पिप्पली, तुलसी।
    जांगम (Jangama)
    (प्राणिज जगत)
    प्राणियों से प्राप्त उत्पाद। दुग्ध, घृत, मधु, मांस रस, कस्तूरी, शंख, प्रवाल।
    पार्थिव / भौम (Parthiva / Bhauma)
    (खनिज जगत)
    भूमि/खनिज से प्राप्त द्रव्य (धातु, रत्न, उपरत्न आदि)। स्वर्ण, लौह, अभ्रक, शिलाजतु, गैरिक, मुक्ता।

    2. प्रयोग भेद से (Based on Use - उपयोगिता के आधार पर):

    द्रव्य का मुख्य प्रयोग किस उद्देश्य से किया जा रहा है:

    • औषध द्रव्य (Aushadha Dravya): मुख्यतः रोगों की चिकित्सा हेतु (जैसे - हरीतकी, अश्वगंधा)।
    • आहार द्रव्य (Ahara Dravya): मुख्यतः पोषण और स्वास्थ्य रक्षण हेतु (जैसे - चावल, गेहूं, दूध)।
    • आहार-औषध उभय द्रव्य: जो आहार और औषध दोनों रूप में प्रयुक्त हों (जैसे - अदरक, आंवला, मधु)।

    चरक संहिता में आहार द्रव्यों का 12 वर्गों में विस्तृत वर्णन (च.सू. २७) है: शूक धान्य, शमी धान्य, मांस, शाक, फल, हरित, मद्य, जल, गोरस, इक्षु, कृतान्न, आहारयोगी वर्ग।

    3. कर्म भेद से (Based on Action - शरीर पर कार्य के आधार पर):

    • दोष प्रशमन (Dosha Pacifying): बढ़े दोषों को शांत करने वाले (जैसे - वात शामक: दशमूल; पित्त शामक: शतावरी; कफ शामक: त्रिकटु)।
    • दोष प्रकोपन (Dosha Aggravating): शांत दोषों को बढ़ाने वाले (पंचकर्म पूर्व या अहितकर)।
    • स्वस्थहित (Health Promoting): स्वास्थ्य बनाए रखने वाले (जैसे - रसायन: आँवला; वाजीकरण: अश्वगंधा)।
    • अन्य कर्मों के आधार पर: जैसे दीपन, पाचन, लेखन, बृंहण, भेदन, ग्राही, स्तम्भन आदि। चरक के **50 महाकषाय** और सुश्रुत के **37 गण** इसी कर्म आधारित वर्गीकरण के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

    4. रस भेद से (Based on Taste - स्वाद के आधार पर):

    द्रव्य में अनुभव होने वाले प्रधान रस के आधार पर 6 वर्ग (षड्रस): मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय स्कन्ध।

    5. वीर्य भेद से (Based on Potency - शक्ति के आधार पर):

    • शीत वीर्य (Cooling potency) (जैसे - चन्दन, मुलेठी)।
    • उष्ण वीर्य (Heating potency) (जैसे - चित्रक, शुण्ठी)।
    • (अष्टविध वीर्य - गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण, मृदु, तीक्ष्ण - भी माने जाते हैं)।

    6. विपाक भेद से (Based on Post-Digestive Effect - पाचन उपरांत प्रभाव):

    • मधुर विपाक (जैसे - आमलकी, घृत)।
    • अम्ल विपाक (जैसे - अम्लिका, दाड़िम)।
    • कटु विपाक (जैसे - शुण्ठी, मरिच)।

    7. अन्य महत्वपूर्ण वर्गीकरण (Other Important Classifications):

    • चेतना के आधार पर: चेतन (सजीव) और अचेतन (निर्जीव)।
    • प्रयोज्यांग के आधार पर: मूलिनी (जड़), फलिनी (फल), पत्रप्रधान (पत्ते), त्वक्प्रधान (छाल), पुष्पप्रधान (फूल) आदि।
    • संहिता आधारित (महाकषाय एवं गण): चरक के 50 महाकषाय एवं सुश्रुत के 37 गण कर्म आधारित महत्वपूर्ण वर्गीकरण हैं।
    • निघण्टु आधारित (Nighantu based): विभिन्न निघण्टुओं में द्रव्यों को उनके स्वरूप, गुण, कर्म आदि के आधार पर विभिन्न वर्गों (जैसे - हरीतक्यादि वर्ग, कर्पूरादि वर्ग) में रखा गया है।

    द्रव्य का सम्यक् ज्ञान (उसकी पहचान, प्राप्ति स्थान, संग्रहण काल, प्रयोज्यांग, शोधन विधि, गुण-कर्म, प्रयोग, मात्रा, अनुपान) ही द्रव्यगुण विज्ञान का सार है और एक कुशल चिकित्सक बनने के लिए अनिवार्य है।

    परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)

    (यह प्रश्नोत्तरी मुख्य रूप से 'द्रव्य' अध्याय पर आधारित है)

    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)

    1. द्रव्य की परिभाषा लिखें। कारण एवं कार्य द्रव्य को समझाते हुए पंचभौतिक संघटन का वर्णन करें। उदाहरण सहित प्रत्येक महाभूत के प्रमुख गुण और कर्म बताएं।
    2. विभिन्न आधारों पर द्रव्य का वर्गीकरण विस्तार से लिखें (योनि, प्रयोग, कर्म आदि), सोदाहरण स्पष्ट करें।
    3. Define Dravya according to Charaka & Sushruta. Explain Karan Dravya & Karya Dravya. Describe the Panchabhautika composition of Dravya with examples for each Mahabhuta's qualities and actions.
    4. Classify Dravya on different basis (Yoni, Prayoga, Karma etc.) in detail with suitable examples.

    लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)

    • द्रव्य की परिभाषा एवं लक्षण बताएं (च.सू. १/५१)।
    • कारण द्रव्य कितने हैं? नाम एवं संक्षिप्त विवरण दें।
    • द्रव्य के योनि भेद (Classification based on source) का वर्णन करें। औद्भिद द्रव्यों के प्रकार सोदाहरण बताएं।
    • पंचभौतिक संघटन का सिद्धांत और 'व्यपदेशस्तु भूयसा' समझाएं।
    • प्रयोग के आधार पर द्रव्यों का वर्गीकरण करें (औषध, आहार, उभय) और चरक अनुसार आहार द्रव्यों के 12 वर्गों के नाम लिखें।
    • कर्म के आधार पर द्रव्य वर्गीकरण (दोष प्रशमन, प्रकोपन, स्वस्थहित) समझाएं।

    अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)

    • द्रव्य की परिभाषा (च.सू. १/५१) लिखें।
    • 'सर्वं द्रव्यं पाञ्चभौतिकम्' - यह किस आचार्य का कथन है? (आचार्य चरक)
    • कारण द्रव्यों की संख्या बताएं। (9)
    • योनि भेद से द्रव्य कितने प्रकार के होते हैं? नाम लिखें। (3 - औद्भिद, जांगम, पार्थिव)
    • वानस्पत्य और वनस्पति में क्या अंतर है?
    • आहार द्रव्य और औषध द्रव्य का एक-एक उदाहरण दें।
    • चेतन और अचेतन द्रव्य क्या हैं?
    • कार्य द्रव्य क्या हैं?
    • वीरुध का उदाहरण दें। (गिलोय)
    • ओषधि का उदाहरण दें। (गेहूं)
    • दोष प्रशमन द्रव्य का एक उदाहरण दें। (दशमूल)
    • पार्थिव द्रव्य के दो गुण बताएं। (गुरु, खर)

    About the Author: Sparsh Varshney

    Sparsh Varshney is a BAMS (Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery) student and the founder of AmidhaAyurveda.com. His mission is to share the deep and timeless wisdom of Ayurveda in an accessible and practical way, empowering people to reclaim their health naturally.

    Disclaimer: This article is for educational purposes only, intended for BAMS students. This information is based on Ayurvedic Samhitas and textbooks. For any medical advice or treatment, always consult a qualified Ayurvedic practitioner.

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