कल्पना निर्माण I (प्राथमिक एवं द्वितीयक औषध स्वरूप) - रसशास्त्र नोट्स
यह लेख BAMS द्वितीय वर्ष के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विषय के अंतर्गत 'कल्पना निर्माण I (Kalpana Nirmana I)' अध्याय पर केंद्रित है। इसमें हम भैषज्य कल्पना की मूलभूत अवधारणाओं, विशेष रूप से पंचविध कषाय कल्पना (Panchavidha Kashaya Kalpana - Primary Dosage Forms) और उनसे विकसित होने वाली उप कल्पनाओं (Upakalpana - Secondary Dosage Forms) का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
प्रत्येक कल्पना की परिभाषा, निर्माण विधि, सिद्धांत, आवश्यक उपकरण, सिद्धि लक्षण, मात्रा, संग्रहण विधि, सेवन काल (Saviryata Avadhi), आधुनिक दृष्टिकोण और उदाहरणों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी, साथ ही प्रासंगिक श्लोकों का भी समावेश किया जाएगा।
अध्याय सार (Chapter in Brief)
- भैषज्य कल्पना वर्गीकरण: मुख्यतः प्राथमिक (पंचविध कषाय कल्पना) और द्वितीयक (उप कल्पनाएं जैसे चूर्ण, वटी, अवलेह आदि) में वर्गीकृत।
- पंचविध कषाय कल्पना: ये 5 मूल कल्पनाएं हैं - स्वरस (रस), कल्क (पेस्ट), क्वाथ (काढ़ा), हिम (ठंडा कषाय), फाण्ट (गर्म कषाय)। ये उत्तरोत्तर लघु (शीघ्र पचने वाली) होती हैं।
- स्वरस: ताजे द्रव्य का यंत्र-निष्पीड़ित रस। मात्रा- ½ पल।
- कल्क: ताजे/सूखे द्रव्य की जल के साथ बनी लुगदी/चटनी। मात्रा- 1 कर्ष।
- क्वाथ (श्रृत): द्रव्य को जल में उबालकर (प्रायः 1/8 शेष) छानकर प्राप्त द्रव। मात्रा- 2 पल।
- हिम (शीत कषाय): द्रव्य को ठंडे जल में भिगोकर (प्रायः 1:6 अनुपात, रात्रि भर) छानकर प्राप्त द्रव। मात्रा- 2 पल।
- फाण्ट (क्षोद): द्रव्य को उबलते जल में डालकर (प्रायः 1:8 अनुपात) मसलकर छानकर प्राप्त द्रव। मात्रा- 2 पल।
- उप कल्पनाएं:
                - कल्क से: चूर्ण (Powder)।
- क्वाथ से: प्रमथ्या, पानीय, उष्णोदक, क्षीरपाक, लाक्षा रस, मांस रस।
- हिम से: मंथ, उदक, पानक।
- फाण्ट से: अर्क (Distillate - हालांकि यह संधान या अन्य में भी गिना जा सकता है)।
 
- प्रत्येक कल्पना का विस्तृत अध्ययन: परिभाषा, विधि, मात्रा, अनुपात, सिद्धांत, उपकरण, सिद्धि लक्षण, संग्रहण, सेवन काल, आधुनिक सहसंबंध।
कल्पना निर्माण I: प्राथमिक एवं द्वितीयक औषध स्वरूप
भैषज्य कल्पना: परिभाषा एवं वर्गीकरण
परिभाषा: औषध द्रव्यों को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा संस्कारित कर सेवन योग्य, सुरक्षित, स्थायी और अधिक प्रभावी स्वरूप प्रदान करने की विधि या योजना को भैषज्य कल्पना कहते हैं।
योजयेत् कल्पनां यां तु सा भैषज्यकल्पना।
(आचार्य यादवजी त्रिकमजी)वर्गीकरण (Classification): भैषज्य कल्पनाओं को अनेक आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, परन्तु निर्माण प्रक्रिया की जटिलता और निर्भरता के आधार पर मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है:
- प्राथमिक कल्पनाएं (Primary Dosage Forms): ये मूल कल्पनाएं हैं जो सीधे औषध द्रव्य से बनाई जाती हैं। इनमें पंचविध कषाय कल्पना प्रमुख है।
- द्वितीयक कल्पनाएं (Secondary Dosage Forms): ये वे कल्पनाएं हैं जो प्राथमिक कल्पनाओं (जैसे क्वाथ, कल्क) को आधार बनाकर या उनमें अन्य द्रव्य मिलाकर बनाई जाती हैं (जैसे वटी, अवलेह, स्नेह, आसव-अरिष्ट, अर्क, चूर्ण आदि)।
इस अध्याय में हम प्राथमिक कल्पनाओं (पंचविध कषाय कल्पना) और उनसे सीधे बनने वाली कुछ प्रमुख उपकल्पनाओं का अध्ययन करेंगे।
पंचविध कषाय कल्पना (Panchavidha Kashaya Kalpana - Five Basic Formulations)
ये आयुर्वेद की पाँच मूलभूत औषध निर्माण विधियाँ हैं, जिन्हें 'कषाय योनि' भी कहा जाता है। आचार्य शारंगधर ने इनका व्यवस्थित वर्णन किया है।
स्वरसः कल्कः क्वाथश्च हिमः फाण्टस्तथैव च।
             कषायाः पञ्च विज्ञेयाः लघवः स्युर्यथोत्तरम्॥
व्याख्या: स्वरस, कल्क, क्वाथ, हिम, और फाण्ट - ये पांच कषाय (मूल कल्पनाएं) जानने योग्य हैं। ये उत्तरोत्तर (आगे वाले क्रम में) लघु (Easier to digest) होते हैं (अर्थात् स्वरस सबसे गुरु और फाण्ट सबसे लघु)।
1. स्वरस कल्पना (Swarasa Kalpana - Expressed Juice)
परिभाषा एवं निर्माण विधि:
आहतात् क्षुण्णतः सद्यो वस्त्रात् निष्पीडितो रसः।
                 स्वरसः स समुद्दिष्टः ...॥
व्याख्या: ताजे (सद्यः), बिना सूखे, औषधीय द्रव्य (प्रायः हरे पत्ते, कंद आदि) को कूटकर (आहतात् क्षुण्णतः) या पीसकर, साफ कपड़े में रखकर निचोड़ने (निष्पीडितः) से जो रस निकलता है, उसे स्वरस कहते हैं।
सिद्धांत: द्रव्य के जल-घुलनशील (Water-soluble) और कुछ तैलीय सक्रिय घटकों को बिना अग्नि संयोग के प्राप्त करना।
विधि:
- ताजा, हरा द्रव्य लें, साफ करें।
- खरल या इमामदस्ते में अच्छी तरह कूटें या सिलबट्टे पर पीसें।
- साफ, मोटे सूती कपड़े में रखकर पोटली बनाएं और बलपूर्वक निचोड़कर रस निकालें।
- यदि द्रव्य शुष्क हो या रस निकालना कठिन हो (जैसे गुडूची), तो उसे कूटकर दोगुना जल मिलाकर रात भर रखकर सुबह मसलकर छान सकते हैं (पुटपाक स्वरस विधि)।
उपकरण:
खरल-मूसल, सिलबट्टा, मोटा सूती कपड़ा, पात्र। बड़े पैमाने पर जूसर मशीन।
सिद्धि लक्षण:
द्रव्य के स्वाभाविक वर्ण, गंध, रस युक्त स्वच्छ द्रव।
मात्रा (Dose):
... तत्प्रमाणं पलं स्मृतम्।
(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड १/३)अर्थात्: ½ पल (≈ 24 ml or approx. 20-25 ml)। व्यवहार में 10-20 ml।
अनुपान:
मधु, शर्करा, जीरा, लवण आदि रोगानुसार मिलाए जा सकते हैं।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
स्वरस ताजा ही प्रयोग करना चाहिए ('सद्यो गृहीतः स्वरसः...')। यह शीघ्र खराब हो जाता है। अधिकतम 24 घंटे (एक अहोरात्र) या जब तक उसमें वर्ण-गंध-रस विकृति न आए। इसे संरक्षित करने के लिए इसमें मधु, शर्करा, प्रक्षेप चूर्ण या सोडियम बेंजोएट (आधुनिक) मिलाया जा सकता है।
उदाहरण:
तुलसी स्वरस (कास-श्वास), आमलकी स्वरस (रसायन), वासा स्वरस (रक्तपित्त), आर्द्रक स्वरस (दीपन-पाचन), कुमारी स्वरस (यकृत रोग)।
आधुनिक सहसंबंध:
Freshly expressed juice in herbalism.
2. कल्क कल्पना (Kalka Kalpana - Paste)
परिभाषा एवं निर्माण विधि:
द्रव्यमार्द्रं शिलापिष्टं शुष्कं वा सजलस्थितम्।
                  प्रक्षेपचूर्णकल्कस्तु स ...॥
यः पिण्डो रसपिष्टानां स कल्कः परिकीर्तितः।
(अन्य परिभाषा)व्याख्या: आर्द्र (ताजे) या शुष्क द्रव्य को जल (या निर्देशित द्रव) के साथ सिलबट्टे पर या खरल में पीसकर जो चटनी/लुगदी (पिण्ड) जैसा स्वरूप बनता है, उसे कल्क कहते हैं। इसे प्रक्षेप (घी, तेल, मधु आदि मिलाना) या चूर्ण रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।
सिद्धांत: द्रव्य के जल और स्नेह दोनों में घुलनशील सक्रिय घटकों को प्राप्त करना। यह स्वरस से अधिक गाढ़ा और गुरु होता है।
विधि:
- द्रव्य को साफ करें। यदि सूखा है, तो थोड़ा जल मिलाएं।
- सिलबट्टे या खरल में आवश्यकतानुसार जल या अन्य द्रव (जैसे गोमूत्र, स्वरस) मिलाकर महीन पीसें।
- जब यह चटनी जैसा बन जाए, तो कल्क तैयार है।
उपकरण:
सिलबट्टा, खरल-मूसल, पात्र। बड़े पैमाने पर ग्राइंडर।
सिद्धि लक्षण:
महीन, मसृण (चिकना), पिण्ड स्वरूप।
मात्रा (Dose):
... कर्षमात्रस्तु पाययेत्।
(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड ५/२)अर्थात्: 1 कर्ष (≈ 12 g)। व्यवहार में 5-10 g।
अनुपान:
मधु, घृत, तैल, शर्करा, उष्ण जल, गोमूत्र आदि रोगानुसार।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
कल्क भी ताजा ही प्रयोग करना श्रेष्ठ है। यह भी शीघ्र खराब होता है (सवीर्यता अवधि: 24 घंटे या गुण परिवर्तन तक)। इसे सुखाकर वटी या चूर्ण रूप में बदला जा सकता है।
उदाहरण:
निम्ब कल्क (त्वचा रोग - बाह्य लेप), रास्ना कल्क (आमवात - एरंड तेल के साथ), लहसुन कल्क (वात रोग - तिल तेल/घी के साथ)। कल्क का प्रयोग स्नेह पाक और अन्य कल्पनाओं के निर्माण में भी होता है।
आधुनिक सहसंबंध:
Herbal paste, Bolus.
3. क्वाथ/श्रृत कल्पना (Kwatha/Shrita Kalpana - Decoction)
परिभाषा एवं निर्माण विधि:
द्रव्ये शुष्के क्षिपेत्तोयं शोष्यं क्वाथ्यं चतुर्गुणम्।
                   ... अष्टभागस्थितं ज्ञात्वा मृदुपात्रे शनैः पचेत्॥
                    ... पादशेषं चतुष्पले ... अष्टमेऽशे चतुष्पलात्॥
यत् पक्वं द्रव्यं संशुष्कं तोयेन च चतुर्गुणेन।
                    पादशेषं श्रृतं ज्ञेयं ...
व्याख्या: सूखे, यवकुट (मोटे कूटे हुए) द्रव्य में सामान्यतः 4 गुना (या 8 गुना या 16 गुना - द्रव्य की कठिनतानुसार) जल मिलाकर, मंद अग्नि पर उबालकर, जब जल का 1/4 भाग (या 1/8 भाग) शेष रह जाए, तब छानकर प्राप्त द्रव को क्वाथ या श्रृत कहते हैं।
सिद्धांत: द्रव्य के जल-घुलनशील सक्रिय घटकों को उष्ण जल में उबालकर निकालना (Extraction by decoction)। यह आयुर्वेद की सर्वाधिक प्रयुक्त कल्पनाओं में से एक है।
विधि:
- द्रव्य को यवकुट (जौ के दाने जैसा मोटा) कूटें।
- मिट्टी या स्टील के पात्र में द्रव्य और निर्धारित मात्रा में जल (सामान्यतः 1 भाग द्रव्य : 16 भाग जल) डालें।
- पात्र को खुला रखकर (या आंशिक ढककर) मंद अग्नि पर उबालें।
- बीच-बीच में चलाते रहें। जब जल 1/8 भाग शेष रह जाए (या निर्देशानुसार 1/4), तो अग्नि से उतार लें।
- गरम अवस्था में ही कपड़े से छान लें।
अनुपात (द्रव्य:जल:शेष):
- कोमल द्रव्य: 1:4:1/4
- मध्यम द्रव्य: 1:8:1/4
- कठिन द्रव्य: 1:16:1/8 (सामान्य प्रचलन)
उपकरण:
मिट्टी/स्टील का पात्र, अग्नि स्रोत (गैस, चूल्हा), कलछी, कपड़ा। बड़े पैमाने पर डेकोक्शन वेसल।
सिद्धि लक्षण:
द्रव्य के वर्ण, गंध, रस युक्त, थोड़ा गाढ़ा द्रव।
मात्रा (Dose):
... क्वाथस्य पलं स्मृतम्। (या द्विपलं)
(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड २/८ - मतान्तर)अर्थात्: 1 पल (≈ 48 ml) या 2 पल (≈ 96 ml)। व्यवहार में 40-80 ml दिन में 2 बार।
अनुपान/प्रक्षेप:
मधु, शर्करा, गुड़, सैंधव, जीरा, हींग, क्षार, घृत, तैल, गुग्गुलु, शिलाजतु, चूर्ण आदि रोगानुसार मिलाए जाते हैं।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
क्वाथ ताजा बनाकर गुनगुना पीना श्रेष्ठ है। यह भी शीघ्र खराब होता है (सवीर्यता अवधि: 12-24 घंटे या गुण परिवर्तन तक)। प्रक्षेप मिलाकर पीने से पहले डालना चाहिए।
उदाहरण:
दशमूल क्वाथ (वात रोग), रास्ना सप्तक क्वाथ (आमवात), महामंजिष्ठादि क्वाथ (त्वचा रोग), फलत्रिकादि क्वाथ (यकृत रोग), पुनर्नवाष्टक क्वाथ (शोथ)।
आधुनिक सहसंबंध:
Decoction, Herbal Tea (prolonged boiling).
4. हिम कल्पना (Hima Kalpana - Cold Infusion)
परिभाषा एवं निर्माण विधि:
द्रव्यात् पलोन्मितात् तोये षड्गुणे शीतले न्यसेत्।
                    निशोषितं ततः पूतं हिमः स परिकीर्तितः॥
व्याख्या: एक पल (≈ 48 g) औषध द्रव्य (मोटा कुटा हुआ) को छः गुना (षड्गुणे ≈ 288 ml) शीतल जल में रात भर (निशोषितं) भिगोकर रखकर, सुबह मसलकर छान लेने पर जो द्रव प्राप्त होता है, उसे हिम या शीत कषाय कहते हैं।
सिद्धांत: द्रव्य के शीत वीर्य गुणों और जल-घुलनशील घटकों को बिना अग्नि संयोग के शीतल जल में निकालना (Cold extraction/infusion)। यह पित्त शामक रोगों और सुगंधित द्रव्यों के लिए उत्तम है।
विधि:
- द्रव्य को मोटा कूटें।
- मिट्टी या कांच के पात्र में द्रव्य और निर्धारित मात्रा में शीतल जल (1:6) डालें।
- ढककर रात भर (6-12 घंटे) रखें।
- सुबह अच्छी तरह मसलकर कपड़े से छान लें।
उपकरण:
मिट्टी/कांच का पात्र, कपड़ा।
सिद्धि लक्षण:
द्रव्य के वर्ण, गंध, रस युक्त शीतल द्रव।
मात्रा (Dose):
2 पल (≈ 96 ml)। व्यवहार में 40-80 ml।
अनुपान/प्रक्षेप:
शर्करा, मिश्री, मधु आदि।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
इसे भी ताजा बनाकर शीघ्र प्रयोग करना चाहिए (सवीर्यता अवधि: 12-24 घंटे)।
उदाहरण:
धान्यक हिम (तृष्णा, दाह), सारीवादि हिम (रक्तपित्त, दाह), कमल हिम (दाह)।
आधुनिक सहसंबंध:
Cold Infusion, Maceration (short period).
5. फाण्ट कल्पना (Phanta Kalpana - Hot Infusion)
परिभाषा एवं निर्माण विधि:
क्षिप्त्वाऽतोये तु उष्णे मृदितं तत् समुद्धरेत्।
                     वस्त्रनिष्पीडितो यस्तु स फाण्टः परिकीर्तितः॥
व्याख्या: औषध द्रव्य के मोटे चूर्ण (क्षोद) को उबलते हुए जल में डालकर, पात्र को ढककर थोड़ी देर रखकर, फिर मसलकर कपड़े से छान लेने पर जो द्रव प्राप्त होता है, उसे फाण्ट कहते हैं।
सिद्धांत: द्रव्य के शीघ्र निकलने वाले (Volatile) और जल-घुलनशील घटकों को उष्ण जल में तुरंत निकालना (Hot infusion)। यह हिम से लघु और वात-कफ रोगों में अधिक उपयोगी है।
विधि:
- द्रव्य का मोटा चूर्ण (क्षोद) लें (1 भाग)।
- उबलते हुए जल (प्रायः 8 भाग) में चूर्ण डालें।
- पात्र को तुरंत ढक दें और अग्नि से उतार लें।
- जब थोड़ा गुनगुना हो जाए (कुछ मिनट बाद), तो उसे मसलकर कपड़े से छान लें।
अनुपात (द्रव्य:जल):
1:8 (सामान्य), 1:4 (मतान्तर)।
उपकरण:
पात्र (ढक्कन सहित), अग्नि स्रोत, कपड़ा।
सिद्धि लक्षण:
द्रव्य के वर्ण, गंध, रस युक्त उष्ण या गुनगुना द्रव।
मात्रा (Dose):
तत्प्रमाणं द्विपालिकम्।
(शारंगधर संहिता, मध्यम खण्ड ३/२)अर्थात्: 2 पल (≈ 96 ml)। व्यवहार में 40-80 ml।
अनुपान/प्रक्षेप:
शर्करा, मधु, चूर्ण आदि।
संग्रहण एवं सेवन काल (Storage & Shelf Life):
इसे ताजा बनाकर उष्ण अवस्था में ही पीना चाहिए (सवीर्यता अवधि: कुछ घंटे)।
उदाहरण:
यष्टिमधु फाण्ट (वातज कास), पंचकोल फाण्ट (दीपन-पाचन), एरंड पत्र फाण्ट (वात शूल)।
आधुनिक सहसंबंध:
Hot Infusion, Herbal Tea (steeping method).
उपकल्पनाएं (Upakalpana - Secondary Dosage Forms)
ये वे कल्पनाएं हैं जो पंचविध कषाय कल्पनाओं को आधार मानकर या उनमें संशोधन करके बनाई जाती हैं।
1. कल्क आधारित उपकल्पना:
चूर्ण कल्पना (Churna Kalpana - Powder):
अत्यन्तशुष्कं यद् द्रव्यं सुपिष्टं वस्त्रगालितम्।
                 तत् स्याच्चूर्णं ...
व्याख्या: अत्यंत सूखे (Moisture free) औषध द्रव्य को अच्छी तरह पीसकर (इमामदस्ता/ग्राइंडर) और कपड़े या छन्नी से छानकर जो महीन पाउडर प्राप्त होता है, उसे चूर्ण कहते हैं।
- सिद्धांत: द्रव्य के गुणों को शुष्क रूप में संरक्षित करना, सेवन सुगम बनाना।
- विधि: द्रव्य को सुखाकर, कूटकर, पीसकर, छानकर वायुरोधी पात्र में रखें।
- मात्रा: ¼ से ½ तोला (3-6 g) या निर्देशानुसार।
- सेवन काल: सामान्यतः 2 मास से 1 वर्ष (द्रव्य पर निर्भर)।
- उदाहरण: त्रिफला चूर्ण, त्रिकटु चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण।
- आधुनिक: Herbal Powder.
2. क्वाथ आधारित उपकल्पनाएं:
प्रमथ्या (Pramathya):
क्वाथ के समान ही बनाई जाती है, परन्तु इसमें द्रव्य को कूटने के बजाय कल्क (Paste) रूप में लेकर जल में घोला जाता है और फिर उबालकर (प्रायः 1/8 शेष) छान लिया जाता है। यह क्वाथ से अधिक गाढ़ी होती है।
- उपयोग: आम पाचन, दीपन हेतु।
- उदाहरण: मुस्तादि प्रमथ्या।
पानीय कल्पना (Paniya Kalpana):
कम मात्रा में द्रव्य (जैसे 1 भाग) को अधिक जल (जैसे 64 भाग) में उबालकर (आधा शेष रहने तक) तैयार किया गया द्रव, जिसे दिन भर पानी के स्थान पर पीने के लिए दिया जाता है।
- उदाहरण: षडंग पानीय (ज्वर में तृष्णा-दाह हेतु - मुस्तक, पर्पट, उशीर, चन्दन, उदीच्य, नागर), धान्यक पानीय।
उष्णोदक (Ushnodaka):
जल को उबालकर (1/8, 1/4 या 1/2 शेष) तैयार किया गया गर्म पानी। यह स्वयं एक औषधि है (आमपाचक, दीपन, स्रोतोविशोधन, वात-कफ शामक)।
क्षीर पाक कल्पना (Ksheera Paka Kalpana):
क्षीरमष्टगुणं द्रव्यात् क्षीरात्तोयं चतुर्गुणम्।
                 क्षीरशेषं श्रृतं शीतं ...
व्याख्या: 1 भाग द्रव्य (कल्क/चूर्ण), 8 भाग दूध (क्षीर) और 32 भाग जल (क्षीरात् तोयं चतुर्गुणम्) मिलाकर मंद अग्नि पर उबालें, जब केवल दूध (8 भाग) शेष रह जाए तो छान लें।
- सिद्धांत: द्रव्य के स्नेह-घुलनशील (Fat-soluble) और जल-घुलनशील घटकों को दूध में निकालना। यह पौष्टिक और सौम्य कल्पना है।
- उपयोग: पित्तज रोग, वातज रोग, रसायन, बृंहण।
- उदाहरण: अर्जुन क्षीरपाक (हृदय रोग), लहसुन क्षीरपाक (वात रोग), अश्वगंधा क्षीरपाक (बल्य)।
लाक्षा रस (Laksha Rasa):
लाख (Laccifer lacca resin) को गर्म जल या क्वाथ में घोलकर या उबालकर प्राप्त द्रव।
- उपयोग: भग्न संधान (Fracture healing), रक्तपित्त, उरःक्षत (Chest injury)।
मांस रस (Mamsa Rasa):
विभिन्न प्राणियों के मांस को जल के साथ उबालकर (सूप की तरह) बनाया गया रस।
- उपयोग: बृंहण, बल्य, वात शामक, क्षय रोग, दौर्बल्य।
3. हिम आधारित उपकल्पनाएं:
मंथ कल्पना (Mantha Kalpana):
द्रव्य (जैसे सत्तू, खजूर, मुनक्का) के चूर्ण या कल्क को 4 गुना ठंडे जल में डालकर मथनी से अच्छी तरह मथकर (Bilochen/Churned) तैयार किया गया पेय। यह गाढ़ा और पौष्टिक होता है।
- उपयोग: तृष्णा, दाह, क्लम (थकावट), पित्त शमन।
- उदाहरण: सत्तू मंथ, खर्जूर मंथ।
उदक कल्पना (Udaka Kalpana):
कुछ द्रव्यों (जैसे नागरमोथा) को केवल ठंडे जल में भिगोकर, बिना मसले छानकर प्रयोग करना (हिम से भिन्न)।
पानक कल्पना (Panaka Kalpana):
फल आदि द्रव्यों के स्वरस या फाण्ट/हिम में शर्करा, मिश्री, मसाले (इलायची, मरीच) आदि मिलाकर बनाया गया शरबत जैसा पेय।
- उपयोग: तृष्णा, दाह, क्लम, रोचन।
- उदाहरण: आम्र पानक, द्राक्षा पानक, जम्बीर पानक।
4. फाण्ट आधारित उपकल्पना:
अर्क कल्पना (Arka Kalpana - Distillate):
यद्यपि अर्क निर्माण की विधि आसवन (Distillation) है और इसे संधान कल्पना के अंतर्गत भी रखा जा सकता है, परन्तु कुछ सुगंधित द्रव्यों (जिनके सक्रिय घटक भाप से उड़नशील हों) के लिए यह फाण्ट का विकसित रूप माना जा सकता है। इसमें द्रव्य को जल में भिगोकर या उबालकर उसकी भाप को संघनित (Condense) करके अर्क (Distillate) प्राप्त किया जाता है।
- सिद्धांत: द्रव्य के वाष्पशील (Volatile) सक्रिय घटकों को भाप के साथ निकालकर संघनित करना।
- उपकरण: अर्क यंत्र (Distillation apparatus)।
- उपयोग: दीपन, पाचन, शूलघ्न, सुगंधित पेय।
- उदाहरण: अजवायन अर्क, सौंफ अर्क, पुदीना अर्क, गुलाब अर्क।
- आधुनिक: Distillate, Hydrosol.
परीक्षा-उपयोगी प्रश्न (Exam-Oriented Questions)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (10 Marks Questions)
- पंचविध कषाय कल्पना का श्लोक सहित वर्णन करें। किसी एक कल्पना (जैसे क्वाथ या स्वरस) की निर्माण विधि, सिद्धांत, मात्रा, सेवन काल आदि विस्तार से लिखें।
- उप कल्पनाएं क्या हैं? क्वाथ एवं हिम कल्पना से बनने वाली उप कल्पनाओं का नामोल्लेख करते हुए किन्हीं दो (जैसे क्षीरपाक, मंथ) का वर्णन करें।
- Describe Panchavidha Kashaya Kalpana with reference to Sharangdhara Samhita. Explain Swarasa Kalpana and Kwatha Kalpana in detail covering definition, method, dose, shelf life etc.
- What are Upakalpanas? Enlist the Upakalpanas derived from Kwatha and Hima. Describe Ksheerapaka Kalpana and Churna Kalpana in detail.
लघु उत्तरीय प्रश्न (5 Marks Questions)
- पंचविध कषाय कल्पना के नाम एवं उनका बलाबल (गुरु-लघु क्रम) लिखें।
- स्वरस कल्पना की विधि एवं मात्रा।
- कल्क कल्पना की विधि एवं मात्रा।
- क्वाथ कल्पना का सामान्य द्रव्य:जल:शेष अनुपात एवं मात्रा।
- हिम कल्पना की विधि एवं उपयोग।
- फाण्ट कल्पना की विधि एवं उपयोग।
- चूर्ण कल्पना पर टिप्पणी लिखें।
- क्षीर पाक कल्पना की विधि एवं उदाहरण।
- प्रमथ्या और क्वाथ में अंतर।
- पानीय कल्पना और उष्णोदक।
- मंथ कल्पना का वर्णन करें।
- अर्क कल्पना का सिद्धांत क्या है?
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (2 Marks Questions)
- पंचविध कषाय कल्पना के नाम?
- सबसे गुरु कषाय कल्पना? (स्वरस)
- सबसे लघु कषाय कल्पना? (फाण्ट)
- स्वरस की सामान्य मात्रा? (½ पल)
- कल्क की सामान्य मात्रा? (1 कर्ष)
- क्वाथ की सामान्य मात्रा? (2 पल)
- हिम कल्पना में द्रव्य:जल अनुपात? (1:6)
- फाण्ट कल्पना में द्रव्य:जल अनुपात? (1:8)
- चूर्ण किस कल्पना की उपकल्पना है? (कल्क)
- क्षीर पाक में द्रव्य:दुग्ध:जल अनुपात? (1:8:32)
- षडंग पानीय किस कल्पना का उदाहरण है? (पानीय)
- अजवायन अर्क किस कल्पना का उदाहरण है? (अर्क)
- शीत कषाय किसे कहते हैं? (हिम)
 
 
No comments:
Post a Comment